Magazine - Year 1942 - Version 2
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Language: HINDI
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सत् पथ पर कदम बढ़ाओ!
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(वेदों का अमर सन्देश)
ऋतस्य कि शुरुधः सति पूर्वीः ऋतम्य धीति वृजिनानि हैति। ऋतस्य श्लोकों बधिरादतर्द, कर्णा बुधानः शचमान आयोः।(ऋ0)
सत्य की शोक-निवारक सम्पत्तियाँ सनातन हैं। सत्य की धारणा करना पापों का, वर्जनीय वस्तुओं का नाश कर देता है। सत्य की जगाने वाली और दीर्प्यमान आवाज को बहरे मनुष्य भी सुन लेते हैं।
अहं भूमिम ददामार्यायाह वृष्टिंदाशुषे मर्त्याय।
अहमपो अनयं वावशानामम देवासों अनुकेतनायम्
(ऋ ॰ 5 : 26 । 2)
मैंने (परमेश्वर ने) श्रेष्ठ पुरुषों को भूमि दी है, दान देने वाले मनुष्यों के लिए धन तथा सुख की वर्षा करता हूँ। मैं बार-बार शब्द करने वाले मेघों को लाता हूँ, विद्वान लोग मेरे ज्ञान के अनुसार चलते हैं।
मोघमत्रं विन्दने अप्रचेताः सत्यं ब्रचरमि वध इत्स तस्य। नार्यमणं पुण्यतिनो सखायं केवलाघो भवति केवनादी।
(ऋ ॰ 10 । 117।6)
अर्थ—मैं सत्य कहता हूँ कि वह मूर्ख व्यर्थ ही अन्न प्राप्त करता है, जो न प्रियजन को, न अतिथि को, न मित्रों को खिला कर पुष्ट करता है, वह (अन्न) उसका नाश कर देता है। वह अकेलखोरा निरा पाप-पुँज होता है।
य आध्राय चकमानाय पित्वोऽन्न वान्त्सनाफितायापजग्मुषे। स्थिरं मनः कृणुते सेबते पुरोतोचित्स मर्द्वितारं न विन्दते।
(ऋ ॰ 1।117 2)
अर्थ-जो अन्नवान् (सम्पत्तिवान) होते हुए भी किसी असमय याचक के लिए अपना हृदय कड़ा कर लेता है। ऐसे उस (संपत्तिवान) पर कोई दूसरा भी उपकार नहीं करता। महन्त बालकृष्णदास जी कराँची, स्वामी यदुनाथ जी पुनियाद, श्री बलवीरसिंह जी रेणु टिहरी, स्वामी चन्द्रशेखर जी अब्बीगेरी, डॉक्टर रामनन्दसिंह जी सहनोरा, महन्त सुन्दरदास जी खुन्दपुर जैसे साहसी महानुभावों का काम है।
ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियाँ निकट हैं। इन दिनों प्रायः सभी लोगों के पास अवकाश कुछ अधिक रहता है। अध्यापक लोगों के स्कूलों से अवकाश रहता है, विद्यार्थी छुट्टी मनाते हैं, दफ्तरों की तातीलें रहने के कारण कर्मचारीगण फुरसत में रहते हैं। कृषि का काम भी बन्द रहता है। इन दिनों कितने ही पढ़े लिखे व्यक्ति फुरसत में होंगे। कुछ सज्जन इकट्ठे होकर इन दिनों एक शिक्षा-केन्द्र बना सकते हैं। पुस्तकों की सहायता से शिक्षा चल सकती है। जो साधक इन विषयों की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें तो अवश्य ही गर्मियों में अपने यहाँ शिक्षा-केन्द्र स्थापित करके भारत की इन गुप्त विद्याओं के प्रचार का पुण्य प्रयत्न करना चाहिये।