शिक्षा बढ़ रही है पर मूढ़ता जहाँ की तहाँ हैं
नशेबाजी, माँसाहार, व्यभिचार, जुआ, चोरी जैसे दुर्व्यसन घट नहीं बढ़ रहे हैं । शिक्षा बढ़ रही है पर मूढ़ता जहाँ की तहाँ हैं । पढ़े-लिखे लोग भी दहेज के लिए जिद करें तो समझना चाहिए शिक्षा के नाम पर उन्हें कागज चरना ही सिखाया गया है ।
धर्म जैसी चरित्र निर्मात्री शक्ति आज केवल कुछ व्यवसाइयों के लिए भोले लोगों को फँसाने का जाल-जंजाल भर रह गई है । इन परिस्थितियों को मूक दर्शक की तरह देखते नहीं रहा जा सकता, इनके विरुद्ध जूझना ही एकमात्र उपाय है । अर्जुन की तरह हमें इस धर्म-युद्ध के लिए गाण्डीव उठाना ही पड़ेगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (३.६१)
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नवरात्रि साधना के संदर्भ में विशेष - उपासनाएँ सफल क्यों नहीं होतीं?
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युग परिवर्तन में भूमिका
मित्रो! आत्मपरिवर्तन के साथ- साथ यही जाग्रत आत्माएँ विश्व परिवर्तन की भूमिका प्रस्तुत करेंगी। प्रकाशवान ही प्रकाश दे सकता है। आग से आग उत्पन्न होती है। जागा हुआ ही दूसरों को जगा सकता है। जागर...
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गो-रक्षा की व्यावहारिक प्रणाली
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नवरात्रि आयोजनों के साथ कई प्रकार की सत्प्रवृत्तियों को उभारने को अवसर मिलता है। इस दिशा में समुचित सतर्कता बरती जाय तैयारी की जाय तो आशाजनक सत्परिणाम सामने होंगे और यह साधना पर्व सच्चे अर्थों में ...
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बहुमूल्य जीवन
मित्रो ! अभागों की दुनियाँ अलग है और सौभाग्यवानों की अलग। अभागे जिस-तिस प्रकार लालच को पोषते, अविवेकी प्रजनन में निरत रहकर कमर तोडऩे वाला बोझ लादते, व्यामोह में तथाकथित अपनों को कुसंस्कारी बनाते, अ...