महाशिवरात्रि पर्व भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है।
शिव का अर्थ है- शुभ, शङ्कर का अर्थ है कल्याण करने वाला। शुभ और कल्याणकारी चिन्तन, चरित्र एवं आकांक्षाएँ बनाना ही शिव आराधना की तैयारी अथवा शिवा सान्निध्य का लाभ है।
महाशिवरात्रि क्या और क्यों?
रात्रि नित्य- प्रलय और दिन नित्य- सृष्टि है। एक से अनेक की ओर कारण से कार्य की ओर जाना ही सृष्टि है | इसके विपरीत अनेक से एक और कार्य से कारण की ओर जाना प्रलय है।
दिन में हमारा मन, प्राण और इंद्रियाँ हमारे भीतर से बाहर निकल बाहरी प्रपंच की ओर दौड़ती हैं| रात्रि में फिर बाहर से भीतर की ओर वापस आकर शिव की ओर प्रवृत्ति होती है। इसी से दिन सृष्टि का और रात्रि प्रलय की द्योतक है।
इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आत्मानंद प्रदान करने वाली है और जिसका शिव से विशेष संबंध है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में यह विशेषता सर्वाधिक पाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस दिन चंद्रमा सूर्य के निकट होता है।
इस कारण उसी समय जीव रूपी चंद्रमा का परमात्मा रूपी सूर्य के साथ भी योग होता है। अतएव फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को की गई साधना से जीवात्मा का शीघ्र विकास होता है।
शिवरात्रि पर साधक व्रत- उपवास करके यही प्रयास करते हैं। शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं। यह अध्यात्म साधकों के लिए आदर्श सूत्र है। स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना, स्वयं न्यूनतम में भी मस्त रहना, शिवत्व का प्रामाणिक सूत्र है।
भगवान शिव-शंकर का तत्व दर्शन
- शिवलिङ्ग का अर्थ होता है- शुभ प्रतीक चिह्न- बीज। वह विश्व- ब्रह्माण्ड का प्रतीक है।
- त्रिनेत्र - विवेक से कामदहन
- मस्तक पर चन्द्रमा - मानसिक सन्तुलन
- गङ्गा - ज्ञान प्रवाह
- भूत आदि पिछड़े वर्गों को स्नेह देना
- नशीली वस्तुएँ आदि शिव को चढ़ाने की परिपाटी है। मादक पदार्थ सेवन अकल्याणकारी हैं, किन्तु उनमें औषधीय गुण भी हैं। शिव को चढ़ाने का अर्थ हुआ- उनके शिव- शुभ उपयोग को ही स्वीकार करना, अशुभ व्यसन रूप का त्याग करना।
महाशिवरात्रि पर्व पूजन
- शिवरात्रि पर्व के लिए शिव के चित्र सजाएँ। शिव परिवार तथा गण भी हों, ऐसा चित्र मिल सके, तो और भी अच्छा है। पवित्रता की भावना के साथ सर्वदेव नमस्कार करते हुए, भगवान् शिव, उनके परिवार और गणादि का आवाहन- पूजन किया जाए।
॥ शिव आवाहन॥
- ॐ श्री शिवाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -१६.४९
॥ शिव परिवार आवाहन॥
- शिवजी का परिवार आदर्श परिवार है, सभी अपने- अपने व्यक्तित्व के धनी तथा स्वतन्त्र रूप से उपयोगी हैं। अर्धांगिनी- असुरनिकन्दिनी, भवानी, ज्येष्ठ पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय तथा कनिष्ठ पुत्र प्रथम पूज्य गणपति हैं। शिव के आराधक को शिव परिवार जैसा श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार निर्माण के लिए तत्पर होना चाहिए।
भावना करें कि पारिवारिक आदर्श का प्रवाह हमारे बीच प्रवाहित हो रहा है।
॥ भवानी॥
ॐ श्री गौर्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।॥ स्वामी कार्तिकेय॥
ॐ श्री स्कन्दाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ गणेश॥
ॐ श्री गणेशाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ गण आवाहन॥
- शिवजी के गण उनके कार्य के लिए समर्पित व्यक्तित्व हैं। उनमें भूत- पिशाच पिछड़े वर्ग के भी हैं और देव वर्ग के भी।
प्रधान गण हैं वीरभद्र। वीरता अभद्र न हो, भद्रता डरपोक न हो, तभी शिवत्व की स्थापना होगी।
भले काम के लिए देव- पिशाच सभी एक जुट हो जाएँ, यही प्रेरणा शिवजी के गणों से प्राप्त होती है।
भावना करें कि शिवजी के अनुयायी बनने योग्य प्रवृत्तियों का प्रवाह उमड़ रहा है। हमारे द्वारा पूजित होकर वह हमारे लिए उपयोगी बनेंगे।
ॐ सर्वेभ्यो गणेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
तदनन्तर भगवान् शिव उनके परिवार और गणादि का पुरुषसूक्त से षोडशोपचार पूजन करें। फिर त्रिपत्र युक्त बिल्व पत्र भगवान् शिव को निम्र मन्त्र बोलते हुए चढ़ाएँ।ॐ त्रिदलं त्रिगुणाकारं, त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
तत्पश्चात् सभी लोग हाथ जोड़कर देवाधिदेव की प्रार्थना करें।
॥ अशिवत्व त्याग सङ्कल्प॥
- अशुभ तत्त्वों का भी शुभ योग सम्भव है। कुछ ओषधियों में मादकता और विषैलापन भी होता है, उसे व्यसन न बनने दें। औषधियों का प्रयोग तक उनकी छूट है। व्यसन बन गये हों, तो उन्हें छोड़ें, शिवजी को चढ़ाएँ। सङ्कल्प करें कि इनका अशिव उपयोग नहीं करेंगे। मन्त्र के साथ अशिव पदार्थ छुड़वाए जाएँ, बाद में इन्हें जमीन में गाड़ दिया जाए-
सङ्कल्प करें-
.................नामाहं शिवरात्रिपर्वणि भगवतः शिवप्रीतये तत्सन्निधौ अशिव- चिन्तन निष्ठापूर्वकं सङ्कल्पमहं करिष्ये।
तत्प्रतीकरूपेण ...............दोषं त्यक्तुं सङ्कल्पयिष्ये।
सङ्कल्प के अक्षत- पुष्प सभी लोग पुष्पाञ्जलि के रूप में भगवान् को चढ़ाएँ, बाद में दीपयज्ञ, यज्ञादिकृत्य सम्पन्न करके क्रम समाप्त किया जाए।