Magazine - Year 1944 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्म-लाभ के कुछ क्षण
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(श्री भगवानदासजी पारीख, भरथना)
यों तो अखण्ड ज्योति द्वारा स्वाध्याय और सत्संग का अखण्ड कार्यक्रम सदा चलता रहता है। कर्मयोग गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत के कोने कोने से शिक्षार्थी लोग सदा आते रहते हैं परन्तु इस श्रावण मास में नाग पंचमी से लेकर श्रावणी तक 11 दिन के सत्संग का एक विशेष आयोजन हुआ था। मथुरा वृन्दावन में श्रावण के झूलों का उत्सव प्रसिद्ध है। उसे देखने के लिए लाखों यात्री हर वर्ष पहुँचते हैं, ऐसे नयनाभिराम उत्सव के साथ साथ अखंड ज्योति का कर्मयोग सत्संग भी हो रहा था। इस अवसर से लाभ उठाने का लोभ संवरण न हो सका फलस्वरूप अनेक कठिनाईयों के होते हुए भी मैं और पं. विश्वेश्वर दयालु जी मथुरा के लिए चल पड़े।
एक साधारण से पन्द्रह रुपया मासिक किराये के मकान में घीयामंडी रोड पर अखण्ड ज्योति कार्यालय है। इस मकान में प्रवेश करने पर कोई ऐसा आकर्षण नहीं है जिसके चकाचौंध से कोई अजनबी मनुष्य प्रभावित हो जाए, परन्तु कुछ ही देर ठहरने पर ऐसा अनुभव होता है कि इस स्थान में अत्यन्त प्रभावशाली विद्युत तरंगें प्रवाहित हो रही हैं और उनके प्रभाव से अन्तःकरण एक ढांचे में उसी प्रकार अपने आप ढलने लगा है जैसे लोहा गरम होकर साँचे में जाता है और एक विशेष आकृति का तैयार हो जाता है। चुपचाप एकान्त होकर बैठिए तो भी ऐसा मालूम होता है कि यहाँ की वायु हृदय के भीतरी कोने में प्रवेश करके आध्यात्मिकता की शिक्षा दे रही है। कान उस शिक्षा को सुन नहीं पाते तो भी अन्तरात्मा उससे सन्तुष्ट हो जाती है और एक अनिर्वचनीय शान्ति का अनुभव होता है।
अखण्ड ज्योति का संचालन एक दुर्बलकाय, व्यक्ति द्वारा होता है। कठोर परिश्रम, असाधारण अध्ययन, निरन्तर चिन्तन, नरनारायण की सेवा की असाधारण लगन आदि तपश्चर्याओं के कारण इसने अपना माँस सुखा डाला है। इस कृश काया में कोई खास सुन्दरता नहीं है फिर भी क्षणभर गंभीरतापूर्वक इसके चेहरे को देखने से प्रतीत होता है कि यह तेज का पुँज है, विद्या, अनुभव और ज्ञान की प्रौढ़ता इसके नेत्रों में से फूटी पड़ती है। बालक सा सरल, पुष्प सा पवित्र, धेनु सा उपकारी, स्नेह, दया शान्ति और निष्कपटता की मूर्ति यह सच्चा ब्राह्मण अपने ढंग का अनोखा व्यक्ति हमने अपने जीवन में देखा। इसका नाम है-आचार्य श्री राम शर्मा। साधारण आचार्य जी कहकर इनको सब लोग सम्बोधन करते हैं।
मैं कई वर्ष से अखण्ड ज्योति का ग्राहक हूँ। उसके लेखों से हम लोग बहुत ही प्रभावित होते हैं, कितने ही व्यक्तियों को इन कागज के पन्नों ने कुछ न कुछ बना दिया। पत्रिका के लेखों में ऐसी यथार्थता और प्रभावशालीनता रहती है कि उससे अन्तःकरण में सीधी हलचल पैदा होती है। ऐसा जादू इन जरा से कागजों में क्यों है यह रहस्य मैंने मथुरा जाकर समझा। जो कुछ लिखा जाता है वह केवल लेख नहीं होता। एक ब्रह्मनिष्ठ तपस्वी की आत्मा में से निकला हुआ ब्रह्म वर्चस्व कागज के पन्नों में लिपट कर जाता है और पाठकों को प्रभावित करता है। अपने जीवन के छोटे से दिनों में अखंड ज्योति ने अध्यात्मवाद का, सदाचार का, धर्मनिष्ठा का जितना प्रचार किया है उतना अन्य साधनों से शायद ही हुआ हो। इसका कारण वह ब्रह्मनिष्ठा और तपश्चर्या है जिसे मथुरा जाकर मैंने अपनी आँखों से स्वतः देखा।
ग्यारह दिन का सत्संग बड़ी अच्छी तरह हुआ। कितने विद्वानों के भाषण सुनने को मिले। दूर प्रान्तों से आये हुए अपने धर्म बन्धुओं से भी परिचय प्राप्त हुआ। झूलों का उत्सव देखा। प्राचीन ऐतिहासिक स्थान और मन्दिर देखे। शंकाओं का समाधान किया। ज्ञान में पहले की अपेक्षा बहुत वृद्धि हुई। उलझा हुआ मस्तिष्क सुलझा और भी न जाने क्या क्या लाभ हुए, उन लाभों को इन थोड़ी सी पंक्तियों में लिख सकना न तो संभव है और न आवश्यक ही। परन्तु एक सबसे बड़ी वस्तु जो हमें प्राप्त हुई वह है-”प्रेरणा”। अनेक पुस्तकों के पढ़ने और अनेक प्रवचन सुनने पर जो वस्तु कहीं प्राप्त नहीं हुई थी वह केवल दो सप्ताह से भी कम समय में हमें प्राप्त हुई। मन नहीं चाहता था कि ऐसे पुनीत स्थान को छोड़ कर वापिस लौटें परन्तु साँसारिक जिम्मेदारियों के कारण वापिस आना पड़ा। परन्तु हमें सन्तोष है कि खाली हाथ नहीं लौटे। आशा से बहुत अधिक वस्तु लेकर वापिस आये।
घर आकर मैं और पं. विश्वेश्वरदयालुजी अपने अपने काम में लग गये हैं हम लोगों ने अपना व्यापारिक कामकाज शुरू कर दिया है। पहले की तरह ही सब काम काज करते हैं परन्तु अब हमारा दृष्टिकोण दूसरा है। यज्ञमय भावना से, कर्त्तव्य कर्म को निस्वार्थ भाव से करते हुए हम दोनों को अपनी साधारण दिनचर्या में बड़ा सन्तोष और सुख मिलता है। राजा जनक आदि कर्मयोगी घर गृहस्थी में रहते हुए, तुलाधार वैश्य साधारण व्यापार करते हुए भी, कबीर जुलाहे का काम करते हुए भी किस प्रकार योगी रह सके होंगे यह बात पहले हमें कठिन और असम्भव दिखाई पड़ती थी परन्तु अब ऐसा मालूम पड़ता है कि यह बातें सरल और व्यावहारिक हैं। हम दोनों ऐसा ही जीवन बिताने की सोचते हैं, ईश्वर ने चाहा तो हम लोगों की आकाँक्षा असफल न रहेगी।