Magazine - Year 1945 - Version 2
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Language: HINDI
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सिद्ध जैसा अभिनय करिये।
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लोग अपने कष्टों को दूसरों को सुनाकर उनकी सहानुभूति प्राप्त करना चाहते हैं। देखा गया है कि लोग अपनी बीमारी, गरीबी, असफलता, दुर्भाग्य, तिरस्कार, हानि, विपत्ति आदि के विवरण सविस्तार दूसरों को सुनाने में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं और कभी-कभी उसमें नमक मिर्च मिलाकर बढ़ा-चढ़ा भी देते हैं। ऐसे लोग यह आशा करते हैं कि सुनने वाला उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करेगा, दुखी होगा, दया करेगा और दुखिया समझकर उनके लिए सहायता या स्नेह के भाव रखेगा।
परन्तु यह आशा आमतौर से मिथ्या साबित होती है। इस दुनिया में ऐसा कायदा है कि जो सुखी, स्वस्थ, समृद्ध, सम्पन्न, सफल, सौभाग्यशाली तथा समर्थ होते हैं उन्हें ही दूसरों की सहानुभूति और सद्भावना प्राप्त होती है। सब कोई पहले अपने स्वार्थ को प्रधानता देते हैं पीछे दूसरे की ओर देखते हैं। अभागे की राम कहानी सुनकर, सुनने वाला सोचता है, इस पर दैव का कोप है, पापों का फल भोग रहा है, आलसी या अयोग्य है, ऐसे आदमी से दूर रहना ही भला। यदि इसके साथ रहेंगे तो किसी न किसी प्रकार खीजना पड़ेगा, हानि उठानी पड़ेगी, ऐसे मित्रों के रखने से समाज में मेरी प्रतिष्ठा घटेगी। इन सब बातों को सोचता हुआ सुनने वाला उस वक्त शिष्टाचार की तरह चार शब्द भले कह दे या टूटी-फूटी सहायता का टुकड़ा भले फेंक दे पर मन ही मन वह खीजने लगता है, रूखापन औरेतिडडडडडडड, 1945 ्रकार का और ऋ=======================ब्======================================================================== उदासीनता प्रकट करने लगता है। इस प्रकार यह आशा मिथ्या साबित होती है जिससे प्रेरित होकर कि आदमी अपने कष्टों को दूसरों को सुनाता है।
उचित यह है कि हम अपनी असफलताओं और दीनता, हीनताओं को ध्यान में लावें। उन्हें दूसरों को सुनाने में तो बहुत ही सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि अपने को असफल अभागा घोषित करने का स्पष्ट परिणाम अपनी प्रतिष्ठा को खो देना है। इस दुनिया में इतनी फुरसत किसी को नहीं है कि आप का रोना सुनकर अपने को दुखी बनावे। हर एक को अपनी कठिनाइयाँ ही काफी हैं, आप की मुसीबतों को सुनकर अपना दिल भारी बनाने की कोई इच्छा नहीं करता।
यदि आप अपने को सफल, समृद्ध तथा सौभाग्यशाली घोषित करेंगे तो उससे कई लाभ होंगे लोग समझेंगे कि आप सुयोग्य, बुद्धिमान, चतुर, अनुभवी, गुणवान तथा क्रिया कुशल हैं तभी तो अपने मार्ग में सदा सफल होते हैं। ऐसे गुणवान और चतुर लोगों से अपनी मित्रता सब कोई चाहते हैं ताकि वक्त जरूरत पर उनसे कुछ सहारा मिल सके। सुयोग्य मनुष्यों से मित्रता होना भी एक योग्यता और प्रतिष्ठा की बात है। यह अनुभव करके बहुत से लोग अनायास ही सौभाग्यशालियों के मित्र बन जाते हैं। इसलिये दूसरों की सहानुभूति प्राप्त करने का तरीका यह नहीं है कि अपनी असफलताओं का रोना रोया जाय, वरन् यह है कि अपनी सफलताओं और समृद्धियों को बताया जाय।
अपनी असफलताओं का बार-बार स्मरण करने का वर्णन करने से अपना हौसला टूटता है और मन पर अयोग्यता की छाप बैठती है। यदि एक आदमी को बार-बार ‘पागल’ कहा जाय तो वह कुछ दिन में सचमुच ही आधा पागल बन जायेगा। कारण यह है कि सुप्त मन, आदेशों को ग्रहण करके उन्हें अपने अन्दर धारण करता है और फिर जीवन क्रम को उसी ढांचे में ढालने लगता है। यदि मन में यह बात जमाई जाय कि हम अभागे हैं, दीन दुखी हैं तो अन्तःमन उसी सूचना को स्वीकार कर लेगा और जीवन क्रम का निर्माण इस प्रकार करेगा कि सचमुच ही जीवन दुर्भाग्यों से भर जायेगा।
यदि आप सौभाग्यशाली बनना चाहते हैं सुनहरी भविष्य की आशा करते हैं तो स्मरण रखिए आपको सिद्ध जैसा अभिनय करना पड़ेगा।