Monday 12, May 2025
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, बैशाख 2025
पंचांग 12/05/2025 • May 12, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | पूर्णिमा तिथि 10:25 PM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र स्वाति 06:17 AM तक उपरांत विशाखा | वरीयान योग | करण विष्टि 09:15 AM तक, बाद बव 10:25 PM तक, बाद बालव |
मई 12 सोमवार को राहु 07:11 AM से 08:51 AM तक है | 02:27 AM तक चन्द्रमा तुला उपरांत वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:30 AM सूर्यास्त 6:57 PM चन्द्रोदय 6:56 PM चन्द्रास्त 5:24 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- May 11 08:02 PM – May 12 10:25 PM
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
- May 12 10:25 PM – May 14 12:36 AM
नक्षत्र
- स्वाति - May 11 03:15 AM – May 12 06:17 AM
- विशाखा - May 12 06:17 AM – May 13 09:09 AM

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तप का अर्थ क्या हैं ? Tap Ka Arth Kya Hai
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 12 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी:संकट में भगवान ही अंतिम आश्रय है | Sankat Mei Bhagwan Hi Ashrya Hai| गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
जब देवता मुसीबत में आए हैं, तब वो भाग करके भगवान के पास गए हैं और यह कहा है, "हमारी मुसीबत को आप दूर कर दीजिए।" तो भगवान ने कोई न कोई उपाय निकाला है। चाहे बाराह का निर्माण किया हो, भले से सीता का निर्माण किया हो, भले से उसकी अस्थि से दधीच की अस्थियों से इन्द्रवज्र बनाया हो, जो भी उपाय किया गया हो, लेकिन उन्होंने उपाय किया है।
चाहे स्वर्ग से गंगा को जमीन पर लाया गया हो, ऐसे बड़े उपाय भगवान के द्वारा संभव हैं, इंसान के द्वारा संभव नहीं है। तो भगवान को पुकारने के लिए हमने इस समय में एक बड़ा उपयोगी, बड़ा सर्वसाधारण के लिए एक आवश्यक उपाय निकाला है। आवश्यक उपाय आपके सामने हैं।
आपको बताया भी जा चुका है कि अब यज्ञ वो नहीं होने चाहिए जिनमें सैकड़ों हजारों रुपए खर्च हो जाते थे। जनता देने लायक भी नहीं है, और जनता देने लायक भी हो तो जनता में से हर एक का यह ख्याल है कि पानी बरसना चाहिए। यज्ञ से पानी बरसना चाहिए, और यज्ञ से पानी बरसने की संभावना के बारे में हम आपको कोई विश्वास नहीं दिला सकते।
इस साल का पूरा समय किस तरीके से कटेगा, हम आपको इसकी ठीक जानकारी देकर आपको डराना नहीं चाहते, हैरान नहीं करना चाहते। पर ये जरूर कहेंगे कि वर्षा का संतुलन बिगड़ा हुआ है। क्योंकि यज्ञ आप बड़े यज्ञ करेंगे, वर्षा का संतुलन न होने पर जनता क्या कहेगी? आपको आपका उपहास होगा, और यज्ञ का अपमान होगा, हमारा अपमान होगा, जो कि हमने स्कीम बनाई है।
इसलिए यज्ञों को तो हर जगह जैसे पाँच साल हुए उन्हें सीमित रखा है। उसके स्थान पर नए यज्ञों की शैली प्रकट की है, जो गरीब से गरीब लोगों के यहां भी की जा सकती है। जो लोग संपन्न नहीं हैं, वह लोग भी आसानी से करा सकते हैं।
वह कौन सा है? यह दीप यज्ञ है। यज्ञ के कर्मकांड तो वही हैं, सब जो कि सामान्य यज्ञ में हुआ करते हैं। दो-एक बातें कम कर दी गई हैं, जैसे कि स्विष्टकृतहोमः कम कर दिया गया है, पूर्णाहुति कम कर दी गई है, वसोर्धारा कम कर दी गई है, आदि।
तीन-चार चीजें उसमें कम कर दी गई हैं। बाकी यज्ञ के मंत्र, यज्ञ के आवाहन और यज्ञ का सारा स्वरूप वही है, केवल वस्तुएं कम कर दी जाती हैं।
अखण्ड-ज्योति से
आत्म चिन्तन कहेगा- नहीं-नहीं-नहीं। आत्मा इतना हेय और हीन नहीं हो सकता। वह इतना अपंग और असमर्थ-पराश्रित और दुर्बल कैसे होगा? यह तो प्रकृति के पराधीन पेड़-पौधों जैसा-मक्खी, मच्छरों जैसा जीवन हुआ। क्या इसी को लेकर-मात्र जीने के लिए मैं जन्मा। सो भी जीना ऐसा जिसमें न चैन, न खुशी, न शान्ति, न आनन्द, न सन्तोष। यदि आत्मा-सचमुच परमात्मा का अंश है तो वह ऐसी हेय स्थिति में पड़ा रहने वाला हो ही नहीं सकता। या तो मैं हूँ ही नहीं।
नास्तिकों के प्रतिपादन के अनुसार या तो पाँच तत्वों के प्रवाह में एक ‘भंवर जैसी बबूले जैसी क्षणिक काया लेकर उपज पड़ा हूँ और अगले ही क्षण अभाव के विस्मृति गर्त में समा जाने वाला हूँ। या फिर कुछ हूँ तो इतना तुच्छ और अपंग हूँ जिसमें उल्लास और सन्तोष जैसा-गर्व और गौरव जैसा-कोई तत्व नहीं है। यदि मैं शरीर हूँ तो-हेय हूँ। अपने लिए और इस धरती के लिए भारभूत। पवित्र अन्न को खाकर घृणित मल में परिवर्तन करते रहने वाले-कोटि-कोटि छिद्रों वाले इस कलेवर से दुर्गन्ध और मलीनता निसृत करते रहने वाला-अस्पर्श्य-घिनौना हूँ ‘मैं’। यदि शरीर हूँ तो इससे अधिक मेरी सत्ता होगी भी क्या?
मैं यदि शरीर हूँ तो उसका अन्त क्या है? लक्ष्य क्या है? परिणाम क्या है? मृत्यु-मृत्यु-मृत्यु। कल नहीं तो परसों वह दिन तेजी से आँधी तूफान की तरह उड़ता उमड़ता चला आ रहा है, जिसमें आज की मेरी यह सुन्दर सी काया-जिसे मैंने अत्यधिक प्यार किया-प्यार क्या जिसमें पूरी तरह समर्पित हो गया-घुल गया। अब वह मुझसे विलग हो जायगी। विलग ही नहीं अस्तित्व भी गँवा बैठेगी। काया में घुला हुआ ‘मैं’-मौत के एक ही थपेड़े में कितना कुरूप-कितना विकृत-कितना निरर्थक-कितना घृणित हो जायगा कि उसे प्रिय परिजन तक-कुछ समय और उसी घर में रहने देने के लिए सहमत न होंगे जिसे मैंने ही कितने अरमानों के साथ-कितने कष्ट सहकर बनाया था। क्या यही मेरे परिजन हैं? जिन्हें लाड़-चाव से पाला था। अब ये मेरी इस काया को-घर में से हटा देने के लिए-उसका अस्तित्व सदा के लिए मिटा देने के लिए क्यों आतुर हैं? कल वाला ही तो मैं हूँ।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 4
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