अनेकों सत्प्रवृत्तियों का उभार नवरात्रि आयोजनों मे

नवरात्रि आयोजनों के साथ कई प्रकार की सत्प्रवृत्तियों को उभारने को अवसर मिलता है। इस दिशा में समुचित सतर्कता बरती जाय तैयारी की जाय तो आशाजनक सत्परिणाम सामने होंगे और यह साधना पर्व सच्चे अर्थों में सृजन पर्व बनकर रहेगा।
अपने क्षेत्र में रूचि कहाँ- कहाँ है? किन- किन में इस स्तर की सुसंस्कारिता के बीजांकुर मौजूद है। उसकी तलाश इस बहाने सहज ही हो सकती है। उपासना में सम्मिलित करने के लिए जन सम्पर्क अभियान चलाया जाय और घर- घर जाकर जन- जन को इस पुण्य प्रक्रिया का महत्व समझाया जाय तो जहां भी आध्यात्मिक रूचि का अस्तित्व मौजूद होगा वहां उसे खोजा और उभारा जा सकेगा। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है। दूब की जड़ें कड़ी धूप पड़ने पर सूख जाती हैं। पर वर्षा पड़ते ही उनमें फिर सजीवता उत्पन्न हो जाती हैं और देखते- देखते हरियाली के रूप में उसका सहज अस्तित्व सामने आ जाता है। जन समुद्र में मोती वाली सीप कहां है यह ढूँढ़ा जा सके और उन्हें स्वाँति वर्षा का लाभ मिल सकने की स्थिति तक पहुँचा दिया जाय तो उनमें से प्रत्येक को मोती जनने का सौभाग्य मिल सकता है। इस खोजबीन के सहारे धर्म रूचि को ढूँढ़ निकालना और उसे विकसित होने का अवसर ला देना ऐसा सत्प्रयत्न है जिसके माध्यम से अपने इर्द- गिर्द अनेकों नर रत्न उत्पन्न होने की संभावना साकार हो सकती है।
एक दिन का प्रभाव तो हलका और झीना होता है पर नौ दिन तक लगातार किसी साधना को किया जाय और वह भी नियमपूर्वक और तपश्चर्या के साथ तो निश्चय ही उसका प्रभाव उथला न रहकर गहरा होता चला जायेगा। साथ- साथ कोई भी काम किया जाय वह प्रिय लगने लगता है। उत्साह रहता है अभ्यास बनता है और अन्ततः वह स्वभाव का अंग बन जाता है। उपासना के प्रति इन दिनों एक प्रकार से उपेक्षा का ही वातावरण है। नवरात्रि का अभिनव वातावरण उस उपेक्षा को काट कर नया मार्ग दर्शन करता है वह अनुकरण की प्रेरणा भरता है। फलतः इन आयोजन का दूरगामी परिणाम यह होगा कि उस क्षेत्र में आस्तिकता की अभिवृद्धि होगी। कहना न होगा कि आस्तिकता यदि सच्चे अर्थों में सच्चे स्वरूप में समझाई और हृदयंगम कराई जा सके तो उसके साथ अनेकों सत्प्रवृत्तियाँ मनुष्य को सहज ही उपलब्ध होती हैं। इस उपलब्धि से व्यक्तित्व को विकसित करने की समृद्धि और प्रगति की अनेकानेक संभावनाएँ विकसित होती चली जाती हैं।
भारतीय समाज की सांस्कृतिक एकता की दृष्टि से कम से कम आस्तिकता के प्रति आस्था तो रहनी ही चाहिए। इतना भी न बन पड़ा तो विलगाव को समन्वय के रूप से विकसित कर सकना आति कठिन हो जायेगा गायत्री ज्ञान और विज्ञान में वे तत्व मौजूद हैं जो व्यक्ति और समाज के ढांचे में सत्प्रवृत्तियों का समावेश और संवर्धन कर सके ।। वैयक्तिक समृद्धि और सामूहिक प्रगति के लिए जो करना आवश्यक है उसको बहुमुखी प्रेरणाएँ गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों की व्याख्या विवेचना द्वारा सहज की उपलब्ध हो सकती है। लोक शिक्षण का जन- मानस के परिष्कार का जितना छोटा और जितना सशक्त आधार गायत्री मंत्र है वैसा विश्व भर में अन्यत्र खोज निकालना असंभव है। उस बहुमूल्य आधार की जानकारी और अभिरूचि का क्षेत्र सम्वर्धन नवरात्रि आयोजनों के सरल प्रयासों द्वारा हो सकता है। उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की महान संभावनाएँ इस छोटे से प्रयास द्वारा गतिशील विकसित और परिपुष्ट हो सकती हैं।
दार्शनिक एकता न केवल भारत में वरन् समस्त विश्व में भी होनी चाहिए। होकर रहेगी। इसके लिए विश्व भावना को एक सूत्र में जोड़ने वाला कोई आधार तो खोजना या बनाना ही पड़ेगा। कहना नह होगा कि इस युग की आवश्यकता को पूरा कर सकने की क्षमता गायत्री मंत्र से बढ़कर और कहीं ढूंढ़ सकना कठिन है। वह प्राचीनतम भी है और नवीनतम भी। उसमें आस्थाओं की गहराई और तथ्यों की तरूणाई का परिपूर्ण समन्वय है। गायत्री के प्रति न केवल भारतीय समाज में वरन् विश्व विस्तार में भी सद्भावना है। जिस प्रकार गीता को हिन्दू धर्म की सीमा में नहीं बांधा जाता विश्व, मानव की सम्पदा समझा जाता है और संसार भर में समान श्रद्धा के साथ उसे पढ़ा, अपनाया जाता है ठीक उसी प्रकार गायत्री का तत्त्वज्ञान भी थोड़े से प्रयत्न से विश्व मानव की सम्पत्ति बन सकता है। उसे थोपने की आवश्यकता नहीं। मात्र उसका आलोक और स्वरूप समझाने और समझाने जाने की आवश्यकता है। यह कार्य नवरात्रि आयोजनों से बहुत ही अच्छी तरह हो सकता है। प्रवचनों और पुस्तकों की शक्ति कितनी ही बढ़ी- चढ़ी क्यों न हो जब तक किसी दर्शन को व्यवहार प्रयोग में स्थान नहीं मिलता तब तक उसका लोक मान्यता में, प्रचलन और परम्परा में सम्मिलित हो सकना कठिन है। गायत्री के तत्व ज्ञान को जन- जीवन का अङ्ग बनाने से नवरात्रि के साधना सत्रों का प्रभाव गम्भीर भी होगा और दूरगामी भी। इस माध्यम से उज्ज्वल भविष्य के निर्माण एवं जन कल्याण की आवश्यकता पूरा कर सकने वाले आधार खड़े होते हैं।
नवरात्रि आयोजनों में सामाजिक क्रान्ति के अति महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश है। पिछले दिनों की रूढ़िवादिता और प्रतिगामिता ने जाति भेद के नाम पर प्रचलित ऊँच नीच को इस कदर बढ़ा दिया था कि उसने उपासना के सूर्य पर भी ग्रहण लगाये बिना नहीं छोड़ा गायत्री उपासना के संदर्भ में पिछले अन्धकार युग में यह मूढ़ मान्यता फैला दी गई थी कि उसे मात्र ब्राह्मण ही जप सकते हैं। स्त्री- शूद्रों के लिए पूर्ण निषेध था और अन्य जातियों को भी उनसे दूर रखा जाता था। प्रस्तुत नवरात्रि अभियान में जाति लिंग के समस्त भेद प्रतिबन्ध हटा दिये गये हैं। सभी नर नारी बिना किसी भेद के उस उपासना में समान रूप से सम्मिलित हो सकते हैं। इसमें मानवी एकता और संकीर्णता पृथकता और मिथ्या अहमन्यता का इस माध्यम से सहज उन्मूलन होता है जो सुदृढ़ भारतीय समाज को छिन्न- भिन्न कर देने में प्रधान रूप से उत्तरदायी है।
नवरात्रि आयोजनों के अन्त में साधकों के सहभोज की भी प्रथा है। इनमें अमृताशन ही परोसा जाता है अमृताशन का तात्पर्य है वे खाद्य पदार्थ जो भगौने में पकाये जा सकते हैं। दाल, चावल, खिचड़ी, दलिया आदि उसी वर्ग के हैं। पकवान मिष्ठान की तुलना में अत्यंत सस्त भी पड़ता है और पकाने में भी सरल है ।। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात यह है कि कच्ची पक्की रसोई में जो जातिवाद छूहछात का विलगाव चला आता है उसका इस प्रचलन से अन्त होता है। जगन्नाथपुरी में सभी भक्त जन बिना जातिगत भेदभाव के उबले हुए चावलों का प्रसाद बिना किसी असमंजस के श्रद्ध पूर्वक ग्रहण करते हैं फिर वही भावन गायत्री यज्ञ उपासना के पावन पर्व पर क्यों न ही परिलक्षित होनी चाहिए। जाति गत ऊँच नीच की मान्यता देखने में साधारण भी प्रतीत होती है पर वस्तुतः उसने असंख्यों सामाजिक कुरीतियों सम्प्रदायों और बिलगाव की दुष्प्रवृत्तियों को जन्म दिया है। एक भारतीय समाज टुकड़े- टुकड़े होकर बिखर गया है। इस भूल का परिमार्जन करने के लिए नवरात्रि आयोजनों में बिना किसी जाति और लिंग गत भेदभाव के उपासना एवं सहभोज में सम्मिलित होने का प्रचलन एक प्रकार के क्रान्तिकारी कदम ही कहा जायेगा। सामाजिक परिवर्तन के लिए इन प्रचलनों में अत्यन्त महत्वपूर्ण आधार जुड़े देखे जा सकते हैं।
गायत्री उपासना में भगवान को नारी रूप माना गया है। प्रकारान्तर से यह नारी तत्व की, मातृ शक्ति की वरिष्ठता को स्वीकार करना है। अगले दिनों भावना क्षेत्र का नेतृत्व नारी के हाथ में होगा। पुरूष अपनी सहज प्रकृति के अनुरूप श्रम साध्य कठोर कार्यों का उत्तरदायित्व वहन करेंगे। गायत्री उपासना में युवा नारी के प्रति पवित्र तम श्रद्धा को अपनाये रहने का तत्वज्ञान है। इसे परिवार एवं सामाजिक जीवन में स्थान दिया जायेगा तो सद्भावना और उत्कृष्टता और सच्चरित्रता को उभरने का परिपूर्ण अवसर मिलेगा। नवरात्रि के अवसर पर व्यक्त की जाने वाली मान्यता के आधार पर अपनी भूल सुधार सकते हैं।
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