सनातन संस्कृति: राष्ट्रीय एकता और सद्भाव’ पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय में भव्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ

देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में 'सनातन संस्कृति: राष्ट्रीय एकता और सद्भाव के लिए शाश्वत ज्ञान' विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन हुआ। यह आयोजन भारत की प्राचीन धरोहर “वसुधैव कुटुंबकम” की महत्ता को आधुनिक संदर्भ में पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से हो रहा है।
उद्घाटन समारोह में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति आदरणीय श्री शरद पारधी जी, प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी एवं शांतिकुंज व्यवस्थापक आदरणीय श्री योगेन्द्र गिरी जी ने सभी प्रतिष्ठित अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, माता श्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज, हरिद्वार के पूर्व मेयर श्री मदन कौशिक जी की गरिमामयी उपस्थिति रही।
दीप प्रज्वलन के साथ इस सम्मेलन का शुभारंभ हुआ, जिसके पश्चात आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने अपने प्रेरणादायक संबोधन में कहा, “आज का यह सम्मेलन मात्र एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भारत के भविष्य की नींव रखने का अवसर है। यह सनातन संस्कृति ही है जिसने भारत को हमेशा से शक्ति और ज्ञान का स्रोत बनाया है। हम अपनी पुरानी गौरवशाली परंपराओं को पुनः स्थापित कर भारत को उसकी सही पहचान दिलाने की ओर अग्रसर हैं।”
माता श्री मंगला जी ने कहा, "सनातन संस्कृति केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और मानवता की उन्नति का मार्ग है। यह सम्मेलन समाज में करुणा और सद्भाव का संदेश लेकर आया है।"
श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी ने अपने वक्तव्य में भारत की सनातन संस्कृति को विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “इस युग में जब संसार भौतिकवाद की दौड़ में परेशान है, भारत की प्राचीन संस्कृति और सनातन ज्ञान दुनिया को शांति और समाधान का मार्ग दिखाने में सक्षम है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की अवधारणाएँ आज की चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती हैं।”
श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने सनातन संस्कृति की महानता पर बल देते हुए कहा, “हमारी वेदों की संस्कृति सदैव समभाव और एकता का संदेश देती है। यदि हम इस पर चलें तो दुनिया में शांति और प्रेम का वातावरण स्वतः निर्मित होगा।”
आयोजन के समापन पर युगऋषि पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा रचित युग साहित्य और गायत्री महामंत्र चादर भेंटकर मुख्य अतिथियों का सम्मान डॉ. चिन्मय पंड्या जी के करकमलों द्वारा किया गया।
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