आध्यात्मिक शिक्षण क्या है?
देवियो भाइयो! यह दुनिया बड़ी निकम्मी है। पड़ोसी के साथ आपने जरा सी भलाई कर दी, सहायता कर दी, तो वह चाहेगा कि और ज्यादा मदद कर दे। नहीं करेंगे, तो वह नेकी करने वाले की बुराई करेगा। दुनिया का यह कायदा है कि आपने जिस किसी के साथ में जितनी नेकी की होगी, वह आपका उतना ही अधिक बैरी बनेगा। उतना ही अधिक दुश्मन बनेगा; क्योंकि जिस आदमी ने आपसे सौ रुपये पाने की इच्छा की थी और आपने उसे पन्द्रह रुपये दिये। भाई, आज तो तंगी का हाथ है, पंद्रह रुपये हमसे ले जाओ और बाकी कहीं और से काम चला लेना। पंद्रह रुपये आपने उसे दे दिये और वह आपके बट्टे खाते में गये, क्योंकि आपने पचासी रुपये दिये ही नहीं। इसलिए वह नाराज है कि पचासी रुपये भी दे सकता था, अपना घर बेचकर दे सकता था। कर्ज लेकर दे सकता था अथवा और कहीं से भी लाकर दे सकता था; लेकिन नहीं दिया। वह खून का घूँट पी करके रह जायेगा और कहेगा कि बड़ा चालाक आदमी है। मित्रो! दुनिया का यही चलन है। दुनिया में आप कहीं भी चले जाइये, दुनिया की ख्वाहिशें बढ़ती चली जाती हैं कि हमको कम दिया गया। हमको ज्यादा चाहिए। असंतोष बढ़ता चला जाता है। और यह असंतोष अन्ततः वैर और रोष के रूप में परिणत हो जाता है। मित्रो, यह ऐसी ही निकम्मी दुनिया है। इस निकम्मी दुनिया में आप सदाचारी कैसे रह सकते हैं? जब कि आपके मन में पत्थर की उपासना करने की विधि न आये। पत्थर की उपासना करने का आनन्द जब आपके जी में आ जायेगा, उस दिन आप समझ जायेंगे कि इससे कोई फल मिलने वाला नहीं है। कोई प्रशंसा मिलने वाली नहीं है और कोई प्रतिक्रिया होने वाली नहीं है। यह भाव आपके मन में जमता हुआ चला जाय, तो मित्रो! आप अन्तिम समय तक, जीवन की अंतिम साँस तक नेकी और उपकार करते चले जायेंगे, अन्यथा आपकी आस्थाएँ डगमगा जायेंगी।
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स्वर्ण जयंती वर्ष में शांतिकुंज पर जारी डाक टिकट शांतिकुंज में उपलब्ध।
पांच रुपए प्रति एक टिकट के दर पर मुख्य कार्यालय शांतिकुंज के टेलीफोन नंबर 9258369701 एवं 01334261328 पर कॉल करके आप इसे अपने पते पर बुला सकते है।
दिनांक 20 जून 2021 को गंगा दशहरा गायत्री ...
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यज्ञ सन्दर्भ में एक श्रुति वचन प्रयोग होता है- ‘‘मन्यु रसि मन्यु मे दहि’’ हे भगवान् आप ‘मन्यु’ हैं हमें ‘मन्यु’ प्रदान करें। मन्यु का अर्थ है वह क्रो...
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इन थोड़ी सी पंक्तियों में यह विस्तारपूर्वक नहीं बताया जा सकता कि मन की मलीनता को हटा देने पर हम पतन और संताप से कितने बचे रह सकते हैं, और मन को स्वच्छ रखकर उत्थान और आनन्द का कितना अधिक लाभ प्राप्त...