Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आत्म-बोध
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सरिता-तरंगों में तुम्हारा ही विलास देख,
मग्न हो उन्हीं में लहराता चला जाता हूँ।
प्राची में तुम्हारी मनोहारी मुसकान देख,
मोद-मद-माता मन्द-मन्द मुसकाता हूँ॥
गीत बन कण्ठ से निकलता तुम्हारा स्वर,
रागधी मधुर ध्वनि-धारा में समाता हूँ।
मुख-चन्द्र व्योम-वल्लरी में मुसकाता जब,
पी के सुधा रूप की अमर-पद पाता हूँ॥
काँटों में गहन बन-बीच मुसकाता हुआ,
स्वयमेव मार्ग गढ़ता मैं चला जाता हूँ।
हिंस्र पशुओं के रद कुलिश-करों से तोड़,
प्रति पल आगे बढ़ता मैं चला जाता हूँ॥
गाते, उमड़ाते, हहराते नद-के समान,
शैलों को विचूर्ण करता मैं चला जाता हूँ।
नाथ! भर मन में तुम्हारी अविचल ज्योति,
तम-तोम में भी हंसता मैं चला जाता हूँ।
देखता हूँ जिस ओर उस ओर अभिराम,
घनश्याम! रमता हुआ मैं तुम्हें पाता हूँ।
देख के तुम्हारा फहराता हुआ पीत-पट,
मलय-समीर की लहर बन जाता हूँ॥
पल्लवों में छिप के बजाते तुम बंशी जब,
नाच उठता हूँ, झूम-झूम कर गाता हूँ।
रंग में रंगा मैं बन जाता हूँ तुम्हारा रूप,
मञ्जु मेदनी में स्वर्ग अपना बसाता हूँ॥
भीषण प्रहार आते सुमनोपहार बन,
पथ के अंगार मेरे हार बन जाते हैं।
आरती उतारते दिनेश-चन्द्र मेरी नित्य
शृंग व्योम-चुम्बी शीश अपना झुकाते हैं॥
मेरे लिए व्योम का वितान रहता है तना,
तारे नित्य आके मञ्जु मोती बरसाते हैं।
शीतल समीर मन्द-मन्द ढारता है चौंर,
गीत वन्दना के ये विहंग-वृंद गाते हैं।।
===========================================================================
*समाप्त*