Magazine - Year 1942 - Version 2
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Language: HINDI
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(श्री केशव प्रसाद पाठक, एम. ए.)
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कौन बोला?
......................आज ससृत के शिखर से कौन चला?
प्रेम कविता, धर्म दृढ़ता, ज्योति जड़ता से समेटे।
पच्छिमी तंद्रित तमिस्रा, मृत्यु की चादर लपेटे॥
सृष्टि को ले सो रही थी।
और मानवता स्वयं जब, चेतना सी खो रही थी॥
तिमिर छलनाऐं छिपाये, चिर सजग षड़यंत्र का क्रम।
हँस सहज फैला रही थी, मधुर सपनों का सरल भ्रम॥
पूर्व में पिछले प्रहर किसने सुनहला द्वार खोला।
कौन बोला?
.......आज जागृति के शिखर से कौन बोला? ॥ 1॥
कौन अपने को नहीं भाता किसे प्यारा न अपना।
हो गया सबसे अधिक प्रिय बन चुका जो एक सपना॥
लुट चुका सर्वस्व जिसका।
विश्व की स्वाधीनता पर स्वर रहेगा उच्च किसका॥
सींखचों में पड़ समझता वह कि वह स्वतन्त्र क्या है?
बोल पिंजर जड़ बता होना कभी परतन्त्र क्या है?
उठ कि बन्दी कौर ने भी, चीर तीली, उर टटोला।
कौन बोला?
........आज परिणत के शिखर से कौन बोला?॥ 2॥
स्वार्थ के सिक्के जहाँ पर हाट हिंसा की लगी है।
और पशु की शक्ति की प्रभुता जहाँ पर जिंदगी है॥
हृदय अणु विज्ञान क्षण में।
पिघल, घुलकर नित्य बनते नव विषैले गैस रण में॥
यन्त्र में मस्तिष्क ने अपना नया आदर्श खोजा।
हो गई राष्ट्रीयता पर जग मनुजता एक बोझा॥
प्राण में मानव तुला, पर बोल किसने प्यार तोला।
कौन बोला?
........आज उन्नति के शिखर से कौन बोला? ॥ 3॥
-राष्ट्रवाणी ।
*समाप्त*