Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सत्य की शरण से सिद्धि
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री शिवप्रताप जी श्रीवास्तव, असोथर)
सत्य एक ऐसी वस्तु है जिसका आश्रय लेने से सम्पूर्ण उत्तम गुणों की प्राप्ति स्वयं हो जाती है। सत्य का आश्रयी सत्पुरुष सद्गुणों का समुद्र और ज्ञान का भण्डार बन जाता है। यद्यपि सत्य के मिलन में आरंभ में साधक को अनेक प्रकार की कठिनाइयों और क्लेशों का सामना करना पड़ता है, परन्तु सत्य की सिद्धि हो जाने पर उसके शोक और मोह का आत्यन्तिक अभाव हो जाता है। अतः सत्य का पालन करने वाले पुरुष को निर्भयता से अपने लक्ष्य पर डटे रहना चाहिये। सत्य के लिये प्रमाणों की आवश्यकता नहीं है। वह तो स्वयं स्वतः प्रमाण है। अन्य सब प्रमाणों की सिद्धि सत्य पर ही अवलम्बित है। सत्य का प्रतिपक्षी सत्य को नष्ट करने के लिये चाहे जितने उपाय करे, सत्य को तनिक भी आँच नहीं आती, बल्कि वह जितना ही कसौटी पर कसा जाता है, जितना ही अधिक तपाया जाता है उतना ही वह उज्ज्वल रूप धारण करता रहता है। ताड़ना से, ताप से, मिट जाय वह सत्य ही नहीं है। जो सत्य पालन का थोड़ा सा भी महत्व जान लिया है उससे सत्य का त्याग होना कठिन है, फिर जिन्होंने इसके तत्व का सम्यक् परिज्ञान प्राप्त कर लिया है वे कैसे विचलित हो सकते हैं? केवल एक सत्य का तत्व जान लेने पर मनुष्य सब तत्वों का ज्ञाता बन जाता है, क्योंकि सत्य परमात्मा का स्वरूप है और परमात्मा के ज्ञान से सब का ज्ञान हो जाना प्रसिद्ध है। अतः मन, वाणी और इन्द्रियों द्वारा सत्य की शरण लेनी चाहिये। सत्य संपूर्ण संसार में व्याप्त है। अन्वेषण करने पर सर्वत्र सत्य की ही प्रतीति और अनुभूति होने लगेगी। जो कुछ भी प्रतीत होता है, विचारपूर्वक परीक्षा करने से सब सिद्धियों का मूल एक सत्य ही ठहरता है।