जीवन जीने की कला
बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर सभी को शुभकामनाएं।
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी।
गौतम बुद्ध के सिद्धांत
सच्चा आत्मबोध प्राप्त कर लेने पर इनका नाम 'बुद्ध' पड़ गया और उन्होंने संसार में उसका प्रचार करके लोगों को कल्याणकारी धर्म की प्रेरणा देने की इच्छा की। इसलिए गया से चलकर वे काशीपुरी में चलें आए, जो उस समय भी विद्या और धर्म चर्चा का एक प्रमुख स्थान थी। यहाँ सारनाथ नामक स्थान में ठहरकर उन्होंने तपस्या करने वाले व्यक्तियों और अन्य जिज्ञासु लोगों को जो उपदेश दिया उसका वर्णन बोद्ध धर्म ग्रंथों में इस प्रकार मिलता है।
(१) जन्म दुःखदायी होता है। बुढा़पा दुःखदायी होता है। बीमारी दुःखदायी होती है। मृत्यु दुःखदायी...
स्वास्थ्य का रहस्य
तब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थीं। उन दिनों की बात है, एक किसान को जमीन की कमी महसूस हुई। अतः उसने पहाड़ काटना शुरु कर दिया। पहाड़ बड़ा घबराया, उसने बीमारियों को आज्ञा दी-बेटियो! टूट पड़ो इस किसान पर और इसे नष्ट-भ्रष्ट कर डालो। बीमारियाँ डंड-बैठक लगाकर आगे बढ़ी और किसान पर चढ़ बैठी। किसान ने किसी की परवाह नहीं की और डटा रहा अपने काम में। शरीर से पसीने की धार निकली और उसी में लिपटी हुई बीमारियाँ भी बह गई। पहाड़ ने क्रुद्ध होकर शाप दे दिया-मेरी बेटी होकर तुमने मेरा इतना काम भी नहीं किया, अब जहाँ हो वहीं पड़ी रहो। तब से बीमारियाँ परिश्रमी लोगों पर असर नहीं कर पातीं। गंदे और आलसी लोग ही उनके शिकार होते हैं।
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मूर्खता के लक्षण
मूर्खता के लक्षण छोड़ेंगे तब सद्गुण धारण कर सकेंगे. आगे ऐसे कई मुर्ख के लक्षण बताए गए थे, और भी कुछ लक्षण यहाँ बताए है, श्री समर्थ रामदास स्वामी कहते है कि “इस लक्षणों को जो एकाग्र होकर सुनेगा-पढ़ेगा उसमें से मूर्खता के अवगुण दूर होंगे तथा उसको चातुर्य के लक्षण प्राप्त होगे.”
१] संसार दुःख के लिए जो ईश्वर को गाली देता है तथा जो अपने मित्रों के दोष-त्रुटी बताता रहेता है वह मुर्ख है।
२] जो एकत्रित समूह [सभा] का रसभंग हो ऐसा वाणी-वर्तन करता है तथा क्षण में अच्छा क्षण में बुरा बनता है, वह मुर्ख है।
३] जो अपने पुराने सेवको की छुट्टी कर देता है, जिसकी सभा निर्नायक होती है, वह मुर्ख है।
४] जो अनीति से रुपये एकत्र करता है, धर्म नीति-न्याय को त्याग देता है तथा अपने सहयोगियों को दुःख हो ऐसे बर्त...
ईश्वर की भक्ति (भाग 1)
जिसको अपने पर विश्वास नहीं, वह ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकता। ऐसे आत्म-घातियों को अपने पाप का परिणाम भोगने के लिये ईश्वर छोड़ देता है और वह धैर्यपूर्वक तब तक उसी कुछ मदद न करने के लिए ठहरा रहता है, जब तक कि वह आत्म-घात करना न छोड़ दे। माता तब तक बच्चे को निर्दयतापूर्वक धूप में खड़ा रहने देती है जब तक कि वह फिर चोरी न करने की प्रतिज्ञा नहीं करता। भक्त का प्रथम लक्षण आत्म-विश्वास है। आत्म-विश्वास का अर्थ है परमात्मा में विश्वास करना। जो आत्मा के सच्चिदानन्द स्वरूप की झाँकी करता है, वही प्रभु के निकट तक पहुँच सकता है। ईश्वर नामक सर्वव्यापक सत्ता में प्रवेश करने का द्वार आत्मा में होकर है, वही इस खाई का पुल है।
अन्य उपायों से प्रभु को प्राप्त करने वालों का प्रयत्न ऐसा है जैसे पुल का तिरस्कार क...
इन तीन का ध्यान रखिए (भाग 5)
इन तीन को हासिल कीजिए- सत्यनिष्ठा, परिश्रम और अनवरतता
(1) सत्यनिष्ठ व्यक्ति की आत्मा विशालतर बनती है। रागद्वेष हीन श्रद्धा एवं निष्पक्ष बुद्धि उसमें सदैव जागृत रहती है। वह व्यक्ति वाणी, कर्म, एवं धारणा प्रत्येक स्थान पर परमेश्वर को दृष्टि में रख कर कार्य करता है। जो वाणी, कर्तव्य रूप होने पर हमारे ज्ञान या जानकारी को सही सही प्रकट करती है और उसमें ऐसी कमीवेशी करने का यत्न नहीं करती है कि जिससे अन्यथा अभिप्राय भासित हो, वह सत्यवाणी है। विचार में जो सत्य प्रतीत हो, उसके विवेकपूर्ण आचरण का नाम ही सत्य कर्म है।
(2) परिश्रम एक ऐसी पूजा है, जिसके द्वारा कर्म पथ के सब पथिक अपने पथ को, जीवन और प्राण को ऊँचा उठा सकते हैं। कार्लाइल का कथन है कि परिश्रम द्वारा कोई भी बड़े से बड़ा कार्य, उद्देश्य या ...
इन तीन का ध्यान रखिए (भाग 6)
इन तीनों का आनन्द प्राप्त करो- (1) खुला दिल (2) स्वतन्त्रता (3) सौंदर्य- ये तीनों आपके आनन्द की अभिवृद्धि करने वाले तत्व हैं।
खुला दिल सबसे उत्तम वस्तुएँ ग्रहण करने को प्रस्तुत रहता है, संकुचित हृदय वाला व्यक्तिगत वैमनस्य के कारण दूसरे के सद्गुणों को कभी प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करता। स्वतन्त्रता का आनन्द वही साधक जानता है जो रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, एवं क्षणिक आवेशों से मुक्त है।
स्वतंत्रता का अर्थ अत्यन्त विस्तृत है। सोचने, बोलने, लिखने, प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त करनी चाहिए। जो व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र है, वह अनेक झगड़ों से मुक्त है। सौंदर्य-आत्मिक और चारित्रिक-दोनों ही उन्नति और प्रगति की ओर ले जाने वाले हैं। यदि सौंदर्य के साथ कुरुचि और वासना मिश्रित हो जायेंगी, त...
इन तीन का ध्यान रखिए (अन्तिम भाग)
इन तीनों को स्मरण रखो- आरोग्य, सुमित्र और संतोष वृत्ति। ये तीनों ही आड़े समय काम में आने और रक्षा करने वाले है।
चाहे अन्य बातों में आप पीछे रहें, किन्तु इन स्वास्थ्य और आरोग्य सम्पादकों को प्राप्त करते रहिये। सच्चा मित्र जीवन का सब से बड़ा हितैषी और सहायता है। संतोषवृत्ति मनः शक्ति को परिपुष्ट करने, आन्तरिक समस्वरता को प्रदान करने वाली परमौषधि है।
इन तीनों का प्राप्त करो-(1) अच्छी पुस्तक (2) अच्छी सोबत और (3) अच्छी आदतें। अच्छे, उपयोगी, चरित्र का परिष्कार एवं आत्म सुधार करने वाले सद्ग्रन्थ जिस व्यक्ति के पास है, उसे अकेलापन, नीरसता, शुष्कता कभी न प्रतीत होगी। पुस्तकें सदा सर्वदा चौबीसों घंटे का आत्मसुधार करने को प्रस्तुत हैं, आपकी सद्शिक्षाएँ देने को मौजूद रहती हैं। इनके सत्संग से अनेक स...
धर्म का तत्त्व
धर्म के विस्तार एवं विविधता की खोज अनावश्यक है। आवश्यक है धर्म के तत्त्व की खोज, इसकी अनेकता में एकता की खोज, इसके परम सार की खोज। यह खोज जितनी अनिवार्य एवं पवित्र है, इसकी विधि उतनी ही रहस्यमय और आश्चर्यपूर्ण है। इसे न समझने वाले जीवन की भँवरों की भटकन में भटकते रहते हैं। धर्म को खोजते हुए स्वयं को खो देते हैं। क्योंकि वे धर्म के तत्त्व को नहीं उसके विस्तार एवं विविधता को खोजते हैं।
धर्म के तत्त्व की खोज तो स्वयं की खोज में पूरी होती है। स्वयं का सत्य मिलने पर धर्म अपने-आप ही मिल जाता है। यह तत्त्व शास्त्रों में नहीं है। शास्त्रों में तो जो है, वह केवल संकेत है। धर्म-ग्रन्थों में जो लिखा है, वह तो बस चन्द्रमा की ओर इशारा करती हुई अंगुली भर है। जो इस अंगुली को चन्द्रमा समझने की भूल करता ...
सत्य की शोध कीजिए (भाग 3)
मैं जिस बात का समर्थन करना चाहता हूँ वह यह है कि इस उपेक्षित सत्य को लोग जीते जागते रूप में स्वीकार करें कि धर्म की वास्तविकता का आधार बहुत आवश्यक और विश्वव्यापी आवश्यकता के रूप में मानव प्रकृति की सत्यता में है और इसीलिए मानव प्रकृति के द्वारा उस धर्म की वास्तविकता की लगातार परीक्षा होती रहनी चाहिए। जहाँ पर यह उस आवश्यकता की उपेक्षा और तर्क का उल्लंघन करती है वहाँ पर यह स्वयं अपने औचित्य को दूर भगा देती है।
मुझे इस कथन को मध्यकालीन भारतवर्ष के बहुत बड़े रहस्यवादी कवि कबीर, जिन्हें मैं अपने देश के सर्वप्रधान आध्यात्मिक विशेष बुद्धिमानों में से एक व्यक्ति मानता हूँ, की कुछ निम्नलिखित पंक्तियों को देते हुए समाप्त करने दीजिए।
“रत्न कीचड़ में खो गया है और सब लोग उसे ढूँढ़ रहे हैं। कुछ लोग पू...
कर्मयोग का रहस्य (भाग 5)
यदि किसी के शरीर के किसी अंग में घोर पीड़ा हो तो उसके उस अंग को धीरे−धीरे दबाओ और अपने हृदय से प्रार्थना भी करो कि हे भगवान इस मनुष्य का दुःख दूर कर इसको शान्ति में रहने दे और इसका स्वभाव अच्छा हो जावे।
यदि आप किसी मनुष्य या पशु का खून बहता हुआ देखो तो कपड़े के लिये इधर−उधर मत भागे फिरो, बल्कि अपनी धोती या कमीज में से, कुछ परवा नहीं कितना भी कीमती हो एक टुकड़ा फाड़ कर उसके पट्टी बाँध दो, यदि वह कीमती रेशमी कपड़ा भी है तो भी उसको फाड़ने में शंका मत करो, यह सच्चा कर्मयोग है। यह आपके हृदय को जाँचने के लिये काँटा है, आपमें से कितनों ने इस प्रकार की सेवा की है, यदि अभी तक आपने ऐसा नहीं किया है तो आज से शुरू कर दो।
जब आपका पड़ौसी या कोई निर्धन आदमी रोगग्रस्त हो तो उसके लिये अस्पताल से दवाई ला ...