Magazine - Year 1942 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कर्तव्य की जिम्मेदारी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
प्राचीन समय में रात्रि के समय समुद्री जहाजों के पथ-प्रदर्शन करने के लिए छोटे-छोटे टापुओं पर प्रकाश-स्तम्भ खड़े किये जाते हैं। उन पर रोशनी ठीक रखने के लिए चौकीदार नियुक्त किये जाते थे। इन चौकीदारों का कर्तव्य बड़ा कठोर होता था। यदि किसी कारणवश रोशनी न हो तो पानी के जहाज टापू से टकरा कर उलट सकते थे और सैकड़ों आदमियों की जानें जा सकती थीं।
अमेरिका के एक टापू में ऐसा ही प्रकाश-स्तंभ था, एक दिन रोशनी करने वाला चौकीदार हृदय की गति रुक जाने से अचानक संध्या-समय मर गया। स्त्री को बड़ा दुःख हुआ। उस टापू पर वहाँ यह तीन व्यक्ति थे, चौकीदार,उसकी स्त्री और दो वर्ष का बालक। स्त्री विपत्ति और वियोग के दुःख से आर्त्त होकर रोने लगी।
दस मिनट भी न हो पाये थे कि स्त्री को अपने महान कर्तव्य का ध्यान आया। आँखों से बहते हुए पानी को उसने रोका, पति की लाश को एक कोठरी में बन्द किया और उसी में अपने छोटे बच्चे को सुलाकर बाहर से किवाड़ बन्द कर दिये। स्त्री प्रकाश-दीपक के पास स्तंभ पर चढ़कर पहुँची और उसे जलाने लगी। दीपक तो उसने जला दिया, पर काँच की चिमनी यथा-स्थान न लगा सकी। उसे इसका कुछ अनुभव थोड़े ही था।
स्त्री ने सोचा चिमनी ठीक न लगने पर हवा से दीपक बुझ जाएगा। इसलिए उसने निश्चय किया कि हाथ से चिमनी पकड़े हुए रात भर वहीं खड़ी रहेगी। कर्तव्य का उत्तरदायित्व जो उसे पूरा करना था। वह फौजी कप्तान की तरह अपने कर्तव्य के मोर्चे पर डटी रही। रात को इतनी अधिक सर्दी पड़ी और ऐसा बर्फीला तूफान आया कि सवेरा होते-होते वह स्त्री भी ठंड के मारे गिरकर मर गई।
दूसरे दिन प्रातः काल एक जहाज उधर से निकला। उसने देखा कि प्रकाश स्तम्भ सुनसान पड़ा हुआ है। नाविक उतर कर वहाँ गया। स्त्री की लाश चिमनी हाथ में लिये हुए पड़ी थी। कोठरी खोली गई तो चौकीदार का मृत शरीर रखा हुआ था। कोठरी में बन्द हुआ बच्चा रो-रो कर अम्मा को पुकार रहा था।
जहाज के अधिकारियों को सारी घटना समझने में देर न लगी। उनने बालक को गोदी में उठा लिया और पुचकारते हुए उससे कहा—बच्चे, तुम भूलते हो, वह तुम्हारी ही अम्मा नहीं थी, वह तो अनेक स्त्री-पुरुषों की माता थी, जिनकी जानों को उसने अपनी जान देकर बचाया।”