वर्तमान समय परिवर्तन का है — युग परिवर्तन का। ऐसा परिवर्तन, जो केवल बाहर की दुनिया में ही नहीं, अपितु हमारे अंतरतम में भी हो रहा है। एक ओर विज्ञान और तकनीकी के नाम पर धरती से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा हो रही है, तो दूसरी ओर मानवीय मूल्यों का क्षरण, परिवारों में विघटन, मनों में अशान्ति, विचारों में अंधकार और जीवन के उद्देश्य में भ्रम भी फैलता जा रहा है।
ऐसे समय में, जब अंधकार चारों ओर छाया हुआ हो — केवल एक दीपक काफी नहीं होता। अंधेरे को परास्त करने के लिए अनेक दीपकों का एक साथ जलना आवश्यक हो जाता है। ये दीपक प्रतीक हैं — जाग्रत आत्माओं, संस्कारवान व्यक्तित्वों, और सेवा, साधना, स्वाध्याय व यज्ञ के पथ पर अग्रसर साधकों के।
हमारे युग ऋषि, पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का तप, उनकी साधना, उनका जीवनदर्शन, उनका साहित्य, उनकी वाणी — ये सब एक दिव्य ज्योति की भाँति हैं, जो आने वाले समय के लिए दिशा-सूचक प्रकाशस्तम्भ हैं। जो कुछ उन्होंने कहा, लिखा, जिया, और उद्घोषित किया, वह न केवल उस समय की आवश्यकता थी, बल्कि आज की, और आने वाले समय की भी अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।
उनके द्वारा उद्घोषित दिव्य स्वप्न — "युग परिवर्तन", "युग निर्माण", "संस्कृति का नवजागरण", "नारी जागरण", "युवा निर्माण", "परिवार निर्माण", आदि — यह सब मात्र विचार नहीं, अपितु एक योजनाबद्ध क्रान्ति के आयाम हैं।
ज्योति कलश यात्रा का उद्देश्य
१. अखण्ड ज्योति के अखण्ड प्रकाश को प्रचण्ड बनाने की भावना से –
पूज्य गुरुदेव के प्रज्वलित विचारों की अखण्ड ज्योति — जो उनके तप, साधना और आत्मबल से प्रज्वलित हुई है — उसे और अधिक प्रचण्ड, प्रभावशाली और प्रेरक बनाने हेतु यह ज्योति कलश यात्रा आरम्भ की गई है।
यह यात्रा केवल प्रतीक नहीं है — यह संवेदनशील साधकों का संकल्प है, जो अपने जीवन को एक चलती-फिरती अखण्ड ज्योति बना देना चाहते हैं। यह आह्वान है कि हम सब मिलकर इस ज्योति को और व्यापक, और तेजस्वी बनाएं — ताकि यह तम को हरने वाली शक्ति जन-जन तक पहुँच सके।
२. ऋषियुग्म की तप, त्याग, तितिक्षा के साक्षी – अखण्ड ज्योति के प्रकाश को जन-जन तक, घर-घर तक, केन्द्रों एवं संस्थानों तक पहुंचाने की भावना से –
पूज्य गुरुदेव और परम वन्दनीया माताजी — यह युगऋषि युग्म के तप, त्याग, और तितिक्षा से उत्पन्न हुआ प्रकाश — अखण्ड ज्योति — कोई साधारण प्रकाश नहीं, यह युगनिर्माण का दिव्य तेज है।
इस तेज को लेकर, यह यात्रा निकली है ताकि घर-घर, मन-मन, केन्द्र-केन्द्र, संस्थान-स्थान — सब कहीं यह दिव्य प्रकाश पहुँचे। यह प्रयास है कि हर हृदय में वह तपस्वी भाव जगे, हर परिवार में आदर्श निर्माण हो, और हर संस्था इस युग निर्माण यज्ञ की सक्रिय इकाई बने।
३. जिन घरों, जिन मनों तक पूज्य गुरुदेव के विचारों को पहुंचाना अभी शेष है – वहाँ तक पहुँचाने की भावना से –
आज भी कई ऐसे घर, कई ऐसे मन हैं जो पूज्य गुरुदेव के विचारों, उनके साहित्य, उनके संकल्पों और युगधर्म के आवाहन से अछूते हैं। यह ज्योति कलश यात्रा एक ऐसा माध्यम है जिससे उन तक संस्कार, साधना और सेवा का आलोक पहुँचे।
यह यात्रा मनुष्यता को जगाने की, हृदयों को संवेदनशील बनाने की, और जीवन को तपोमय दिशा में मोड़ने की एक सशक्त पहल है। यह एक विनम्र आव्हान है उन हृदयों हेतु जो अभी भी आलस्य, अविश्वास या अज्ञान के पर्दों में घिरे हुए हैं।
४. अखण्ड ज्योति एवं परम वन्दनीया माताजी के दिव्य अवतरण वर्ष 1926 के 100 वर्ष पूर्ण होने पर 2026 के शताब्दी वर्ष की तैयारी –
सन 1926 — यह केवल एक वर्ष नहीं, एक दिव्य अवतरण का वर्ष है। इसी वर्ष इस धरती पर दो दिव्य सत्तायें — युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा अखंड ज्योति द्वारा प्राकट्य व एवं वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा जी का अवतरण — दोनों ही विराट योजना का सूत्रपात हैं।
वर्ष 2026 में इन दिव्य सत्ताओं के आगमन के शताब्दी वर्ष की पूर्णता हो रही है। यह केवल एक तिथि नहीं, एक आवहन, एक अवसर है, जिसमें उनके उद्देश्यों के संदेश को जन-जन तक पहुँचाना, उनकी युग निर्माण योजना को सक्रिय करना और शताब्दी वर्ष को एक वैचारिक पर्व के रूप में मनाना है।
ज्योति कलश यात्रा इस शताब्दी वर्ष की आध्यात्मिक तैयारी है — ताकि हर साधक इस अवसर को जीवन का पुनर्निर्माण बनाने का अवसर बनायें।
पूर्व तैयारी
युग परिवर्तन के इस जाग्रत क्षण में, जब ज्योति कलश यात्रा जैसे पावन संकल्प को साकार करने की तैयारी चल रही है, तब केवल बाहरी आयोजन पर्याप्त नहीं — भीतर से भी सजने, संवरने और तैयार होने की आवश्यकता है।
यह यात्रा एक दैवी प्रेरणा है, और ऐसी प्रेरणाएँ तभी सफल होती हैं जब साधकों का मन, तन, और परिवेश पूर्णतया तैयार हो। अतः इस दैवी यात्रा के स्वागत हेतु की जाने वाली पूर्व तैयारियाँ भी उतनी ही पवित्र और शक्तिशाली होंनी चाहिएं।
१. व्यक्तिगत एवं सामूहिक अनुष्ठान, साधना का क्रम — आत्मिक उन्नयन की आधारशिला
हर साधक का हृदय इस यात्रा के लिए एक मन्दिर बने, और हर दिन एक आहुति हो उस आत्मदीप्ति के यज्ञ में। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति —
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अपने व्यक्तिगत जप-अनुष्ठान,
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प्रातःकालीन उपासना,
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सामूहिक संध्याएँ,
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और नियमित स्वाध्याय में प्रवेश करे।
यह साधना मात्र क्रिया नहीं, यह भावनात्मक तैयारी है ताकि हमारी आत्मा इस दैवी आयोजन की ऊर्जस्विता को अनुभव कर सके।
२. यज्ञ, दीपयज्ञ व संस्कार — शुभ संस्कारों के जागरण का सामूहिक पुरुषार्थ
जहाँ यज्ञ होता है वहाँ दैवी चेतना का अवतरण होता है।
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यज्ञ का धूम्र वायुमण्डल को शुद्ध करता है।
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उसकी भावना जीवन में संस्कारों का पुष्पवर्षा करती है।
अतः घरों, मोहल्लों, केन्द्रों, गाँवों, नगरों में यथासंभव दीपयज्ञ, गायत्री यज्ञ, संस्कार (मुण्डन, यज्ञोपवीत, दीक्षा आदि) के आयोजन हों — ताकि सामूहिक रूप से वातावरण पवित्र हो और लोगों का अंतर्मन ज्योति कलश के स्वागत हेतु तैयार हो।
३. जनसम्पर्क एवं जनजागरण — श्रद्धा और समझ का दीपक जलाना
अनेक लोग ऐसे हैं जो पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी के दिव्य अवतरण, उनके मिशन की महानता और 2026 के शताब्दी वर्ष की महत्ता से अब भी अनभिज्ञ हैं।
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हमारे कर्तव्य हैं कि हम उन्हें श्रद्धा और यथार्थ के साथ जोड़ें।
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इसके लिए जनसम्पर्क हो, घर-घर जाकर अखण्ड ज्योति की प्रति पहुँचाई जाए,
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ऋषियुग्म की योजना का परिचय दिया जाए,
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और इस यात्रा को एक दैवी अनुष्ठान के रूप में समझाया जाए।
यह कार्य केवल प्रचार नहीं, यह चेतना का संचार है।
४. घर एवं केन्द्र की सज्जा — ऋषियुग्म के स्वागत की आंतरिक-अंतःकरणीय तैयारी
जैसे कोई अतिथि आने वाला होता है, तो घर को सजाया जाता है, वैसे ही ऋषियुग्म की चेतना का आगमन हो रहा है।
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अतः घरों और केन्द्रों में गायत्री मंत्र, युग सन्देश, आदर्श चित्र, दीपदीप जलाकर, मशाल लगाकर एक ऐसा माहौल बनाया जाए —
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कि वहाँ आने वाला हर व्यक्ति अनुभव करे — "यह स्थान साधारण नहीं, ऋषिचेतना की तपस्थली है।"
हर घर, हर केन्द्र एक मन्दिर बन जाए जहाँ देवत्व की अनुभूति हो।
सूक्ष्मीकरण साधना एवं पाँच वीरभद्र — युग संकल्प के दिव्य प्रहरी
पूज्य गुरुदेव ने सूक्ष्मीकरण साधना के माध्यम से पाँच दिव्य संकल्प गढ़े — जिन्हें उन्होंने पाँच वीरभद्र / रामदूत कहा। इनके माध्यम से उन्होंने पाँच महान कार्यों का दायित्व ऋषिसत्ता को सौंपा:
१. वायुमण्डल का शोधन —
प्राकृतिक पर्यावरण की अशुद्धियों को ऋषिचेतना की दिव्य तरंगों से शुद्ध करना।
२. वातावरण का परिशोधन —
मानव के मानसिक व भावनात्मक वातावरण से नकारात्मकता का हरण कर, सत्त्वगुण की स्थापना।
३. नवयुग का निर्माण —
संस्कार, विचार, आचरण व समाज की संरचना को सत्य, शिव और सुंदर के आदर्शों पर आधारित करना।
४. महाविनाश की संभावना का निरस्तीकरण —
निराशा, अशांति और अराजकता के तूफानों को रोकना, ताकि विनाश नहीं, विकास हो।
५. देव मानवों को जोड़ना —
अंततः, यही वह कार्य है जो साधकों के लिए संभव है।
देव मानवों को जोड़ना — हमारा युगधर्म
इन पाँच कार्यों में से पहले चार कार्य ऋषिसत्ता स्वयं संभाल रही है।
परंतु पाँचवाँ कार्य — देव मानवों को जोड़ना — हम सब साधकों का धर्म है।
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हम उन आत्माओं को खोजें जो निःस्वार्थ, आदर्शवादी, सेवाभावी, सत्यप्रिय हैं,
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उन्हें युग चेतना से जोड़ें,
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उन्हें युग निर्माण के महायज्ञ का आहुति दाता बनाएं।
हर साधक एक युगदूत बनकर देवत्व को जगाने वाला दीपक बन जाए।
क्या करें — जागाएँ एवं जोड़ें
जगाएँ और जोड़ें — आत्मजागरण से विश्वजागरण तक
ज्योति कलश यात्रा कोई सामान्य यात्रा नहीं, यह एक आत्मिक अभियान है, ऋषियों के जागरण का अभिनव प्रयास है। इस यात्रा की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब पथ में आने वाले प्रत्येक मनुष्य को हम जोड़ सकें, हर केन्द्र को हम जगा सकें।
जगाने की आवश्यकता — आत्मा को पुकारने का आह्वान
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सोते केन्द्रों को जगाएँ
जिन केन्द्रों में कभी गतिविधियाँ थीं, परन्तु अब वह निष्क्रिय हैं — वहाँ पुनः चेतना का संचार करें। गुरुसत्ता के प्रकाश से पुनः प्रज्वलन का संकल्प लें। -
सोती गतिविधियों को जगाएँ
जिन योजनाओं और अभियानों की शुरुआत हुई थी, वे कहीं रुकी हों तो उन्हें फिर से क्रियान्वित करें। साहित्य वितरण, दीवार लेखन, दीपयज्ञ, रचनात्मकता को पुनः गति दें। -
सोते व्यक्तियों को जगाएँ
जिनके अंतर्मन में कभी सृजन और सेवा की भावना जगी थी, उन्हें प्रेमपूर्वक प्रेरणा दें — “जागो! युग पुकार रहा है।” उन्हें दोबारा सक्रिय बनाना हमारा गुरुसेवा है।
सक्रिय करें — युग निर्माण योजनाओं को गति दें
गायत्री परिवार की विविध शाखाएँ एवं अभियानों को पुनः सक्रिय करना, उन्हें नवचेतना देना इस युग धर्म का अंग है।
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ज्ञानघट
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प्रज्ञा मण्डल
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महिला मण्डल
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युवा मण्डल
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स्वाध्याय मण्डल
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चल पुस्तकालय / झोला पुस्तकालय
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दीवार लेखन
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सप्तक्रान्तियाँ
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रचनात्मक आंदोलन
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समयदान, अंशदान
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देवस्थापना अभियान
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घर-घर यज्ञ एवं संस्कार
इन समस्त अभियानों में जनभागीदारी सुनिश्चित करते हुए, परिजनों को संलग्न करें।
गायत्री परिवार के आत्मीय परिजनों को जोड़ने की रणनीति
चार प्रकार के परिजनों को जाग्रत करना — नये सृजन की ओर
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नैष्ठिक एवं प्राणवान परिजन
जिनकी हर साँस में पूज्य गुरुदेव बसे हैं — उन्हें अग्रिम पंक्ति में लाएं। वे न केवल स्वयं सक्रिय रहें, वरन् अन्य को भी जगाएँ। -
कार्यक्रमों में सक्रिय, परन्तु अन्य समय निष्क्रिय
उन्हें स्पष्ट संदेश दें —
“हर क्षण ही कार्यक्रम है, पूज्य गुरुदेव ने कहा है— हमें प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, हर दिन को एक नया युगकार्य मानकर जियें।” -
पूर्व में जाग्रत, वर्तमान में निष्क्रिय परिजन
जिन्होंने कभी योगदान दिया पर किसी कारणवश पीछे हटे — उन्हें आत्मीयता से पुनः आमंत्रित करें। पुराने अनुभवों को भूलकर, नये सिरे से युगकार्य में लगें। -
पूर्व परिचित, पर वर्तमान में भटके परिजन
जिन्होंने कभी यज्ञ, संस्कार, साहित्य, शान्तिकुञ्ज यात्रा के माध्यम से संपर्क किया — उन्हें पहचानें, संपर्क करें, और पुनः जोड़ें।
कैसे जोड़ें ‘देव मानवों’ को?
गुरुदेव ने कहा है —
“देवता मंदिरों में नहीं, हृदयों में बसते हैं।”
अपने परिचय क्षेत्र में ऐसे सज्जनों को खोजें:
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जिनके भीतर सच्ची भावना है
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जिनमें सृजन और सेवा की प्रेरणा जगाई जा सकती है
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जिनके जीवन में आदर्शों की कमी नहीं, बस एक दिव्य दिशा की प्रतीक्षा है
नवसंवत्सर विशेष कार्ययोजना
नववर्ष = नवऊर्जा + नवभाव + नवसंकल्प
यह केवल तिथि परिवर्तन नहीं, जीवन परिवर्तन का अवसर है।
इस दिन हम स्वयं को नया बनाते हैं, और समाज के उन व्यक्तियों को खोजते हैं, जो देश, धर्म, समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें दिशा नहीं मिल पाती।
उन्हें जोड़ने की प्रक्रिया
"हमारा दायित्व केवल जोड़ना है, शेष कार्य गुरुसत्ता कर लेगी।"
यही भाव लेकर जब हम किसी व्यक्ति को मिशन से जोड़ते हैं, तो यह केवल किसी संगठन से जुड़ाव नहीं, बल्कि एक युग परिवर्तनकारी चेतना से जुड़ने जैसा है। इसकी प्रक्रिया चरणबद्ध रूप से इस प्रकार है:
नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोह के पाँच चरण
यह समारोह आत्मीयता और संगठन का संयोजन है, जहाँ परिजन केवल उपस्थित नहीं होते, बल्कि भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं:
परिचय — आत्मीयता के सेतु का आरम्भ
सभी अतिथियों, परिजनों, नवजनों का हृदय से स्वागत करें।
प्रत्येक को अवसर दें अपने आप को और अपने भाव को साझा करने का।
"पहचान से अपनत्व की शुरुआत होती है।"
प्रेम — भोजन साथ में, भावना एक साथ
भोजन केवल शरीर के लिए नहीं, संपर्क और संवाद का माध्यम भी बनता है।
सामूहिक भोजन के आयोजन से दूरी कम होती है, आत्मीयता बढ़ती है।
"साथ खाएं, साथ हँसे – यही है संगठन की बुनियाद।"
प्रगति — मण्डलों और केन्द्रों का साझा प्रतिवेदन
कार्य किसने क्या किया, कैसे किया – यह साझा करने से प्रेरणा मिलती है और दिशा स्पष्ट होती है।
एक छोटा-सा प्रजेंटेशन या रिपोर्ट भी दी जा सकती है।
"अनुभव साझा करने से संगठन संबलित होता है।"
प्रस्ताव — आगामी योजनाओं की प्रस्तुति
अब आने वाले कार्यक्रमों, अभियानों, संकल्पों का उल्लेख करें।
सभी से सुझाव लें ताकि हर कोई स्वामित्व महसूस करे।
"जब योजना सबकी होती है, तो कार्य भी सबका बनता है।"
प्रयास — नूतन कार्यों की संकल्पना
समारोह का समापन संकल्प के साथ हो।
नवकार्यों की सूची बनाकर, "मैं क्या कर सकता हूँ?" इस पर विचार हो।
"संकल्प बिना प्रयास अधूरा है। प्रयास बिना संकल्प निरर्थक है।"
नवसंवत्सर पर खोजें — पाँच प्रकार के परिजन
इस विशेष अवसर पर ऐसे श्रेष्ठजन खोजे जाएँ जो समाज में प्रभावशाली हैं और मिशन के आदर्शों से जुड़ सकते हैं:
1. विद्वान्
शिक्षक, लेखक, वक्ता – जिनके विचारों से समाज प्रेरित होता है।
2. धनवान्
वे जो उदार हैं, और सामाजिक कार्यों में संसाधनों से मदद कर सकते हैं।
3. शक्ति सम्पन्न
प्रशासनिक, राजनीतिक या संस्थागत जिम्मेदारियों वाले व्यक्ति।
4. प्रतिभा सम्पन्न
कला, विज्ञान, खेल, तकनीकी, संगीत आदि में विशेष प्रतिभा रखने वाले।
5. भावनाशील
संवेदनशील, सेवा-भावनाओं से ओतप्रोत व्यक्ति – जो कार्य को अपना समझकर करेंगे।
इनके भीतर एक ही दीप जलाना है – गुरुदेव का विचार दीप।
अभियान की प्रक्रिया: चरणबद्ध जोड़ने की योजना
ढूँढना
सबसे पहले अपने संपर्क-सूची (फोन बुक, सोशल मीडिया, मोहल्ला, कार्यालय) में देखिए कि कौन-कौन श्रेष्ठ लोग हैं जिनमें भावनाएं हैं लेकिन दिशा नहीं।
"जोड़े नहीं जाते, खोजे जाते हैं!"
मिलना
उनसे व्यक्तिगत या पारिवारिक भाव से मिलिए। औपचारिकता नहीं, आत्मीयता हो।
मिलने का कोई कारण बनाइए—भोजन, उपहार, चर्चा, सत्संग, आदि।
"पहले मन मिलाएं, फिर बात बढ़ाएँ।"
मिशन समझाना
अब धीरे-धीरे उन्हें गुरुदेव के विचारों, गायत्री परिवार की प्रेरणाओं और रचनात्मक आंदोलनों से परिचय दें।
साहित्य, युगवाणी, वीडियो, ऑडियो क्लिप, आदि का सहयोग लें।
भाव जगाना
उन्हें यह अनुभव कराएँ कि वे समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं, मिशन के लिए अनिवार्य हैं।
कोई कथा, अनुभव, संगीत, संस्मरण भाव जगाने के लिए उपयोग करें।
"भावनाएँ जगेंगी तो संकल्प अपने आप उठेगा।"
दो पग की यात्रा
पग 1: नजदीकी केन्द्र की यात्रा
उन्हें स्थानीय गतिविधियों से जोड़ें — मण्डल, यज्ञ, सत्संग, योग क्लास, बाल संस्कार आदि।
पग 2: युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज का प्रवास
यदि वे भाव से जुड़े हैं, तो शान्तिकुञ्ज ले जाएँ। वहाँ का वातावरण, गुरुसत्ता का स्पंदन, परिजनों की सेवा उन्हें जीवनपर्यंत जोड़े रखेगा।
"जहाँ श्रद्धा जन्म लेती है, वहीं समर्पण पनपता है।"
शान्तिकुञ्ज से प्रेरणा प्राप्त कर लौटने के चिन्ह:
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दीक्षा सेट
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अखण्ड ज्योति सदस्यता
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पाक्षिक साहित्य
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युग साहित्य
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स्वर्ण जयन्ती डॉक टिकट
देवस्थापना — घर-घर में युग चेतना का प्रतिष्ठापन
घर के दरवाजे की घण्टी से लेकर पूजा घर की घण्टी तक —
हर घर में गायत्री चेतना का दीप प्रज्वलित हो।
हर मन में श्रद्धा, हर आँगन में संस्कार — यही पूज्य गुरुदेव की कल्पना का युगनिर्माण है।
ब्रह्मकमल के बीज गुरुदेव ने बोए हैं —
हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें ढूँढें,
और उन्हें भाव, सेवा, श्रम, साहित्य, यज्ञ और संस्कार से सींचें।
यही ‘ज्योति कलश यात्रा’ का सच्चा उद्देश्य है —
एक दीप से दूसरा दीप जलाना, जब तक संपूर्ण विश्व दीपमय न हो जाए।