शताब्दी वर्ष-2026 के निमित्त विशिष्ट अभियान : ज्योति कलश यात्राएँ
हम स्वयं जागें, सौ-सौ को जगाएँ, इस ऐतिहासिक वेला में पावन गुरूसत्ता को दें एक सार्थक श्रद्धांजलि
भारतीय संस्कृति में पर्वों का विशेष महत्त्व है। ये हमें उमंग-उल्लास से भर कर कर्त्तव्य और अनुशासनों की याद दिलाते हुए जीवन पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं। अखण्ड ज्योति और परम वंदनीया माताजी के अवतरण का शताब्दी वर्ष-2026 भी एक ऐसा ही विलक्षण अवसर है। यह गायत्री परिवार के लिए नवजागरण का संदेश लेकर आया है। जैसे किसी भारी कार्य को करने के लिए सैकड़ों लोग ‘हईशा! ..’ ध्वनि के साथ अपनी सारी शक्ति लगा देते हैं, वैसे ही ‘युग निर्माण’ के विराट संकल्प को पूरा करने के लिए पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ मानव में देवत्व जगाने के प्रयास इन दिनों किए जाने की आवश्यकता है।
इस कार्य में ज्योति कलश यात्राएँ बहुत सफल और प्रभावशाली सिद्ध हो रही हैं। मध्य प्रदेश में इनका सफल प्रयोग सम्पन्न होने जा रहा है। प्रदेश के हर जिले के हर ब्लॉक तक, हर गाँव, हर घर तक मिशन का संदेश इनके माध्यम से पहुँचा है। अब गुजरात और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी यह यात्राएँ आरंभ हो रही हैं। ज्योति कलश यात्रा के संदर्भ में एक विशिष्ट शिविर शान्तिकुञ्ज में सम्पन्न हुआ। आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने इसके उद्देश्य और कार्ययोजना पर विस्तृत चर्चा की। उनका संदेश यहाँ बिंदुवार प्रस्तुत है-
समय की माँग
उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित सम्भावनाओं के मध्य युग परिवर्तन की इस वेला में हो रहे वैश्विक परिवर्तनों के बीच धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक, लोगों के घरों से लेकर मनों तक जो अन्धकार फैला है, उसे नतमस्तक होने को विवश करने के लिए, अंधेरे को परास्त करने के लिए अनेक ज्योतियों का एक साथ जलना अनिवार्य हो जाता है। पूज्य गुरूदेव के तप की, साधना की, पुण्य की, प्रताप की, व्यक्तित्त्व की, कृतित्त्व की, कर्मों की ज्योति को; जो पूज्य गुरूदेव ने किया, कहा, लिखा, बोला, दिव्य स्वप्न उद्घोषित किया, उस दिव्य ज्योति का जन-जन तक पहुँचना वर्तमान समय की महती आवश्यकता है।
ज्योति कलश यात्रा का उद्देश्य
* ‘अखण्ड ज्योति’ के अखण्ड प्रकाश को प्रचण्ड बनाने के भाव से यह यात्रा निकाली जाएगी।
* ऋषियुग्म के तप, त्याग, तितिक्षा की साक्षी अखण्ड ज्योति के प्रकाश को जन-जन तक, घर-घर तक, केन्द्रों एवं संस्थानों तक पहुँचा कर इस दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करने का भाव रहेगा।
* जिन घरों, जिन मनों तक पूज्य गुरूदेव के विचार पहुँचना शेष है, उन घरों तक, उन मनों तक पूज्य गुरूदेव के विचारों को पहुँचाने के भाव से यह ज्योति कलश यात्रा सम्पन्न होगी।
* यह यात्रा अखण्ड ज्योति एवं परम वन्दनीया माता जी के दिव्य अवतरण वर्ष 1926 के 100 वर्ष पूर्ण कर शताब्दी वर्ष के रूप में आ रहे वर्ष 2026 की तैयारी है।
क्या करें
जगाएँ और जोड़ें
ज्योति कलश यात्रा के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ज्योति कलश यात्रा पथ पर पड़ने वाले हर व्यक्ति को जोड़ें, हर केन्द्र को जगाएँ।
1. सोते केन्द्रों को जगाएँ
2. सोती गतिविधियों को जगाएँ
3. सोते व्यक्तियों को जगाएँ
इन्हें सक्रिय करें
ज्ञानघट, प्रज्ञा मण्डल, महिला मण्डल, युवा मण्डल, स्वाध्याय मण्डल, झोला पुस्तकालय, दीवार लेखन, सप्तक्रान्तियाँ, रचनात्मक अभियान, समयदान, अंशदान, देव-स्थापना अभियान, घर- घर यज्ञ एवं संस्कार की परम्परा।
जोड़ने-जगाने के चार चरण
चार प्रकार के लोग हैं, जिन्हें जागना, जगाना और उनकी सक्रियता को बढ़ाना है:-
(1) जिनकी साँसों में पूज्य गुरूदेव बसते हैं, ऐसे नैष्ठिक, प्राणवान परिजन आगे आएँ एवं औरों को जोड़ें व जगाएँ।
(2) ऐसे प्राणवान परिजन जो कार्यक्रमों के समय तो गतिशील रहते हैं, लेकिन बाद में सुषुप्त हो जाते हैं, उन्हें अग्रिम पँक्ति में लाएँ और यह बताएँ कि कार्यक्रम की प्रतीक्षा न करें। पूज्य गुरूदेव ने हर दिन को एक नया कार्यक्रम मानकर युग निर्माण के विराट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर सक्रिय रहने का आह्वान किया है।
(3) जो लोग एक समय बड़े जाग्रत् हुआ करते थे, पर वर्तमान में किन्हीं कारणों से गतिशील नहीं हैं, ऐसे परिजनों को पुन: जाग्रत् एवं सक्रिय करने की आवश्यकता है। विगत दिनों किसी बात, किसी अनुभव ने उन्हें हताश किया हो तो गुरूसत्ता के प्रति समर्पण और मानवीय हित चिंतन के भाव से उसे भुलाकर फिर से नई शुरूआत करने की प्रेरणा उन्हें प्रदान करने की आवश्यकता है।
(4) कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कभी न कभी गुरूदेव का नाम सुना है, किसी न किसी माध्यम से पूर्व में मिशन से जुड़े थे; अखण्ड ज्योति पत्रिका, यज्ञ, संस्कार अथवा तीर्थ
सेवन के भाव से कभी शान्तिकुञ्ज पधारे थे, लेकिन वर्तमान में सक्रिय नहीं हैं या संपर्क में नहीं हैं, जनसम्पर्क के माध्यम से उनकी पहचान कर उन्हें पुन: जोड़ने की आवश्यकता है। उन्हें मिशन का अभिन्न अंग बनाने का प्रयास किया जाना है।
ज्योति अवतरण पर्व मनाएँ
अखण्ड ज्योति की दिव्य प्राण चेतना से विश्व को प्रकाशित कर रही ‘ज्योति कलश यात्रा’ के आगमन को हर गाँव, नगर, मोहल्ले में ‘ज्योति अवतरण पर्व’ के रूप में मनाएँ।
पूर्व तैयारी
हर व्यक्ति, हर घर, हर केन्द्र, हर संस्थान को जगाती ज्योति कलश यात्रा के निमित्त पूर्व तैयारी से सम्बन्धित कुछ बिन्दु प्रस्तुत हैं :-
* व्यक्तिगत एवं सामूहिक साधना अनुष्ठान का क्रम चले।
* घरों, मनों, केन्द्रों के शुभ संस्कारों के जागरण के लिए सामूहिक यज्ञ, दीपयज्ञ, संस्कारों का आयोजन हो।
* सघन जनसम्पर्क कर अखण्ड ज्योति एवं ऋषियुग्म के अवतरण की दैवीय योजना और उसके लक्ष्य की जानकारी जन-जन तक पहुँचायें, उनका श्रद्धापक्ष बढ़ायें।
* गायत्री परिवार से जुड़े प्रत्येक परिजन के घर की द्वार से ही अलग पहचान हो। सद्विचारों अथवा गायत्री मंत्र के बोर्ड या स्टिकर अथवा मशाल का चित्र लगा हो। इन घरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता हो, जैसे गुरूदेव-माताजी की दिव्य चेतना यहाँ निवास करती है। ज्योति कलश यात्रा ऐसे हर घर को आलोकित करती चले।
देव मानवों को जोड़ना
युग निर्माण योजना के अंतर्गत परम पूज्य गुरूदेव ने अपनी सूक्ष्मीकरण साधना में पाँच वीरभद्र तैयार किए थे और उन्हें पाँच प्रमुख काम सौंपे थे -
1. वायुमण्डल का शोधन
2. वातावरण का परिशोधन
3. नवयुग का निर्माण
4. महाविनाश की संभावना का निरस्तीकरण
5. देव मानवों को जोड़ना
प्रथम चार कार्यों को ऋषिसत्ता सूक्ष्म एवं कारण स्वरूप में स्वयं सम्भाल रही है। पूज्य गुरूदेव के अंग अवयव होने के नाते हम कर सकते हैं, वह है देव मानवों को जोड़ना।
कैसे जोड़ें देव मानवों को?
अपने परिचय क्षेत्र के दायरे में देखें, ऐसे कौन-से अच्छे व्यक्ति हैं, जिनकी भावना अच्छी है, जिनके भीतर गुरूदेव के कार्य करने की ललक जगाई जा सकती है। हमारा दायित्व एवं कर्तव्य ऐसे परिजनों की जीवन ऊर्जा को पूज्य गुरूदेव के प्राण-प्रवाह से जोड़ देना है, शेष कार्य गुरू चेतना स्वयं करा लेगी।
नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोह
आगत नवसंवत्सर गायत्री परिवार में नूतनता का संचार कर रहा है। हमें नये उत्साह को धारण कर नूतन ऊर्जा, नूतन भाव एवं नूतन संकल्प के साथ कार्य करने की प्रेरणा प्रदान कर रहा है। ज्योति कलश यात्रा से जोड़कर हर क्षेत्र में इस ऊर्जा प्रवाह की अभिव्यक्ति ‘नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोह’ के माध्यम से की जानी चाहिए।
ज्योति कलश यात्रा का क्रम तो पूरे वर्ष चलेगा, लेकिन चैत्र नवरात्रि के दिनों में नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोहों के माध्यम से इनकी सफलता का ताना-बाना बुना जा सकता है। नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोह के पाँच चरण हों।
1. परिचय 2. प्रेम 3. प्रगति 4. प्रस्ताव 5. प्रयास
नवसंवत्सर अभिनंदन समारोह का शुभारम्भ पधारे परिजनों के आपसी परिचय से हो। नयी एवं पुरानी पीढ़ी के बीच आत्मीयता, उत्साह का वातावरण बढ़े, ऐसे प्रयास विशेष रूप से किए जाने चाहिए। इसके लिए निर्धारित समय सीमा में ऋषियुग्म से जुड़ी अनुभूतियाँ, भावनाएँ, संस्मरण आदि साझा किये जा सकते हैं ।
इन समारोहों में सहभोज की परम्परा अपनाई जाए। आपस में प्रेम एवं आत्मीयता विस्तार के भाव से अपने-अपने घर से टिफिन लाकर आत्मीयतापूर्ण वातावरण उसे प्रसाद रूप में ग्रहण कर सकते हैं।
इन समारोहों में अपने मण्डल, शाखा, केन्द्र, रचनात्मक आन्दोलन एवं अपनी अन्य गतिविधियों का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाए। इससे परस्पर सहयोग बढ़ेगा, समर्थन मिलेगा। आगामी कार्ययोजनाओं का प्रस्ताव पूरी टीम के मध्य प्रस्तुत किया जा सकता है। ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से भरे आत्मीयतापूर्ण वातावरण में नूतन प्रयासों के संकल्प उभरें, सभी मिल-जुलकर नई शुरूआत करें, इन्हीं
में नवसंवत्सर अभिनन्दन समारोहों की सफलता निहित है।
व्यक्ति निर्माण के पाँच चरण
परम पूज्य गुरूदेव ने व्यक्ति निर्माण को युग निर्माण की बुनियाद कहा है। इसके लिए उन्होंने अपने क्षेत्र की विभूतियों को जगाने की बात कही है। नवसंवत्सर अभिनंदन समारोह और ज्योति कलश यात्राओं के माध्यम से हमें भी यही करना है।
हमारी सक्रियता के पाँच चरण होने चाहिए-
(1) ढूँढ़ना, (2) मिलना, (3) मिशन समझाना, (4) भाव जगाना (5) दो पग की यात्रा
* पाँच प्रकार के परिजनों को ढूँढना है।
1. विद्वान 2. धनवान 3. शक्ति सम्पन्न 4. प्रतिभा सम्पन्न 5. भावनाशील
अपने संपर्क क्षेत्र विभूतियों की तलाश आरंभ की जाए। सघन जनसंपर्क ही सफलता का आधार है। विभूतियों तक हमें बार-बार पहुँचना होगा। अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से, पुस्तकों के माध्यम से, सोशल मीडिया के माध्यम से मिशन की गतिविधियों के प्रति उनका ध्यान आकर्षित करना होगा। बार-बार किए गए प्रयासों से ही वह भाव जगाए जा सकते हैं, जिससे कि वे हमारे युग निर्माण आन्दोलन में सक्रिय सहयोगी की भूमिका निभा सकें।
हमारी पहुँच दरवाजे की घंटी से आरंभ होकर घर के मंदिर की घंटी तक होनी चाहिए। पहला मिलन परिचय की दृष्टि से हो और हमारी आत्मीयता इतनी सघन हो कि कुछ दिन मिलने के बाद हम उनके घर के मंदिर में साथ-साथ आरती करते दिखाई दें।
हमारे व्यक्ति निर्माण की सफलता इसमें है कि जिससे हम संपर्क करें, वह दो पग अवश्य बढ़ाये। पहला पग बढ़ाने का अर्थ है कि उसमें इतना उत्साह जागे कि वह आसपास की शाखा/शक्तिपीठ तक पहुँचना आरंभ कर दे।
दूसरा पग बढ़ाने का अर्थ उसका युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज में आना है। इसे अच्छे से देख कर, समझकर, प्रेरित होकर यहाँ से नूतन संकल्प लेकर जाना है। जो शान्तिकुञ्ज आएँ वे 1. दीक्षा लेकर जाएँ 2. अखण्ड ज्योति और प्रज्ञा अभियान पाक्षिक की सदस्यता लेकर जाएँ 3. उनके घर युग साहित्य की स्थापना हो 4. स्वर्ण जयन्ती डाक टिकट की स्थापना हो।
पूज्य गुरूदेव ने ब्रह्मकमल के ब्रह्मबीज सम्पूर्ण विश्व में बिखेरे हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि उन बीजों को खोजने के निमित्त बनें, उन तक खाद, पानी एवं धूप पहुँचाने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करें, शेष गुरूदेव स्वयं सम्भाल लेंगे
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