Magazine - Year 1941 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
स्वरोदय
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री नारायणप्रसाद तिवारी उज्ज्वल, कान्हीबाड़ा)
“स्वर योग से दिव्य ज्ञान” पुस्तक का समाज ने जो आदर किया तथा अनेक सज्जनों ने पत्र भरा” मुझे उत्साहित किया, मैं उन सबका आभारी हूँ।
इसी विषय पर मैं कुछ और भी प्रकाश डालने का साहस करता हूँ। स्वरोदय विषय सरल अतीत होते हुए भी गहन है। उपर्युक्त प्रकाशित पुस्तक के बाद मैं इस विषय की इति-श्री नहीं समझता। मुझे कतिपय पाठकों ने यह कहा कि उसमें तत्व विषय बहुत कठिन है। मैं इसे स्वीकार करता हूँ, किन्तु अनुभव और अभ्यास से मनुष्य क्या नहीं कर सकता? हताश होना उचित नहीं। पाठकगण कृपया इस पत्र के मुख-पृष्ठ पर श्रीमान् सम्पादक जी के विचार देखें किः-
‘सुधाबीज बोने से पहले, कालकूट पीना होगा।’ इसी प्रकार कोई भी लाभ प्राप्त करने के पहले कष्ट सहन करना ही होगा। लेकिन करत 2 अभ्यास के जड़मत होत सुजान”। मैं इस विषय की खोज में बराबर लगा हुआ हूँ और मुझे जो भी मालूम होगा, प्रेमी जनों की सेवा में उपस्थित करुंगा। पुस्तक प्रकाशित होने के पश्चात् मेरी भेंट एक पण्डित जी से हुई, जिनके द्वारा उनके पूर्वजों के बंधे हुए बण्डल से मुझे स्वरोदय शास्त्र पर रनदास जी की हस्तलिखित पुस्तक तथा अस्त-अस्त कुछेक कागज प्राप्त हुए। उन कागजों से यद्यपि मुझे अपूर्ण प्रतीत हुए। मुझे जो कुछ भी प्राप्त हुए, उनकी चासनी मैं सेवा में उपस्थित करता हूँः-
स्वर-विचार
सोरठा-
अहरि शिष्य शिर नाय, कह दोई कर जोरि कै।
दीजै मोहि बताय, नाथ स्वरन को भेद अब॥
दोहा-
चन्द्र सूर्य मुन्द्र बसत, परम पुरुष के ठाम।
निर अक्षर सों मिलत है, नरातीत को धाम॥
वाही धाम सिर ऊपरे, कमल सहस दस आँहि।
सो छाया शशि भाग की, कमल अष्ट दल माहि॥
वाही के परकास से, स्वाँस बीच दरसाय।
उदय किरन जो मेल के, रवि शशि फेर लखाय॥
मुद्रा है वहाँ रहत है, नाड़ी यहाँ कहाय।
सो अब मैं वरनन करुँ, तिनके नाम बताय॥
बाँये सुर नाड़ी इड़ा, पिंगली दहिने जान।
दोनों सुर इक दम चले, तेहि को सुखमन मान॥
सोरठा-
सोई ईश्वर में लखे, चन्द्र सूर्य करता उभय।
भोगे विपति विशेष, जो स्वर बिन समझे चलै॥
छोहा-
चन्द्र चलत नाड़ी इड़ा, बायें नासिका स्वाँस।
नाड़ी पिंगला जानिये, दहिने सूरज बास॥
इड़ा मध्य गंगा बहै, जमुना पिंगला जान।
दो स्वर सम है सरस्वती, नाड़ी सुखमन मान॥
इड़ा नाड़ि के बीच में, चन्द्र बीज साकार।
पिंगल नाड़ि के बीच में, भानु बीज आकार॥
सुखमन नाड़ी में रहै, पावक बीज रकार।
बैनाड़ी में रम रहो, आतम राम विचार॥
उन्हें सिद्धि चाहै करन, जपै बीज ले साथ।
लिखो देख मत भूलियो, युक्ति गुरु के हाथ॥
सोरठा-
जारत कर्म रकार, ज्ञान प्रकाश अकार तें।
भक्ति देत साकार, अरु नासत त्रै ताप को॥
अपूर्ण