Monday 25, November 2024
कृष्ण पक्ष दशमी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 25/11/2024 • November 25, 2024
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | दशमी तिथि 01:02 AM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 01:24 AM तक उपरांत हस्त | विष्कुम्भ योग 01:11 PM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण वणिज 11:39 AM तक, बाद विष्टि 01:02 AM तक, बाद बव |
नवम्बर 25 सोमवार को राहु 08:12 AM से 09:29 AM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:55 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 1:25 AM चन्द्रास्त 1:56 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- कृष्ण पक्ष दशमी - Nov 24 10:20 PM – Nov 26 01:02 AM
- कृष्ण पक्ष एकादशी - Nov 26 01:02 AM – Nov 27 03:47 AM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - Nov 24 10:16 PM – Nov 26 01:24 AM
- हस्त - Nov 26 01:24 AM – Nov 27 04:34 AM
Aalasya Na Karna Hi Amrit Pad Hai
| Prabhu Se Prarthana
Beej Ki Tarah Galen Part 04
Andhe or langde ki kahani
Aaj Hi Kyun Nahi |
अपने आपको नई नई विषम तथा विरोधी परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेना, इच्छाओं, आवश्यकताओं और रहन सहन को नवीन परिस्थितियों के अनुसार घटा बढ़ा लेना एक बड़ा गुण है। मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरे व्यक्तियों, चाहे वे कैसे ही गुण स्वभाव के क्यों न हों, के अनुसार अपने को ढालना सीखे। नई परिस्थितियाँ चाहे जिस रूप में आयें, उसके वश में आ जायं। अच्छी और बुरी आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार अपने को घटा बढ़ा लिया करें।
अधिकाँश व्यक्ति दूसरे के अनुसार अपने को ढाल नहीं पाते, इसलिए वे दूसरों का हृदय जीत नहीं पाते, न झुक सकने के कारण वे सफल नहीं हो पाते। पत्नी पति के अनुसार, पति पत्नी के अनुसार, विक्रेता ग्राहक के अनुसार, मातहत अफसर के अनुसार, विद्यार्थी गुरु के अनुसार, पुत्र पिता के अनुसार न ढल सकने के कारण दुःखी रहते हैं।
आप बेंत की तरह लचकदार बनें जिससे अपने को हर प्रकार के समाज के अनुसार ढाल लिया करें। इसके लिए आप दूसरे की रुचि, स्वभाव, आदतों और मानसिक स्तर का ध्यान रखें। शक्कर से मीठे वचन बोलें, प्रेम प्रदर्शित करें, दूसरों की आज्ञाओं का पालन करें। आपसे बड़े व्यक्ति यह चाहते हैं कि आप उनकी आज्ञा का पालन करें। सभ्यता पूर्वक दूसरे से व्यवहार करें। ढलने की प्रवृत्ति से मित्रताएं स्थिर बनती हैं, व्यापार चलाते हैं, बड़े बड़े काम निकलते हैं। इस गुण से इच्छा शक्ति बढ़ती है और मनुष्य अपने ऊपर अनुशासन करना सीखता है। इससे आत्मबलिदान की भावना का विकास होता है, स्वार्थ नष्ट होता है।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 19
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Aap Hamare Bacche Hai |
Sansaar Kya Hai Aur Hum Kaisa Jeevan Jiyen |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 25 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संकल्प किसे कहते हैं ? द्रोपदी ने बाल बिखेर दिए थे और यह कहा था बाल मैं तब बांधूगी कब बाधूंगी जब कि मैं इसका इन बालों को उखाड़ने वाले और बालों का अपमान करने वालों का बदला ले लूँ और चाणक्य ने अपनी चोटी, उखाड़ खोल दी थी उन्होंने कहा अब चोटी में गांठ लगाऊँगा तब जब नन्द साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दूँ। तब तक तब तक चोटी नहीं बाधूँगा संकल्प की शक्ति। अरे आपने ये प्रतिज्ञा की थी पहाड़ खोदकर के नहर लेकर के आऊंगा और उसने पहाड़ खोदकर के नहर लेके आया संकल्प बड़े बड़े करो संकल्पों की शक्ति कुछ कम नहीं होती संकल्पों की शक्ति का अवतरण हमारे ऊपर होता रहा है हर साल और हम निश्चय करते हैं हम करेंगे और हमने करके दिखा दिया। व्यक्ति को संकल्प का मोह, संकल्प की क्षमता, संकल्प की सामर्थ्य, संकल्प का तेज, संकल्प का प्रभाव बताने के लिए प्रयत्न किया जाए आपको कुछ करना है तो एक ही तरीका है संकल्प कीजिए और फिर देखिए आपके भीतर कितनी शक्ति आती है संकल्प की शक्ति बड़ी कमजोरियां है आपकी सब कमजोरियां दूर हो जाएंगी संकल्प की शक्ति से।
अखण्ड-ज्योति से
आप जो सफलता प्राप्त करते हैं उसे ईश्वर अर्पण करें। इसका अर्थ होता है, जो मिला है वह ईश्वर की कृपा से मिला है। इससे वह अहंकार न होगा जिससे व्यक्ति घमण्डी हो जाता है और किये हुए पर अभिमान करने लगता है। अभिमानी व्यक्ति अपनी आँखों में बड़ा बनने की तो कोशिश करता है, पर दूसरों की आँख में उतना ही छोटा हो जाता है। जो काम ईश्वर अर्पण किये जाते हैं वे अच्छे ही हो सकते हैं। कोई अपने माननीय मेहमान को जो परोसेगा, उसके बारे में पहले से ही ध्यान रखेगा कि वे शुद्ध और बढ़िया हों। ईश्वर अर्पण का ध्यान आते ही व्यक्ति सबसे पहले यह सोचता है कि जो काम अर्पित किये गये हैं वे उच्चकोटि के हैं या नहीं। सत्कर्म और ईश्वरार्पण कर्म एक ही बात है। बुरे काम करें और उन्हें ईश्वर को अर्पण करें ऐसा तो हो ही नहीं सकता।
जिस प्रकार बैंक में जमा कर देने पर राशि ब्याज समेत बढ़ती है और कुछ ही समय में कई गुनी हो जाती है। उसी प्रकार ईश्वरार्पण किये कर्म जितने किये गये थे उतने ही नहीं रहते वरन् कई गुने हो जाते हैं।
ईश्वर सत्कर्म ही ग्रहण करता है और उसे सत्कर्म ही समर्पित किये जाते हैं। सत्कर्म अर्थात् जन कल्याण के लिए किये गये काम। सत्कर्म माने वे काम जो उच्चस्तरीय और आदर्शवादी हों।
ईश्वर ने हमें इतना दिया है कि हम अपने कृत्यों का एक अंश यदि उसे समर्पित करते हैं तो उसके अनन्त अहसानों में से एक अंश चुकाते और हल्के होते हैं। ईश्वर श्रेष्ठता के समुच्चय को कहते हैं। श्रेष्ठता की अपने में अभिवृद्धि- इस संसार में सत्प्रयोजनों की अभिवृद्धि- इन सबका परिणाम होता है- लोककल्याण। लोक कल्याण से दूसरों का जितना भला होता है उससे अनेक गुना अपना होता है। क्योंकि परमार्थ से अपने ही गुण कर्म और स्वभाव की मात्रा बढ़ती है। यह लाभ अपने लिये ही तो हुआ। ईश्वरार्पण शब्द कह देने मात्र से कुछ बनता नहीं। ऐसे तो कोई दुष्ट दुरात्मा अपने पाप कर्मों के दण्डों से बचने के लिए जीभ की नोंक से यह कह सकता है कि किये हुए कर्म ईश्वर को समर्पित कर दिये। अब हमारे किये दुष्कर्मों का दण्ड ईश्वर भोगे। यह धूर्तता की चरम सीमा है। ऐसा ईश्वर समर्पण तो उलटा पापों का बोझ बढ़ाता है। ईश्वर भक्ति इस प्रकार नहीं हो सकती। ईश्वर भक्ति के लिए निर्मल मन चाहिए। निर्मल मन उन्हीं का हो सकता है जो पुण्यात्मा और परमार्थ परायण हैं। ईश्वर भक्ति के- उसके प्रति समर्पण भावना उत्पन्न होने के चिन्ह यही हैं कि मन, बुद्धि और चित्त में पवित्रता का परमार्थ परायणता का- श्रेष्ठ कर्म करने का भाव हो।
पूजा उपासना के किये गये उपचार इसी हेतु हैं कि धूप, द्वीप, नैवेध अक्षत, चन्दन, पुष्प आदि उपादेय पवित्र वस्तुएं भगवान को समर्पित करने का प्राथमिक समर्पण करने का अभ्यास करके अपने सद्गुणों की माला ईश्वर के गले में पहनावें और सत्कर्म करते हुए सच्चे अर्थों में ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयत्न करें।
उनकी पूजा पाखण्ड मात्र है जो करने को तो दुष्कर्म करते हैं, मन में दुर्गुण भरे रहते हैं। जो सोचते हैं कि नाम जप या पूजा उपचार का कुछ क्रिया-कृत्य करके भगवान को बहका लेंगे और अपने दुष्कर्मों के पापों को ईश्वर से क्षमा करा लेंगे।
पूजा उपचार का सीधा सच्चा तरीका एक ही है कि हम अपने कर्मों को इस योग्य बनावें कि वे ईश्वर को समर्पित कर सकने योग्य बन सकें। ईश्वर अर्थात् श्रेष्ठता उसके प्रति स्वयं को, अपने कामों को समर्पित करना- प्रकारान्तर से श्रेष्ठता को अपनाना ही है।
अखण्ड ज्योति, नवम्बर 1984
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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