पल भर में सुनी गई अबला की पुकार
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/2132/File0077.jpg)
उन दिनों मैं सिविल कोर्ट, बलरामपुर में सर्विस कर रही थी। जून में कोर्ट की छुट्टियाँ होने को थीं। सन् २००२ ई. की बात है। इस बार हमने शान्तिकुञ्ज में छुट्टियाँ बिताने की सोची। पहले तो कई लोग आने को तैयार थे, पर बाद में उन सभी ने अलग- अलग कारणों से अपना प्रोग्राम बदल दिया और मैं अकेली रह गई। छुट्टियों के दिन होने के कारण ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया था। किन्तु मुझे तो किसी भी हाल में शान्तिकुञ्ज पहुँचना ही था। मन में ठान चुकी थी। सो, अकेली ही रवाना हो गई। गोण्डा से ट्रेन से चारबाग स्टेशन, लखनऊ पहुँची, तो शाम के चार बज चुके थे। दून एक्सप्रेस से जाना था। लेकिन, स्टेशन पर यात्रियों की भारी भीड़ देखकर मैं अन्दर से काँप उठी।
प्लेटफार्म पर पैर रखने की जगह नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि ट्रेन छूट गई। इसके बाद वाली ट्रेन जनता एक्सप्रेस में भी नहीं चढ़ सकी। पता चला कि इसके बाद रात में कोई और ट्रेन नहीं है। मैं स्टेशन पर चिन्तित बैठी थी। सोच रही थी कि काश, यह समाचार झूठा होता, संयोगवश कोई ट्रेन आ जाती।
रात गहरी होती गयी। स्टेशन पर से भीड़ घटती जा रही थी। मेरा भय लगातार बढ़ता जा रहा था। पूरी रात मैं प्लेटफार्म पर अकेली कैसे रहूँगी? यहाँ किसी को जानती भी नहीं कि उसके घर जाकर रात बिता सकूँ। चोर- उचक्के ही आ जाएँ या अकेली औरत देख किसी पर बदनीयती ही सवार हो जाए, तो क्या करूँगी। मन बार- बार यह कहने लगा कि मुझे अकेले नहीं आना चाहिए था। आए दिन कितनी ही उल्टी सीधी घटनाएँ घटती रहती हैं। अखबारों में रोज ही ऐसी खबरें छपती हैं। दस की भीड़ में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना अलग बात है, पर यहाँ सुनसान रात में अनजान स्टेशन के प्लेटफार्म पर रहना....! यही सब सोचकर मैं अन्दर ही अन्दर काँप रही थी।
इतने में एक आदमी पास आकर खड़ा हो गया। मुझे उसके रंग- ढंग ठीक नहीं लग रहे थे। वह मुझसे पूछने लगा- कहाँ जाना है? मैंने उपेक्षापूर्ण स्वर में कहा- हरिद्वार। उसने बात आगे बढ़ाने की चेष्टा की- मैं रेलवे का इम्प्लाई हूँ। हरिद्वार की आखिरी ट्रेन भी जा चुकी है। अब वहाँ के लिए कोई ट्रेन आपको कल ही मिलेगी। मेरा रहा- सहा होश भी गुम होने लगा। वहाँ से उठकर मैं टी स्टाल के पास वाली बैंच पर बैठ गई। थोड़ी देर बाद वह आदमी मेरे पास आकर बैठ गया और बेमतलब की बातें करने लगा। मैं बुरी तरह डर गई थी। जब और कोई उपाय नहीं दिखा, तो आँखें मूँदकर गुरुदेव का ध्यान करने लगी। मन ही मन उनसे प्रार्थना करती हुई बोली -‘‘हे गुरुदेव, अकेले ही घर से निकलकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है, अब तो आप ही मेरी लाज बचा सकते हैं।’’ मैं परेशान होकर इधर- उधर टहल रही थी। मेरी आँखों में आँसू भरे हुये थे। मैं रोना चाहती थी, किंतु रो नहीं रही थी। मैं टलहते हुए स्टेशन के दूसरे छोर के पास पहुँच गई। मैं एक खंभे के पास खड़ी हो गई। मैं डरी हुई थी। चूँकि वह व्यक्ति आस- पास ही रह रहा था।
मैंने देखा खम्भे के पास जहाँ थोड़ी जगह होती है वहीं पर एक बूढ़े दम्पत्ति को बैठे हुए देखा। उनके पास दो छोटी- छोटी गठरियाँ थीं उन्हें देखकर मैं उन्हीं के पास खड़ी हो गई। मुझे उनके पास खड़े होने पर लग रहा था जैसे गुरुदेव मेरी करुण पुकार सुनकर स्वयं आ गये हों। मैं भी थोड़ी जगह पर बैठ गई, थोड़ी देर में बात- चीत के क्रम में उन्होंने कहा -‘बेटी क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या? ’ मैंने कहा कि बाबा मुझे हरिद्वार जाना है। किंतु हरिद्वार की दोनों रेले जा चुकी हैं मैंने पता किया, तो मालूम हुआ कि हरिद्वार के लिये कोई ट्रेन नहीं है मैं बहुत परेशान हूँ। पूरी रात स्टेशन पर क्या करूँगी? बाबा बोले- इसमें चिंता की क्या बात है? तुम्हें हरिद्वार ही जाना है। अभी एक ट्रेन आयेगी इसी प्लेटफार्म पर, जो सहारनपुर जायेगी। तुम लक्सर स्टेशन पर उतर जाना, वहाँ से हरिद्वार के लिए कोई न कोई ट्रेन मिल जायेगी। पूरी रात स्टेशन पर बैठने से अच्छा है ट्रेन में रहोगी और सुरक्षित भी रहोगी। उनकी बात मुझे अच्छी लगी किंतु विश्वास नहीं हो रहा था कि ये जो कह रहें हैं वह सही है। चूंकि उनकी वेशभूषा से नहीं लग रहा था कि ज्यादा पढ़े लिखे होंगे। इनको कैसे पता चला कि कौन सी ट्रेन आ रही है? किंतु न जाने क्यों मुझे उनकी बातों में सच्चाई लग रही थी। उनकी वाणी में अजीब सी मिठास एवं अपनापन झलक रहा था। मैंने कहा- बाबा आप सच कह रहे हैं। वो तो मैं सही बोल रहा हूँ, मुझे भी हरिद्वार जाना है। अभी १०.३० बजे ट्रेन आयेगी।
मैंने सोचा इंतजार करने में क्या हर्ज है अभी सच्चाई तो पता चल ही जायेगी। ३०- ३५ मिनट की बात है लेकिन उस स्थिति में एक- एक मिनट पहाड़ जैसी बीत रही थी। आखिर १०.३० बजे वह ट्रेन आई। मैं अपना बैग लेकर बाबा के साथ चल दी ट्रेन में चढ़ने के लिए। मैंने सोचा कि बाबा बूढ़े हैं इनकी सहायता करनी चाहिए इसलिए मैंने कहा- बाबा, पहले आप चढ़ जाइए तब मैं चढूँगी। तो बाबा बोले- पहले तुम चढ़ो तुम मेरी चिंता मत करो। मैं ट्रेन में चढ़ गई। ट्रेन में काफ भीड़ थी मैंने सोचा बाबा इसी ट्रेन में होंगे लेकिन आस- पास मुझे वह बाबा दिखाई नहीं पड़े। मैं रात भर ट्रेन में बैठी रही। मुझे हल्की झपकी लग जाय, तो मैं जाग जाती थी। चूँकि मुझे लक्सर स्टेशन पर उतरना था। पहली बार स्टेशन का नाम सुना था कि कहीं भूल न जाऊँ। मैंने ट्रेन में बैठे व्यक्तियों से भी स्टेशन के बारे में पूछा। दूसरे दिन मैं लक्सर स्टेशन पर उतर गई। मैंने इन्क्वाइरी में जाकर हरिद्वार के लिये ट्रेन पूछी तो पता लगा अभी एक घंटे बाद ट्रेन आएगी। इस प्रकार गुरुकृपा से हरिद्वार आ गई। जब भी मैं इस घटना के बारे में सोचती हूँ मेरा हृदय गुरुवर के प्रति श्रद्धा से भर जाता है। गुरुदेव की कृपा का कर्ज मैं इस जन्म में नहीं चुका सकती।
अर्चना सिंह, बलरामपुर (उ.प्र.)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
Recent Post
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3691/IMG-20210620-WA0067-1024x827.jpg-VwsM20ydAZb2k)
स्वर्ण जयंती वर्ष में शांतिकुंज पर जारी डाक टिकट शांतिकुंज में उपलब्ध।
पांच रुपए प्रति एक टिकट के दर पर मुख्य कार्यालय शांतिकुंज के टेलीफोन नंबर 9258369701 एवं 01334261328 पर कॉल करके आप इसे अपने पते पर बुला सकते है।
दिनांक 20 जून 2021 को गंगा दशहरा गायत्री ...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3687/Sutra No 2 (1).jpg-8DHNkYvBH9Zj93)
विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग १)
संसार में अवाँछनीयता कम और उत्कृष्टता अधिक है। तभी तो यह संसार अब तक जीवित है। यदि पाप अधिक और पुण्य स्वल्प रहा होता तो अब तक यह दुनिया श्मशान बन गई होती। यहाँ सत्य, शिव और सुन्दर इन तीनों में से ए...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3686/102 (2).jpg-exgUoXUX-FYj93)
विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग २)
दिन-दहाड़े सरे-बाजार गुण्डागर्दी होती रहती है और यह भले बनने वाले लोग चुपचाप उस तमाशे को देखते रहते हैं। गुण्डों की हिम्मत बढ़ती है और वे आये दिन दूने उत्साह से वैसी ही हरकतें करते हैं। यदि देखने व...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3685/408.jpg-Hi2J2U5ev_62k)
विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग ३)
भगवान बुद्ध ने तत्कालीन अनाचारों के- मूढ़ मान्यताओं के विरुद्ध प्रचण्ड क्रान्ति खड़ी की थी, इसी संघर्ष से जूझने के लिए उन्होंने जीवधारी भिक्षुओं और श्रवणों की सेना खड़ी की थी। स्वार्थ के लिए तो सभी...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3684/351 (1).jpg-oV18dXGHByYj93)
विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग ४)
यज्ञ सन्दर्भ में एक श्रुति वचन प्रयोग होता है- ‘‘मन्यु रसि मन्यु मे दहि’’ हे भगवान् आप ‘मन्यु’ हैं हमें ‘मन्यु’ प्रदान करें। मन्यु का अर्थ है वह क्रो...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3683/265.jpg-QW3sF0FQKz62k)
विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (अंतिम भाग)
“चोर-चोर मौसेरे भाई” की उक्ति हर क्षेत्र में लागू होते देखते हैं। एक का पर्दाफाश होते ही-दूसरे अन्य मठकटे उसकी सहायता के लिए आ धमकते हैं। सोचते हैं संयुक्त मोर्चा बनाकर ही जन आक्रोश से ...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3682/hamari Part 15A (4).jpg-z-SKQlt0eqYj93)
चाहिए साहसी, जिम्मेदार:-
युग निर्माण योजना, शतसूत्री कार्यक्रमों में बँटी हुई है। वे यथास्थान, यथास्थिति, यथासंभव कार्यान्वित भी किए जा रहे हैं, पर एक कार्यक्रम अनिवार्य है और वह यह कि इस विचारधारा को जन-मानस में अधिकाधिक ...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3681/GM 222 (1).jpg-x_baVhHVLmYj93)
उपहासास्पद ओछे दृष्टिकोण-
यों ऐसे भी लोग हमारे संपर्क में आते हैं जो ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए कुण्डलिनी जागरण, चक्र जागरण और न जाने क्या-क्या आध्यात्मिक लाभ चुटकी मारते प्राप्त करने के लिए अपनी अधीरता व्यक्त करते है...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3680/120_11H.jpg-83BAFXsv_y62k)
जिनमें साहस हो आगे आवें
हमारा निज का कुछ भी कार्य या प्रयोजन नहीं है। मानवता का पुनरुत्थान होने जा रहा है। ईश्वर उसे पूरा करने वाले हैं। दिव्य आत्माएँ उसी दिशा में कार्य कर भी रही हैं। उज्ज्वल भविष्य की आत्मा उदय हो रही ह...
![](https://s3.ap-south-1.amazonaws.com/awgp.org/public_data/gurukulam/post/3679/meditation-3338691_960_720.jpg-THFXmdM_YgYj93)
उत्थान और आनन्द का मार्ग
इन थोड़ी सी पंक्तियों में यह विस्तारपूर्वक नहीं बताया जा सकता कि मन की मलीनता को हटा देने पर हम पतन और संताप से कितने बचे रह सकते हैं, और मन को स्वच्छ रखकर उत्थान और आनन्द का कितना अधिक लाभ प्राप्त...