Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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संकल्पों का एकत्रीकरण
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(श्री स्वामी विवेकानन्द जी महाराज)
जब समुद्र के किनारे कोई बड़ी लहर आकर टक्कर मारती है, तब उससे बड़ी भारी आवाज निकलती है, परन्तु वह लहर करोड़ों सूक्ष्म तरंगों के एकीकरण से उत्पन्न होती है और वह बड़ी भारी आवाज भी उन सूक्ष्म तरंगों की तरह छोटी-छोटी आवाजों के एकत्रीकरण का ही फल होती है। वे छोटी-छोटी आवाजें स्वतंत्र रूप से हमारे अनुभव में नहीं आतीं। इसी प्रकार हमारे हृदय की गति इत्यादि सब क्रियाएं कर्म ही हैं। यदि किसी मनुष्य का सच्चा चरित्र आपको जानना हो, तो उसके किये हुये किसी बड़े कार्य में आप उसकी ठीक-ठीक परीक्षा नहीं कर सकते। मौका आ जाने पर कोई अत्यन्त कृपण मनुष्य कर्म को भी लज्जित कर सकता है। यदि ऐसे ही किसी मौके से हम किसी के चरित्र का अनुमान करेंगे, तो प्रायः उसमें भूल होने की सम्भावना है। मनुष्य के प्रतिदिन के व्यवहार और उसकी छोटी-छोटी बातों का सूक्ष्म अवलोकन करने से ही उसके चरित्र का यथार्थ ज्ञान होगा। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसे मौके आते हैं कि वह उस समय लघुत्वं भूलकर कुछ महत्वार्थ कर जाता है।
किसी मनुष्य का दैनिक जीवन ध्यानपूर्वक और निकटस्थ होकर देखने से पता चल जाता है कि यह किस प्रकार के विचार करता है। विचारों की अत्यंत सूक्ष्म लहरें जब घनीभूत होकर दृश्यमान होती हैं, तो वह कार्य के रूप में दिखाई पड़ती हैं अपनी व्यापक इच्छा शक्ति से जिन्होंने संसार का स्वरूप ही बदल दिया, वे समर्थ पुरुष बड़े भारी कर्मशील थे। संपूर्ण संसार की उलट पलट देने वाली सामर्थ्य उन्होंने अनेक युगों तक सक्षम कर्म-विचार करके अपने में एकत्र की थी। भगवान् बुद्ध अथवा भगवान् ईसा मसीह ने जन्म जन्मान्तरों से अपने मन में शुभ संकल्पों का बीजारोपण किया था, उनके अन्तिम पराक्रम उन्हीं संकल्पों का एकत्रीकरण समझना चाहिए।