अहिंसा और हिंसा (अंतिम भाग)
यह सोचना गलती है कि दुख देना हिंसा और आराम देना अहिंसा है। तत्वतः काम के परिणाम और करने वाले की नियत के अनुसार हिंसा अहिंसा का निर्णय होना चाहिये। तात्कालिक और क्षणिक दुख-सुख में दृष्टि को अटकाकर उससे उत्पन्न होने वाले परिणाम की ओर से आँखें बन्द कर लेना बुद्धिमानी न होगी। किये हुए कार्य के परिणाम का गंभीरतापूर्वक सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने के उपरान्त उसके उचित या अनुचित होने का निर्णय करना चाहिए और उसी के आधार पर उस कार्य को हिंसा या अहिंसा ठहराना चाहिये।
विवेकपूर्वक पालन की जाने वाली अहिंसा में दंड देने की, शस्त्र प्रहार करने की युद्ध और संघर्ष करने की गुंजाइश है। एक विचारवान व्यक्ति नेक नीयती, परोपकार और धर्म भावना से अहिंसा धर्म के अनुसार दुष्ट को जान से भी मार सकता है और इसके लिए वह बिलकुल निष्पाप रहेगा। किन्तु एक कायर, बुज़दिल, अकर्मण्य और अशक्त व्यक्ति यदि अपना गलती को छिपाने के लिए कष्ट से डरकर अन्याय सहन करे तो वह अहिंसक कदापि नहीं होगा, बल्कि उसे सच्चे अर्थों में पातकी की और हिंसक कहा जायेगा। वास्तव में कायरता और हिंसा एक ही वस्तु के दो स्वरूप हैं। दोनों की जननी स्वार्थ बुद्धि है। वीरता और उदारता अहिंसा है। जो परमार्थ बुद्धि के कारण उत्पन्न होती है।
अखण्ड ज्योति 1942 जुलाई
Recent Post
प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्नता का राजमार्ग (भाग 4)
बुराई की शक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रबलता के साथ टक्कर लेती है। इसमें सन्देह नहीं है। ऐसे भी व्यक्ति संसार में हैं जिनसे ‘‘कुशल क्षेम तो है’’ पूछने पर ‘‘आपको क्...
घृणा का स्थान
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा का ही भय है, जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है। यह क्रोध ही है,...
अनेकता में एकता-देव - संस्कृति की विशेषता
यहाँ एक बात याद रखनी चाहिए कि संस्कृति का माता की तरह अत्यंत विशाल हृदय है। धर्म सम्प्रदाय उसके छोटे-छोटे बाल-बच्चों की तरह हैं, जो आकृति-प्रकृति में एक-दूसरे से अनमेल होते हुए भी माता की गोद में स...
प्रगति के पाँच आधार
अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई।
(1) अपना दायरा बढ़ाओ, संकीर्ण स्वार्थ परता से आगे बढ़कर सामाजिक बनो।
(...
कुसंगत में मत बैठो!
पानी जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे बुरे लोगों के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैं, लेकिन अच्छे व्यक्ति बुरे आ...
अहिंसा और हिंसा
अहिंसा को शास्त्रों में परम धर्म कहा गया है, क्योंकि यह मनुष्यता का प्रथम चिन्ह है। दूसरों को कष्ट, पीड़ा या दुःख देना निःसंदेह बुरी बात है, इस बुराई के करने पर हमें भयंकर पातक लगता है। और उस पातक ...
अहिंसा और हिंसा (भाग 2)
बड़े बुद्धिमान, ज्ञानवान, शरीरधारी प्राणियों को दुख देने, दण्ड देने या मार डालने या हिंसा करने के समय यह विचारना आवश्यक है। कि यह दुख किस लिए दिया जा रहा है। सब प्रकार के दुख को पाप और सब प्रकार के...
अहिंसा और हिंसा (अंतिम भाग)
यह सोचना गलती है कि दुख देना हिंसा और आराम देना अहिंसा है। तत्वतः काम के परिणाम और करने वाले की नियत के अनुसार हिंसा अहिंसा का निर्णय होना चाहिये। तात्कालिक और क्षणिक दुख-सुख में दृष्टि को अटकाकर उ...
विचार एक मजबूत ताकत
शुभ सात्विक और आशापूर्ण विचार एक वस्तु है। यह एक ऐसा किला है, जिसमें मनुष्य हर प्रकार के आवेगों और आघातों से सुरक्षित रह सकता है। लेकिन मनुष्य को उत्तम विचार ही रखने और अपनी आदत में डालने अभ्यास नि...
प्रेम या अपनत्व
अपनों के लिए स्वभावत: उनके दोषों को छिपाने और गुणों को प्रकट करने की आदत होती है। कोई भी पिता अपने प्यारे पुत्र के दोषों को नहीं प्रकट करता है। वह तो उसकी प्रशंसा के पुल ही बाँधता रहता है। दुर्गुणी...