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रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कदम उठाने होंगे
नया युग लाने के लिए धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने के लिए-सतयुग की पुनरावृत्ति आँखों के सामने देखने के लिए-हमें कुछ अधिक महत्त्वपूर्ण, दुस्साहस भरे रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कदम उठाने होंगे। शत-सूत्री कार्यक्रमों के अंतर्गत उसकी कुछ चर्चा हो चुकी है। बड़े परिवर्तनों के पीछे बड़ी कार्य पद्धतियाँ भी जुड़ी रहती हैं। निश्चित रूप से हमें ऐसे अगणित छोटे-बड़े आन्दोलन छेड़ने पड़ेंगे, संघर्ष करने पड़ेंगे, प्रशिक्षण संस्थाएँ चलानी पड़ेंगी जन करना अभियान में लाखों मनुष्यों का जन, सहयोग, त्याग-बलिदान सूझ-बूझ एवं प्रयत्न, पुरुषार्थ नियोजित किया जाएगा भारत के पिछले राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में कितनी जनशक्ति और कितनी धन-शक्ति लगी थी। यह सर्वविदित है, यह भारत तक और उसके राजनैतिक क्षेत्र तक सीमित थी। अप...
हम बदलेंगे युग बदलेगा
बड़े आदमी बनने की हविस और ललक स्वभावतः हर मनुष्य में भरी पड़ी है। उसके लिये किसी को सिखाना ही पड़ता। धन, पद, इन्द्रिय सुख, प्रशंसा, स्वास्थ्य आदि कौन नहीं चाहता? वासना और तृष्णा की पूर्ति में कौन व्याकुल नहीं है? पेट और प्रजनन के लिये किसका चिंतन योचित नहीं है। अपने परिवार को हमने बड़े आदमियों के समूह बनाने की बात कभी नहीं सोची। उसे महापुरुषों का देव समाज देखने की ही अभिलाषा सदा से रही वस्तुतः महा मानव बनना ही व्यक्तिगत जीवन का संकल्प और समाज का सौभाग्य माना जा सकता है। मनुष्य जीवन की सार्थकता महा मानव बनने में है। इसके अतिरिक्त आज की परिस्थितियां महा मानवों की इतनी आवश्यकता अनुभव करती है कि उन्हीं के लिये सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची हुई है। हर क्षेत्र उन्हीं के अभाव में वीरान और विकृत हो र...
परिजनों को परामर्श
अपना विशाल परिवार हमने एक ही प्रयोजन के लिये बनाया और सींचा है कि विश्व-मानव की अन्तर्वेदना हलकी करने में और रुदन, दरिद्र, जलन से बचाने के लिये कुछ योगदान सम्भव हो सके, पेट और प्रजनन की कृमि कीटकों जैसी सड़न से ही हम सब बहुमूल्य जिन्दगी न बिता डालें वरन् कुछ ऐसे हो जो जीवनोद्देश्य को समझें और उसे पूरा करने के लिये अपनी विभूतियों और सम्पत्तियों का एक अंश अनुदान दे सकने में तत्पर हो सकें। उच्च आदर्शों पर चल कर विश्व के भावनात्मक नव-निर्माण की दृष्टि से ही हमने अपना विशाल परिवार बनाया। यों दुख कष्ट से पीड़ितों की सहायता के लिए हमारे पास जो कुछ था उसे देते रहे पर उसका प्रयोजन विवेकहीन तथा कथित दानियों द्वारा लोगों की तृष्णा भड़काना स्वल्प प्रयत्न में अधिक लाभ उठाने की दुष्प्रवृत्ति जगाना एवं ...
जमाना तेजी से बदलेगा
हमारा पहला परामर्श यह है कि अब किसी को भी धन का लालच नहीं करना चाहिए और बेटे-पोतों को दौलत छोड़ मरने की विडम्बना में नहीं उलझना चाहिये। यह दोनों ही प्रयत्न सिद्ध होंगे। अगला जमाना जिस तेजी से बदल रहा है उससे इन दानों विडम्बनाओं से कोई कुछ लाभान्वित न हो सकेगा वरन् लोभ और मोह की इस दुष्प्रवृत्ति के कारण सर्वत्र धिक्कार भर जायेगा। दौलत छिन जाने का दुख और पश्चाताप सताएगा सो अलग। इसलिए यह परामर्श हर दृष्टि से सही ही सिद्ध होगा कि मानव जीवन जैसी महान् उपलब्धि का उतना ही अंश खर्च करना चाहिए जितना निर्वाह के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक हो। इस मान्यता को हृदयंगम किये बिना आज की युग पुकार के लिये किसी के लिये कुछ ठोस कार्य कर सकना सम्भव न होगा। एक ओर से दिशा पड़े बिना दूसरी दिशा में चल सकना सम्भव ...
ईश्वरीय अनुग्रह के अधिकारी
परमार्थ प्रवृत्तियों का शोषण करने वाली इस विडम्बना से हम में से हर एक को बाहर निकल आना चाहिए कि “ईश्वर एक व्यक्ति है और वह कुछ पदार्थ अथवा प्रशंसा का भूखा है, उसे रिश्वत या खुशामद का प्रलोभन देकर उल्लू बनाया जा सकता है और मनोकामना तथा स्वर्ग मुक्ति की आकाँक्षायें पूरी करे के लिये लुभाया जा सकता है। ‘इस अज्ञान में भटकता हुआ जन-समाज अपनी बहुमूल्य शक्तियों को निरर्थक विडम्बनाओं में बर्बाद करता रहता है। वस्तुतः ईश्वर एक शक्ति है जो अन्तः चेतना के रूप में सद्गुणों और सत्प्रवृत्तियों के रूप में हमारे अन्तरंग में विकसित होती हैं। ईश्वर-भक्ति का रूप पूजा-पत्री की टण्ट-घण्ट नहीं विश्व-मानव के भावनात्मक दृष्टि से समुन्नत बनाने का प्रबल पुरुषार्थ ही हो सकता है। देवताओं की प्रतिमायें तो ध...
मोहग्रस्त नहीं विवेकवान
पहले ही कहा जा चुका है कि परिवार के प्रति हमें सच्चे अर्थों में कर्तव्यपरायण और उत्तरदायित्व निर्वाह करने वाला होना चाहिये आज मोह के तमसाच्छन्न वातावरण में जहां बड़े लोग छोटों के लिये दौलत छोड़ने की हविस में और उन्हीं की गुलामी करने में मरते-खपते रहते हैं, वहाँ घर वाले भी इस शहद की मक्खी को हाथ से नहीं निकलने देना चाहते जिसकी कमाई पर दूसरे ही गुलछर्रे उड़ाते हैं। आज के स्त्री बच्चे यह बिलकुल पसन्द नहीं करते कि उनका पिता या पति उनके लाभ देने के अतिरिक्त लोक-मंगल जैसे कार्यों में कुछ समय या धन खर्च करें। इस दिशा में कुछ करने पर घर का विरोध सहना पड़ता। उन्हें आशंका रहती है कि कहीं इस और दिलचस्पी लेने लगे तो अपने लिये जो मिलता था उसका प्रवाह दूसरी ओर मुड़ जायेगा।
ऐसी दशा में स्वा...
परिजनों को परामर्श
हमारा चौथा परामर्श यह है कि पुण्य परमार्थ की अन्तः चेतना यदि मन में जागे तो उसे सस्ती वाहवाही लूटने की मानसिक दुर्बलता से टकरा कर चूर-चूर न हो जाने दिया जाय। आमतौर से लोगों की ओछी प्रवृत्ति नामवरी लूटने का ही दूसरा नाम पुण्य मान बैठती है और ऐसे काम करती है जिनकी वास्तविक उपयोगिता भले ही नगण्य हो पर उनका विज्ञापन अधिक हो जाय। मन्दिर, धर्मशाला बनाने आदि के प्रयत्नों को हम इसी श्रेणी का मानते हैं। वे दिन लद गये जबकि मन्दिर जन जागृति के केन्द्र रहा करते थे। वे परिस्थितियां चली गई जब धर्म प्रचारकों और पैदल यात्रा करने वाले पथिकों के लिये विश्राम ग्रहों की आवश्यकता पड़ती थी। अब व्यापारिक या शादी-ब्याह सम्बन्धी स्वार्थपरक कामों के लिये लोगों को किराया देकर ठहरना या ठहराना ही उचित है। मुफ्त की सु...
युग-परिवर्तन के लिए चतुर्मुखी योजना
लोभ और मोह के बंधन काटने और अज्ञान प्रलोभन से ऊंचा उठाने पर ही जीवनोद्देश्य पूरा कर सकने वाले-ईश्वरीय प्रयोजन एवं युग पुकार के पूरा कर सकने वाले मार्ग पर चल सकते हैं सो इसके लिये हमें आवश्यक साहस जुटाना ही चाहिए। इतने से कम में कोई व्यक्ति युग-निर्माताओं महा मानवों की पंक्ति में खड़ा नहीं हो सकता। इन चार कसौटियों पर हमें खरा सिद्ध होना ही चाहिए। फौज में भर्ती करते समय नये रंगरुटों की लम्बाई, वजन, सीना तथा निरोगिता जाँची जाती हैं, तब कहीं प्रवेश मिलता है। बड़प्पन की तृष्णा में मरने खपने वाले नर-पशुओं के वर्ग से निकल कर जिन्हें नर-नारायण बनने की उमंग उठे उन्हें उपरोक्त चार प्रयोजनों को अधिकाधिक मात्रा में हृदयंगम करने तथा तद्नुकूल आचरण करने का साहस जुटाना चाहिए। यदि यह परिवर्तन प्रस्तुत जीव...
योजना का दूसरा चरण संगठनात्मक
योजना का दूसरा चरण संगठनात्मक है। भीड़ का संगठन बेकार है। मुर्दों का पहाड़ इकट्ठा करने से तो बदबू ही फैलेगी। जिनके मन में कसक है जो वस्तुस्थिति को समझ चुके है उन्हीं का एक महान् प्रयोजन के लिए एकत्रीकरण वास्तविक संगठन कहला सकता है। युग-निर्माण परिवार संगठन में अब वे ही लोग लिये जा रहे है जो ज्ञान-यज्ञ के लिए दस पैसे और एक घण्टा समय देने के लिये निष्ठा और तत्परता दिखाने लगे है कर्मठ लोगों का संगठन बन जाने पर प्रचारात्मक अभियान को सन्तोषजनक स्तर तक पहुंचा देने पर ऐसी स्थिति आ जायेगी कि जो अति महत्व पूर्ण इन दिनोँ शक्ति एवं स्थिति के अभाव में कर नहीं पा रहे है वे आसानी से किये जा सकें।
सृजनात्मक और संघर्षात्मक कार्यक्रम की हमें अति विशाल परिमाण पर तैयारी करनी होगी। इन दिनों तो उ...
‘युगसेना’ का गठन
दुष्टता की दुष्प्रवृत्तियाँ कई बार इतनी भयावह होती है कि उनका उन्मूलन करने के लिये संघर्ष के बिना काम ही नहीं चल सकता। रूढ़िवादी, प्रतिक्रिया वादी, दुराग्रही मूढ़मति अहंकारी, उद्दण्ड निहित स्वार्थ ओर असामाजिक तत्व विचारशीलता और न्याय की बात सुनने को ही तैयार नहीं होते। वे सुधार और सदुद्देश्य को अपनाना तो दूर और उलटे प्रगति के पथ पर पग-पग पर रोड़े अटकाते हैं। ऐसी पशुता और पैशाचिकता से निपटने के लिये प्रतिरोध और संघर्ष अनिवार्य रूप से निपटने के लिये प्रतिरोध और संघर्ष अनिवार्य रूप से आवश्यक है। हिन्दू-समाज में अन्ध परम्पराओं का बोलबाला है। जाति-पाँति के आधार पर ऊँच-नीच, स्त्रियों पर अमानवीय प्रतिरोध, बेईमानी और गरीबी के लिये विवश करने वाला विवाहोन्माद मृत्यु-भोज, धर्म के नाम पर लोक-श्रद्धा ...