चिन्तन कम ही कीजिए।
*क्या आप अत्याधिक चिन्तनशील प्रकृति के हैं? सारे दिन अपनी बाबत कुछ न कुछ गंभीरता से सोचा ही करते हैं? कल हमारे व्यापार में हानि होगी या लाभ, बाजार के भाव ऊँचे जायेंगे, या नीचे गिरेंगे।* अमुक ने हमारा रुपया उधार ले रखा है, वह वापस करेगा भी या हड़प लेगा? दिनों दिन बाजार में महंगाई उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। कल का खर्च कैसे चलेगा? कन्या बड़ी होती जा रही है। उसके लिये योग्य समृद्ध और शिक्षित वर का कैसे प्रबन्ध होगा? *हमारा पुत्र पढ़ता कम है। सारा समय खेलने में व्यतीत करता है। परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण होगा? हमारी नौकरी लगी रहेगी, या छूट जायगी? हमारा स्वास्थ्य गिरता जा रहा है, कैसे सुधरेगा?* हमें जल्दी ही लम्बी यात्रा पर जाना है। मार्ग की कठिनाइयाँ कैसे हल होंगी? ऐसी ही किसी समस्या को लेकर आप दिन-रात चिन्तन करते रहते हैं।
*आप अपने मस्तिष्क को सारे दिन विशेषतः रात में किसी भी चिन्तन की क्रिया में डाल देते हैं।* जैसे गाड़ी का पहिया किसी लीक में पड़ कर आगे निरन्तर उसी दिशा में बढ़ता रहता है, उसी प्रकार मस्तिष्क को चिन्तन की किसी भी समस्या में उसको लगा देने से वह उसी में फँसा रहता है। व*ह खुद रुकता नहीं बल्कि चिन्तन के प्रवाह में आगे बढ़ता रहता है। मस्तिष्क तो चिन्तन का एक यंत्र है। उसका कार्य चिन्तन करना ही है।* यदि आप उसे कोई अच्छी या बुरी समस्या दिये रहेंगे, तो निश्चय जानिये, वह उसी समस्या के उखाड़-पछाड़ में संलग्न रहेगा। वह विश्राम की परवाह न कर बौद्धिक चिन्तन ही किए जायगा।
आधुनिक मनोविज्ञान वेत्ताओं की नई खोज यह है कि अधिक बौद्धिक चिन्तन मनुष्य के शरीर के लिए हानिकारक है। *जो जितना अधिक मानसिक चिन्तन करता है, उसका शरीर उतना ही क्षीण होता जाता है। भूख नष्ट हो जाती है। भोजन में कोई भी रुचि नहीं रह जाती। रक्तचाप, व्रण, हृदय रोग, सिर दर्द आदि उभर उठते हैं।* चिन्तनशील व्यक्ति प्रायः भयभीत से, शंकालु से और भविष्य के लिए चिन्तित रहते हैं। गुप्त मन में बैठा हुआ उनका भय ही उन्हें खाया करता है।
*आप बौद्धिक चिन्तन या मानसिक श्रम करने वालों के स्वास्थ्य को देखिए। वे पहले दुबले रहते हैं तो भी शरीर पर माँस नहीं बढ़ता। उनकी हड़ियाँ ही हड्डियाँ चमका करती हैं।* मेरे एक मित्र हैं जो लेखन का काम करते हैं। एक दिन मेरे पास आये। बोले रात में नींद नहीं आती। फल यह होता है कि सारे दिन थकान बनी रहती है। हाथ पाँव टूटते से रहते हैं। नेत्रों में नींद छाई रहती है और सर भारी रहता है। डॉक्टर को दिखाया तो न बुखार है, न इन्फ्यूलेन्जा, न और कोई शारीरिक विकार पर थकान बनी रहती है। दिमाग में सारे दिन रात एक अजीब प्रकार का तनाव बना रहता है।
हमने उन्हें बताया कि इस मानसिक व्यग्रता का मुख्य कारण सतत चिन्तन है। *अधिक बौद्धिक चिन्तन से स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। उसी की प्रतिक्रिया इनके शरीर पर दिखाई देती है।* इन्होंने अपने मस्तिष्क को आराम नहीं दिया वरन् लगातार चिन्तन करते-करते उसे इतना कार्य बोझिल बना दिया कि मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। *अधिक सोचने-विचारने से, दिमाग सारे दिन चिन्तन में लगाये रखने से स्नायु पर अतिरिक्त भार पैदा हो गया। इससे शारीरिक क्रियाओं में रुकावट उत्पन्न होने लगी। फलस्वरूप अपने को मानसिक दृष्टि से थका हुआ पाने लगे।*
*तुम जिस कार्य, उद्देश्य या मनोरथ में सफलता लाभ करने की चेष्टा कर रहे हो उसका अभिनय भली-भाँति करो।* यदि तुम एक विद्वान बनने की चेष्टा कर रहे हो तो अपने आपको एक विद्वान की ही भाँति रखो वैसा ही वातावरण एकत्रित करो, निराशा निकाल कर यह उम्मीद रखो कि मूर्ख कालिदास की भाँति हम भी महान बनेंगे। निराशा निकाल कर तुम इस एकटिंग को पूर्ण करने की चेष्टा करो। *तुम अनुभव करो कि मैं विद्वान हूँ, सोचो कि मैं अधिकाधिक विद्वान बन रहा हूँ। मेरी विद्वता की निरंतर अभिवृद्धि हो रही है। तुम्हारे व्यवहार से लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम सचमुच विद्वान हो।* तुम्हारा आचरण भी पूर्ण विश्वास युक्त हो शंका, शुबाह या निराशा का नाम निशान भी न हो। अपने इस विश्वास पर तुम्हें पूरी दृढ़ता का प्रदर्शन करना उचित है। *यह अभिनय करते-करते एक दिन तुम स्वयमेव अपने कार्य को पूर्ण करने की क्षमता प्राप्त कर लोगे।*
*अखण्ड ज्योति मई 1960*
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