Sunday 24, November 2024
कृष्ण पक्ष नवमी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 24/11/2024 • November 24, 2024
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष नवमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | नवमी तिथि 10:20 PM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 10:16 PM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | वैधृति योग 12:17 PM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण तैतिल 09:05 AM तक, बाद गर 10:20 PM तक, बाद वणिज |
नवम्बर 24 रविवार को राहु 03:56 PM से 05:13 PM तक है | 05:02 AM तक चन्द्रमा सिंह उपरांत कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:54 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 12:31 AM चन्द्रास्त 1:30 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- कृष्ण पक्ष नवमी - Nov 23 07:57 PM – Nov 24 10:20 PM
- कृष्ण पक्ष दशमी - Nov 24 10:20 PM – Nov 26 01:02 AM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Nov 23 07:27 PM – Nov 24 10:16 PM
- उत्तर फाल्गुनी - Nov 24 10:16 PM – Nov 26 01:24 AM
आप ज्ञान रथ चलाइए |
प्रज्ञायोग की साधना |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 November 2024 !!
!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 November 2024 !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 November 2024 !!
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!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 24 November 2024 !!
!! आज के दिव्य दर्शन 24 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 November 2024 !!
!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma HimalayaMandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 24 November 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
कोई आदमी यह कलंक लगाने न पाए गुरू जी ने स्वयं तो गायत्री उपासना की थी और लोग उनको गायत्री का सिद्ध पुरूष कहते थे और यह कहते थे गायत्री माता का आचार्य जी ने साक्षात्कार किया है। गायत्री स्वरूप में लोग कहते हैं इसमें मिलावट भी हो सकती है और बड़ी बात भी हो सकती है। लेकिन जहां तक मैं समझता हूं, मैंने गायत्री के बारे में जानकारी प्राप्त करने में कोई कमी नहीं रखी है और उसका अनुसंधान करने में मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में कोई चूक नहीं की है, मैं यह कहता हूं जानकारी आपकी सही हो तो अब से हजार वर्ष बाद कभी भी आपको इस मार्ग पर चलने की इच्छा हो तो आपको एक सही जानकारी मिल जाए तो मेरा विश्वास है आप सही जानकारी प्राप्त करके सही कदम उठाते हुए थोड़ा सा भी चल लेंगे उसी परसेंट से उसी अनुपात से फायदा जरूर मिलेगा थोड़ा ही मिलेगा पर मिलेगा जरूर अगर आपका प्रोसीजर सही है तब अगर आपका शरीर सही है प्रैक्टिस सही है तो फिर आपका परिश्रम जाया नहीं जाएगा बेकार नहीं जाएगा फिर आपको यह शिकायत नहीं करनी पड़ेगी कि हमने ये उपासना की और यह लाभ उठाया और हमारा समय और बेकार चला गया |
अखण्ड-ज्योति से
मौन साधना की अध्यात्म-दर्शन में बड़ी महत्ता बतायी गयी है। कहा गया है “मौनं सर्वार्थ साधनम्।” मौन रहने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं। महात्मा गाँधी कहते थे- मौन में अन्तर्शक्ति को जगाने की प्रभावशाली सामर्थ्य होती है। उनके अनुसार वह व्यक्ति, जो अपने जीवन में निरन्तर अनवरत सत्य की शोध कर रहा हो, मौन साधना का ही पथ पकड़ता है। लांगफेलो के अनुसार मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। दार्शनिक बेकन का मत है कि मौन निद्रा के समान है जो विवेक को ताजगी प्रदान करती है।
वस्तुतः मौन एक तितीक्षा है, तप साधना है जो समय-समय पर महामानवों द्वारा अपने साधना पुरुषार्थ के क्रम में अपनायी जाती है। मौनावस्था एक योगी के लिये सर्वाधिक मूल्यवान निधि एवं धरोहर है। इस अवस्था में प्रवेश कर वह परमसत्ता के और समीप जा पहुँचता है। बहिरंग से नाता तोड़ कर अंतःक्षेत्र की गुफा प्रवेश साधना उसके लिये फलदायी सिद्ध होती है। मौनावस्था में की गयी प्रार्थना-तप साधना कभी निष्फल नहीं होती ऐसा विद्वत्जनों का मत है। किसी विद्वान ने कहा है- भय से उत्पन्न मौन जड़ता का प्रतीक है किन्तु संयमजन्य मौन साधुता है, तपस्वी का भूषण है।
इन्द्रिय संयम हेतु सबसे अच्छा प्रतीक मौन को माना गया है। जो मौन साध लेता है, वह सारी इन्द्रियों को वश में कर जितेन्द्रिय कहलाता है। महर्षि व्यास के मुख से निकले वचनों को लिपिबद्ध कर पुराण रचने का पुरुषार्थ गणेश जी द्वारा मौन साधना के बलबूते ही सम्भव हो पाया। यदि इतनी लम्बी अवधि तक यह साधना पुरुषार्थ न निभाया गया होता तो साहित्य सृजन भी सम्भव न हो पाता।
चिन्तक-मनीषी फ्रेंकलिन ने कहा है- “चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता क्योंकि वह मौन रहती है।” मौन का अर्थ है ऊर्जा के बिखराव को समेटना एवं इसे संग्रहित कर उच्चस्तरीय पुरुषार्थ में नियोजित करना। मौन साधना के साधक अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों के समक्ष संसार के सभी प्रकार के वैभवों को तुच्छ मानते हैं। मौन साधक अतीत के अनुभवों से अर्जित ज्ञान सम्पदा को मौन स्थिति के क्षणों में पुनः नियोजित कर एक नवीन विचारधारा को एक कलाकार की तरह मूर्त रूप देता है, ऐसी विचारधारा जो युगानुकूल होती है, सर्वकल्याण कारी होती है। युग प्रवर्तक दृष्टा ऋषिगण इसी कारण मौन का महात्म्य बताते रहे हैं।
वाक् शक्ति की ऊर्जा का सर्वाधिक सुनियोजन मौन साधना में होता है। संग्रहित शक्ति द्वारा ऐसे साधक स्वयं को पूर्णता की दिशा में ले जाते हैं, जीवनमुक्त कहलाते हैं एवं अपनी इस शक्ति द्वारा बहिरंग जगत को भी प्रभावित करते हैं।
‘मैं’ को मिटाने की सर्वश्रेष्ठ स्थिति मौनावस्था है। जब ‘मैं’ (अहं) का ही लोप हो गया तो कौन सोचेगा व कौन बोलेगा ? इस साधना को समर्पण योग की साधना कहा जा सकता है। जो जितना गहरा होता है वह उतना ही मौन होता है। स्थिर जल गहरा होता है, यह उक्ति मौन के सम्बन्ध में सही सिद्ध होती है। जो वाचाल होते हैं, वे उतने ही उथले-बहिर्मुखी होते व तिरस्कार के भाजन बनते हैं। मौन बुद्धिमानी का ही दूसरा नाम है जो मनुष्य का सर्वोत्तम आभूषण है।
घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है, गुफा में हिम समाधि प्राणियों में नयी ऊर्जा का संचार करती है, मौन मनुष्य की वाणी को शक्ति से ओत-प्रोत कर देता है।
मौन अवस्था एक ऐसी स्थिति है जिसमें भगवद् सत्ता व्यष्टि सत्ता के ओर समीप आ जाती है। मनुष्य देव-स्वरूप होता व भगवत् सत्ता से एकाकार होता है। मौन एक विराम की स्थिति है जो मनुष्य को भावी तप पुरुषार्थ हेतु पर्याप्त बल देती, ऊर्जा से ओत-प्रोत कर देती है। हर ऋषि स्तर के साधक को मौन का अवलम्बन लेना चाहिए ताकि समष्टि हित साधन सम्भव हो सके।
अखण्ड ज्योति, नवम्बर 1984
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