Magazine - Year 1942 - Version 2
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Language: HINDI
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आओ, युद्ध सामग्री बनावें!
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बहुधा हमारे सामने ऐसे प्रश्न आते हैं कि वर्तमान महायुद्ध कब तक चलेगा, इसमें कौन जीतेगा। इसके बाद भविष्य कैसा होगा, आत्म रक्षा के लिए क्या करना चाहिये, इस समय हमारा क्या कर्त्तव्य है। आज इस विषय में कुछ प्रकाश डाला जा रहा है।
यह युद्ध मानव के अन्दर से दानवत्व हटाने के लिये आरम्भ हुआ है और जब तक दुनिया में से स्वार्थ, षडयन्त्र और पैशाचिक लिप्सा उठ न जाएगी तब तक जारी रहेगा। विगत शताब्दियों में मानव-जाति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करके अपने से निर्बलों के साथ मनमाने अत्याचार कर चुकी है। उसका फल उसे भोगना ही पड़ेगा। यह भली-भाँति समझ लेना चाहिये कि सारी मनुष्य जाति एक मजबूत धागे में बँधी हुई है।
मनुष्य जाति अब एक समूचे शरीर की तरह बन गई है। इसमें एक अंग का परिणाम सारे अंगों को भोगना पड़ेगा। हाथ धन कमायेगा तो उसका सुफल सारे शरीर को मिलेगा और मुँह विष पी लेगा तो सारे अंगों पर आपत्ति आवेगी। एक समय था जब हर मनुष्य एक स्वतन्त्र इकाई था या एक परिवार अपनी आवश्यकताएँ स्वयं पूरी करके समाज से अलग बना रहता था और इसमें के भले-बुरे कर्मों के फल से बचता था। आज तो विज्ञान ने संसार के हर एक व्यक्ति को एक सूत्र में बाँध दिया है। इसलिये एक के भले-बुरे कर्मों का फल दूसरों को जरूर भुगतना होगा। पड़ोसी के जलते हुए घर को खड़े-2 देखने वालों का घर भी बच नहीं सकता। खड़े-2 दुष्कर्म को होते हुए देखना कानूनन जुर्म है। कोई किसी की हत्या कर रहा हो और आप उसका विरोध न करें तो आप भी दोषी ठहराये जावेंगे और दण्ड के भागी बनेंगे। इस प्रकार संसार में जो पाप-अत्याचार बढ़े हैं, उन्हें करने वाले और न करने वाले दोनों को ही दण्ड भुगतान होगा। जब पाप का परिशोध हो जायगा और दण्ड-शोधित मनुष्य जाति अन्तःकरण से पश्चाताप करते हुए भविष्य में सन्मार्ग पर चलने की अनिवार्य आवश्यक अनुभव करेगी, तब लीलाधारी भगवान अपनी माया समेट लेंगे, रुद्र का हाहाकारी तीसरा नेत्र शान्त हो जाएगा। इस युद्ध की समाप्ति हो जाएगी। तोप, टैंक, हवाई जहाज, बम और गैसों के बल पर यह युद्ध समाप्त न होगा। अधिक साधनों के कारण कोई शक्ति अपने विरोधी को कुछ समय के लिये दबा भले ही दे, पर रावण के सिरों की भाँति अन्य प्रतिद्वन्द्वी उपज खड़े होंगे और उसी विभीषिका की फिर पुनरावृत्ति आरम्भ हो जाएगी।
हो सकता है इस देश में अन्य देशों की अपेक्षा फौजी संकट कम आवे और अधिकाँश देहाती क्षेत्र अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार से बचे रहें। फिर भी गरीबों को अन्न-कष्ट और अमीरों को लूट-पाट का संकट सहना पड़े, यह सम्भव है। नित्य हजारों टन बारूद का जो हवन हो रहा है, उससे महामारियों का प्रकोप होने की भी सम्भावना है, जैसा कि गत युद्ध के बाद नाना प्रकार की महामारियाँ फैली थीं और युद्ध में जितने व्यक्ति मरे थे, उससे कहीं अधिक संख्या में नरसंहार करके शान्त हुई थी। मनुष्य जाति के मस्तिष्क में दुष्पूर तृष्णा, कपट, मायाचार और स्वार्थ का जब तक ऐसा ही विकट धान रहेगा, तब तक दुनिया खूब कुटेगी और उसकी एक-2 नस लोहे की लाठियों से तोड़ी जाती रहेगी। प्रसव-वेदना के बाद जैसे पुत्र उत्पन्न होने का लाभ होता है, वैसे ही उस युद्ध का परिणाम भी लाभदायक होगा। जमाना बिलकुल पलट जाएगा, वर्तमान युग की विचार-धाराएं पूर्णतः बदल जाएगी, कलियुग के स्थान में सतयुग बरतने लगेगा। अन्धों को यह बात आश्चर्यजनक और असम्भव प्रतीत हो, परन्तु आँखों वाले देखते हैं कि समय बड़े ही द्रुत वेग से बदल रहा है, इतने द्रुत वेग से कि पूर्ण रूप से युग बदल जाने में शायद पच्चीस-पचास वर्ष भी न लगें।
इस समय हमें क्या करना चाहिये। आध्यात्मिक व्यक्तियों को वही करना चाहिये, जो भौतिक जगत् में अमेरिका कर रहा है। अमेरिका का विश्वास है कि अधिक शास्त्रास्त्र उत्पन्न करने से शत्रु को हराया जा सकेगा। आध्यात्मिक व्यक्तियों का विश्वास होना चाहिये कि सत्य, प्रेम और न्याय की पवित्र भावनाओं का प्रसार करके सूक्ष्म लोकों की गन्दगी को मार भगाया जा सकता है। हम न्याय के टैंक, प्रेम के वायुयान और सत्य के बम अपने मस्तिष्कों के कारखानों में तैयार करें, जिनकी मार से शत्रु शैतान का सारा बल चूर-2 हो जाए। राष्ट्रपति रुजवेल्ट अपने देश की आमदनी का बहुत बड़ा अंश युद्ध-सामग्री तैयार करने में खर्च कर रहे हैं। हमें अपनी शक्तियों का अधिक से अधिक अंश आध्यात्मिक हथियार बनाने में लगाना चाहिये। इसके लिये न तो किसी सामान की जरूरत है और न तैयारी की। आज से ही आप अपने मन में पवित्रता, त्याग, उदारता, ईमानदारी, सच्चाई और इन्साफ-पसन्दगी को भरने की कोशिश शुरू कर दीजिये। अपने जीवन को नेक बनाइये और दूसरों को नेकी के मार्ग में जुटाने का भगीरथ प्रयत्न कीजिये। इस प्रकार आप संसार में ऐसी दैवी कुमुक भर देंगे जो आसुरी प्रकृतियों को मार कर दूर भगा देगी। यदि आप सत्यं को अपना धर्म मान लेते हैं और ईमानदारी के अनुसार आचरण करना आरम्भ कर देते हैं तो अपने को, अपनी जाति को, अपने देश को और अपने संसार को इस महान तम-विपत्ति में से बचाने का सबसे कामयाब तरीका अख़्तियार करते हैं। यह न समझना चाहिये कि युद्ध के दैत्याकार अस्त्र-शस्त्रों के सामने यह छोटा-सा उपाय क्या काम दे सकता है। हम कहते हैं कि सत्य का आश्रय लेना सबसे बड़ी सुरक्षा है। ईश्वर की शरण में जाना सबसे बड़ी गारण्टी है। भले ही इससे हमारा शरीर न बच सके, लेकिन संसार का सर्वनाश बच सकता है। हमारा शत्रु पाप है और उस पाप का अन्त करने के लिये सत्यमय विचार धाराओं को युद्ध सामग्री का निर्माण प्रारम्भ करना चाहिये।
इस महान निर्माण में अखण्ड ज्योति अपने पाठकों का सहयोग चाहती है।
युद्ध सम्बन्धी कुछ नैतिक तैयारियाँ।
युद्ध सम्बन्धी खतरे से बचने के लिये पाठकों को निम्न बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये।
1—जो लोग ऐसे शहरों में रहते हैं, जिनमें खतरे की अधिक सम्भावना है उन्हें अपने बाल-बच्चे और बढ़ा हुआ सामान सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा देने चाहियें।
2—जीवन का रहन-सहन बिलकुल सादा और अल्पव्ययी बना लेना चाहिये जिससे गरीब लोग अपनी गुजर कर सकें और अमीरों के आडम्बर को देख कर किसी को जलन न हो।
3—अन्न और वस्त्र उचित मात्रा में जमा कर लेने चाहिये, जिन्हें अपने और दूसरों के काम में लगाया जा सकें।
4—फैलाव कम करना चाहिये, आपसी लड़ाई-झगड़ों को जल्द से जल्द सुलझाना चाहिये।
5—अपने विचार के अधिक से अधिक लोगों को एक सूत्र में बाँधना चाहिये जो आपत्ति के समय एक दूसरे की सहायता करें।
6—स्त्री पुरुषों को अधिक से अधिक ब्रह्मचर्य से रहना चाहिये। वर्तमान काल सन्ध्या समय है, ऐसे समय में उत्तम संतान उत्पन्न नहीं हो सकती।
7—नित्य व्यायाम करना और शरीर को बलवान बनाना आरम्भ कर देना चाहिये जिससे आपत्तियों का मुकाबला करने की क्षमता रहे।
8—मन को मजबूत बनाना चाहिये। भय, घबराहट, चिन्ता और व्याकुलता को दूर करके दृढ़, आत्मविश्वासी और निर्भय बनाना चाहिये। आपत्ति के समय मस्तिष्क का सन्तुलन न खोने का अभ्यास करना चाहिये, जिससे तत्काल उचित निर्णय किया जा सके।
9—रक्षा विभाग द्वारा जो सूचनाएँ दी जाएं, उनको समझने और आचरण करने का प्रयत्न करना चाहिये। दैनिक अखबार नित्य पढ़ने चाहियें।
10—नित्य ईश्वर का चिन्तन करना चाहिये। भजन, कथा, कीर्तन और उपदेशों में शामिल होना चाहिये। सत्य धर्म के मन्तव्यों को स्वयं अपनाना चाहिये और जनता में उनका प्रचार करना चाहिये।
कथा—