Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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वह आ रहा है।
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हमारी आंखें देखती है कि वह आ रहा है! ग्राह के फंदे से गज को छुड़ाने के लिए जैसे वह दौड़ा था वैसे ही शैतान के मुख में ग्रसित मनुष्यता को बचाने के लिए गरुड़ पर चढ़ा हुआ वह नटनागर तीर की तरह सन सनाता हुआ चला आ रहा है।
बस, बहुत हो चुका। मनुष्य को बड़ी करारी ठोकर लगी है। उंगलियां टूट गई हैं। घुटने फूट गये हैं और भेजे के बल ऐसा धड़ाम से गिरा है कि सिर में से खून की तलूली बन्ध रही है। मुद्दतों का खाया पिया निकल गया। मुद्दतों से पाली पोसी देह चकनाचूर हो गई। नस-नस में दर्द हो रहा है, चिल्लाने की भी ताकत नहीं रही अब तो वह असहायावस्था में पड़ा हुआ धीरे-धीरे कराह रहा है। अपना बल जिसके मद से वह पागल बना हुआ था और पर्वत को तृण समझता हुआ आकाश को अपनी मुट्ठी में लेने की तैयारी कर रहा था। आज वह बल चूर-चूर हो गया है। ग्राह से ग्रसित होकर गज का घमंड टूटा था, महायुद्ध की विनाश लीला ने मनुष्य का मद चूर कर दिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय तक संसार का बड़ा भारी विनाश हो चुका है और आगे और भी भयंकर त्रास होने वाला है। इस मर्मांतक के चोट से मनुष्य सिहर उठा है, उसकी आंखें अब खुली है और समझा है कि मैं चाहे जो करता रहूँ और उसकी कोई देखभाल न हो ऐसी बात नहीं है। बहुत उछलने वाला बालक जब माता की उपेक्षा करके अपने दुराग्रह पर जिद करता है तो माता उसे एक ठोकर खाने के लिए छोड़ देती है। अब वह चोट बहुत करारी लग चुकी है यह होश में ला देने के लिए कम नहीं है।
दयालु माता इस चोट के बाद चुप नहीं बैठी रहती वह दौड़ती है और पुत्र की मरहम पट्टी करती है। उसे पुचकारती है, छाती से लगाती है, दुराग्रह की हानि समझाती है और उपदेश करती है कि बेटा! अब ऐसा मत करना। सत्य को छोड़ कर असत्य की ओर, प्रेम को छोड़कर मोह की ओर, न्याय को छोड़कर अन्याय की ओर, जब मानव प्रवृत्तियाँ मुड़ी तो दिन दूने और रात चौगुने वेग से पतन के गर्त में गिरने लगी। आज वे उस स्थान पर आ पहुँची जहाँ अनंत होता है। ऊपर से गिरा हुआ पत्थर नीचे गिरता हुआ चला आता है और जब तक वह पतन मार्ग शेष रहता है तब तक वह क्रम जारी रहता है पतन मार्ग समाप्त होते ही नीचे के तल से वह टकराता है और एक बड़े शब्द के साथ चूर-चूर हो जाता है। आज असुरत्व अन्तिम सीढ़ी से टकरा कर मनुष्यता में विग्रह उपस्थित हुआ है।
विनायश्च दुष्कृताम् के अध्याय को पूरा करता हुआ, ‘धर्म संस्थापनार्थाय’ वह बड़े वेग से आ रहा है। मनुष्य दैवी तत्वों से बना हुआ है उसे देवता बनकर ही रहना है उसे देवता ही बन कर रहना होगा। कम से कम इस पुण्य भूमि भारती भगवती में तो वह देवत्व कायम ही रहेगा तेतीस कोटि देवताओं का यह सुरलोक पाप की पंक में पड़ा हुआ सड़ता नहीं रह सकता।
भगवान् सत्यनारायण आ रहे हैं। असुरता का शोधन करके सुरतत्व का निर्माण करने के लिए गरुड़ वाहन आज बड़े दूत वेग से भूमण्डल पर आ रहे हैं उनकी सुनहरी किरणों से दशाएं जगमगा रही हैं। ऊषा काल की मलय समीर जागृत आत्माओं को चैतन्य करती हुई उन्हें उठने का उद्बोधक कर रही हैं, और उस उद्बोधन से प्रभावित होकर ऋषि रक्त की असंख्य कर्मवीर आत्माएं उठ रही हैं और युग निर्माण की आधार शिला में अपने रक्त का पुण्य बलिदान देने के लिए प्रसन्न मुख खड़ी हुई है। लीलामय प्रभु की अलौकिक प्रतिभा भक्तजनों के अन्तर मनों में झाँक रही है और उन्हें विश्वास दिला रही है कि ‘धर्म’ संस्थापनार्थाय, मैं अविलम्ब आ रहा हूँ। विवेकवान आत्माएं श्रद्धापूर्वक दिव्य चक्षुओं से देख रही हैं, कि वह आ रहा है। सचमुच वह आ रहा है।