Magazine - Year 1942 - Version 2
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Language: HINDI
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सूर्य-चिकित्सा की पाठशाला
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(अलीगढ़ में व्यवस्थित शिक्षा का प्रबंध)
सूर्य चिकित्सा कितनी अद्भुत गुणकारी है, इसका अनुभव परीक्षा करने के उपराँत हर कोई कर सकता है। प्रतिष्ठित विद्वान् एवं तत्वज्ञानी विचारक पं0 फूलचंदजी मिश्र ने इस चिकित्सा के मर्म को समझते हुए, इस महा-विज्ञान को प्रसारित करने का संकल्प किया है। आपने रामघाट रोड, अलीगढ़ की मैथिल, ब्राह्मण पाठशाला में इसकी शिक्षा का प्रबंध किया है। गर्मी के दिनों में जब कि पाठशालाओं के छात्र और अध्यापक एवं दफ्तरों में काम करने वाले व्यक्ति अवकाश पाते हैं, इस अवकाश का वह एक बहुत ही सुँदर उपयोग होगा कि सूर्य चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त करके अनेक पीड़ित बन्धुओं के प्राण बचाने की योग्यता प्राप्त की जावे। वह पाठशाला इन गर्मी के दिनों में शिक्षा का विशेष रूप से प्रबन्ध करेगी, हो सका तो इसकी एक कक्षा नियमित रूप से चलती रहेगी।
इस शिक्षा को आरम्भ करने के सम्बन्ध में श्री मिश्र जी लिखते हैं-”अब से ढाई वर्ष पहले मुझे अपने एक आत्मीय नवयुवक के रुष्ठ हो कर चले जाने और घर पर यह पत्र लिख कर छोड़ जाने से हार्दिक वेदना हुई कि-’ताऊजी मुझे भूल जाना” जिसके कारण पेचिश रोग हो गया, जो कभी-कभी उभर आता है। वैद्य, हकीम और डाक्टरों से चिकित्सा कराई, धन भी पर्याप्त व्यय हुआ, पर स्थायी लाभ न हुआ। दैवान् पं0 हरि प्रसाद जी ओझा, ‘प्रेम’ ने मुझे अखण्ड ज्योति कार्यालय में ले गये। वहाँ पर में अखण्ड ज्योति का ग्राहक बनाया। आपने सूर्य-चिकित्सा विज्ञान पुस्तकें उपहार में दीं। इस पुस्तक को मैंने आद्योपान्त पढ़ा और नारंगी रंग की बोतल के पानी से अपना इलाज करना आरम्भ किया। उससे लाभ हुआ। इसी आधार पर अपने अधीन श्री मैथिल ब्राह्मण संस्कृत पाठशाला, रामघाट रोड अलीगढ़ में इस चिकित्सा विधि को पढ़ाने का प्रबन्ध इस प्रकार किया है कि आयुर्वेदाचार्य फिजीशियन एण्ड सर्जन पं0 बसु मिश्र को शिक्षक नियुक्त किया है। जिन्होंने ता0 27 मार्च से 22 जून तक वैज्ञानिक रूप से इस कार्य को करने का भार लिया है। रंगीन बोतल आदि सामान पाठशाला कमेटी ने देना स्वीकार किया है। पढ़ने वाले पुस्तक अपने व्यय से क्रय करेंगे। पहले-पहले पाठशाला के मध्यमा के विद्यार्थियों को चिकित्सा सीखने के लिए प्रोत्साहित किया है। पुनः मेरा विचार है कि मई के अन्तिम सप्ताह या जून के प्रथम सप्ताह में आप को अलीगढ़ पधारने का दो-तीन दिन के लिए कष्ट दूँ, ताकि शिक्षा की त्रुटियाँ दूर हो जावें और भविष्य में शिक्षा सुचारु रूप से हो।
मिश्र जी का यह कार्य सर्वथा स्तुत्य, प्रशंसनीय और अनुकरणीय है, हमारा विश्वास है कि मिश्र जी सूर्य चिकित्सा की भारतीय प्राचीनतम पद्धति का प्रसार करने का जो प्रयत्न कर रहे हैं, उससे जन-समाज की बड़ी भारी सेवा होगी।