Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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पापों का अन्त क्यों नहीं होता?
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एक जिज्ञासु किसी तत्वज्ञानी पुरुष से पूछ रहा था कि-महाराज! संसार से पापों का अन्त क्यों नहीं होता? अब तक इतने महात्मा, साधु, अवतार, हो चुके हैं सबने इस दुनिया को भला बनाने का प्रयत्न किया, पर किसी के प्रयत्न का कुछ भी फल नहीं हुआ, संसार जैसे का तैसा पापपूर्ण अब भी बना हुआ है। इसमें सदा ही बुराइयों की भरमार है।
तत्व ज्ञानी ने जिज्ञासु को एक कथा सुनाई, उसने कहा-एक बार एक मनुष्य बहुत बुरी दशा में निर्वाह कर रहा था। उससे सुना कि यदि किसी के वश में भूत हो जाय तो उसे मनचाही चीजें बात की बात में लाकर दे सकता है। उसने सोचा कि किसी प्रकार भूत को वश में कर पाऊँ तो मेरे सब अभाव मिट जायेंगे। अब वह भूत को वश में करने की क्रिया मालूम करने के लिये जगह-जगह घूमने लगा।
एक दिन उसे दैवयोग से किसी ऐसे महानुभाव से भेंट हो गई जो भूत को वश में करने की विद्या जानते थे। उस गरीब आदमी के बहुत अनुनय-विनय करने पर वह विधि उसने उसे बता दी? उसी प्रकार उसने अनुष्ठान किया और मरघट को जगा कर एक भूत को वश में कर लिया। जब वह वश में आ गया तो भूत ने प्रकट होकर कहा-महानुभाव, अब मैं आप के वश में हूँ, मुझसे जो चाहें काम लीजिये, लेकिन मैं ठाली न बैठूँगा, जब ठाली रहूँगा तो आप पर ही पिल पढूंगा। गरीब आदमी ने कहा कि अच्छी बात है, बेकार न रहने दूँगा, मेरे पास बहुत काम हैं। जाइये, मेरे लिये एक महल बनाइये। भूत ने चन्द मिनटों में ही महल बना दिया। फिर उसने काम माँगा, तो उसने कहा-इस महल में बहुत सा धन, खजाना, सजावट का सामान, नौकर चाकर आदि सब चीजें लाकर दो। भूत ने पाँच मिनट के अन्दर राजमहलों की तरह सब चीजों से उसे सजा दिया और फिर काम माँगने के लिये सामने आ खड़ा हुआ। उसकी उतनी कार्य-शक्ति देख कर मालिक बहुत घबराया और अपनी जान बचाने के लिये उन्हीं तान्त्रिक महानुभाव के पास भागा, जिन्होंने उसे भूत वश में करना सिखाया था। मालिक आगे-आगे भूत पीछे-पीछे। दोनों दौड़ते-दौड़ते उन्हीं सज्जन के यहाँ पहुँचे। उस गरीब आदमी ने सारा किस्सा कह सुनाया और उससे बचने का उपाय पूछा।
तान्त्रिक महोदय बुद्धिमान थे, उन्होंने भूत को एक कटी हुई कुत्ते की पूँछ दिलाई और कहा इसे सीधी कर के रख दे। भूत उस पूछ को हाथों से पकड़ कर सीधी कर देता, किंतु जैसे ही उसे रखता कि वह फिर वैसी ही टेढ़ी हो जाती, भूत फिर सीधी करके रखता वह फिर टेढ़ी हो जाती, इस प्रकार पूँछ का बार-बार टेढ़ा होना गरीब आदमी के लिये-भूत से छुटकारा पाने का एक अच्छा उपाय मिल गया।
तत्व ज्ञानी महोदय ने इस कथा के आधार पर जिज्ञासु को समझाया कि संसार की बुराइयाँ, प्राणियों को अपने बचाव के लिये अच्छा मार्ग है। जिस प्रकार पत्थर का नाल उठाने का अभ्यास करने से अनेक मनुष्य पहलवान बन जाते हैं, किंतु मूर्ख लोग उससे ठोकरें खाते और पछताते हैं। संसार एक प्रकार की व्यायाम शाला है, इसमें तरह-तरह की बुराइयों के मुद्गर, नाल आदि पड़े हुए हैं। इनको उठाने के अभ्यास में अनेक लोग उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर जाते हैं, किंतु वह मुद्गर और पत्थर ज्यों के त्यों पड़े रहते हैं। मन एक प्रकार का भूत है, इसे टेढ़ी होने वाली पूँछ को सीधी करने में और बुराइयाँ दूर करने में लगाया जाय तो उसी में उलझा रहता है और आत्मा का अनिष्ट नहीं कर पाता। इसीलिये परमात्मा में आत्मोद्धार का अभ्यास करने के लिये संसार में बुराइयाँ छोड़ रखी हैं और उनका अन्त नहीं होता।
कथा-