Magazine - Year 1958 - Version 2
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चिकित्सा का एक सरल साधन-मिट्टी का प्रयोग
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(महात्मा गाँधी)
हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है। इसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर को स्वस्थ और आरोग्य रखने के लिए इन्हीं पाँचों चीजों की आवश्यकता है। स्वच्छ मिट्टी, स्वच्छ जल, स्वच्छ धूप, स्वच्छ वायु और स्वच्छ आकाश (खुला स्थान) का मिलना हमारे शरीर के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इन तत्वों में से एक भी तत्व का न मिलना हमारे अस्वस्थ होने का कारण होता है। जिस तत्व की जिस परिमाण में आवश्यकता है उस तत्व का उस परिमाण में मिलना ही हमारे शरीर का स्वास्थ्य है।
वर्तमान समय में जिस प्रकार जल, वायु, धूप से चिकित्सा करने की विधियाँ प्रचलित की गई हैं उसी प्रकार मिट्टी का उपचार भी बड़ा चमत्कारिक है। हमारे शरीर का अधिक भाग मिट्टी का ही बना है इसलिए उस मिट्टी का असर होना कोई नई बात नहीं है। बहुत लोग मिट्टी को पवित्र मानते हैं। दुर्गंध मिटाने को जमीन पर मिट्टी लीपते हैं। सड़ी चीजों पर मिट्टी डालते हैं। अपवित्र हाथों को मिट्टी से धोकर पवित्र करते हैं। योगी लोग शरीर पर मिट्टी लगाते हैं। हमारे यहाँ के लोग फोड़े फुन्सियों में मिट्टी का उपचार करते हैं। हम पानी को साफ करने के लिए उसे मिट्टी या बालू से होकर छानते हैं। मुर्दे (शव) को जमीन में गाड़ देने से हवा में गन्दगी पैदा नहीं होती। मिट्टी की इस प्रत्यक्ष महिमा से हम अनुमान कर सकते हैं कि उसमें कितने ही विशेष गुण अवश्य हैं।
जिस प्रकार डा. लुईकूने ने जल के सम्बन्ध में खूब विचार करके कितनी ही उपयोगी बातें लिखी हैं वैसे ही जुस्ट नामक एक अन्य जर्मन ने मिट्टी के सम्बन्ध में अनेक लाभदायक बातें बतलाई हैं। उसका कहना है कि “एक बार मेरे पास के किसी गाँव में एक आदमी को साँप ने काट खाया। बहुतों ने उसे मरा समझ लिया। पर वहाँ किसी आदमी ने मुझसे सलाह लेने की बात कही। मैंने उसे मिट्टी में गढ़वा दिया। थोड़ी देर बाद उसे होश आ गया।”
यह कोई अनहोनी बात नहीं है। और कोई कारण नहीं कि जुस्ट झूठ लिखता। यह तो साफ दिखलाई पड़ता है कि मिट्टी में गाड़ देने से बहुत गर्मी निकलती है। हमारे पास यह जानने के साधन नहीं है मिट्टी में मौजूद किन्तु अदृश्य जन्तुओं ने शरीर पर क्या काम किया है। पर यह निर्विवाद है कि मिट्टी में जहर आदि चूस लेने की शक्ति है। इस पर भी जुस्ट ने लिख दिया है कि- मेरा इससे यह मतलब नहीं है कि सभी साँप के काटे मिट्टी के इलाज से जी उठते हैं। पर ऐसे समय में मिट्टी का उपचार करना चाहिए। बर्र और बिच्छू के डंक पर मिट्टी के उपयोग की मैंने खुद भी आज़माइश की है और उससे तुरन्त आराम मालूम हुआ है। मिट्टी को ठण्डे पानी में सानकर उसकी गाढ़ी पुल्टिस सी बनाकर डंसे हुए स्थान पर रखकर कपड़े से बाँध दें। नीचे बतलाये रोगों में मैंने इस उपचार को खुद आजमाया है। पेट में मरोड़ होने वालों के पेडू पर मिट्टी की पुल्टिस बाँधने से दो-तीन दिन में मरोड़ बन्द हो गई है। सिर में दर्द होने से मिट्टी की पुल्टिस रखने से तुरन्त ही आराम हुआ है। आँख उठने पर भी यह पुल्टिस बाँधने से लाभ देखा गया है। चोट में मिट्टी की पुल्टिस बाँधने से सूजन और दर्द दोनों दूर हो जाते हैं।
बहुत दिनों तक मेरी यह दशा थी कि मैं फ्रूट सालृ इत्यादि लिये बिना निरोग नहीं रहता था। 1904 में मिट्टी की उपयोगिता मालूम हुई थी। तब से फ्रूटसालृ आदि चीजें छूट गई। फिर किसी दिन इनको लेने की जरूरत नहीं हुई। कोष्ठबद्धता में पेडू पर मिट्टी की पुल्टिस बाँधने से पेट नरम पड़ जाता है। अतिसार भी मिट्टी के बाँधने से जाता रहता है। तेज बुखार में माथे और पेडू पर मिट्टी बाँधने से एक-दो घण्टे बाद बुखार बहुत कम हो जाता है। फोड़े, फुँसी, दाद और खुजली आदि पर मिट्टी की पुल्टिस प्रायः बहुत अच्छी असर करती है। हाँ ऐसे फोड़ो पर मिट्टी की उपयोगिता कम हो जाती है जो मवाद देते हैं। बवासीर के लिए मिट्टी बहुत लाभदायक है। पाला लग जाने से प्रातः हाथ और पैर लाल होकर सूज जाते हैं। इस पर मिट्टी की पुल्टिस अपना असर दिखाये बिना नहीं रहती। पैरों की उंगलियों में खाज हो जाने पर मिट्टी गुणकारी देखी गई है। दुखते जोड़ों पर मिट्टी लगाने से तुरन्त फायदा होता है। मिट्टी के बहुत से प्रयोग करते हुए मुझे मालूम हुआ है कि घरेलू इलाज के लिए मिट्टी एक बहुमूल्य वस्तु है।
सब प्रकार की मिट्टी समान गुण वाली नहीं होती। सुर्ख मिट्टी अधिक असर करने वाली पाई गई। मिट्टी सदा साफ जगह से खोद कर निकालें। जिस मिट्टी में गोबर इत्यादि का मैल हो उसे काम में नहीं लेना चाहिए। मिट्टी बहुत चिकनी न हो। बलूई मिट्टी अच्छी समझी जाती है। उसमें किसी प्रकार का कूड़ा कचड़ा न हो। मिट्टी सदा ठण्डे पानी में भिगोएं। गूँथे हुए आटे के समान कड़ी मिट्टी रखनी चाहिए। साफ, बिना कलप के झंझरे कपड़े में बाँध कर पुल्टिस की तरह रखें। शरीर पर सूखने के पहले मिट्टी को खोल दें। साधारणतः एक दफे की पुल्टिस दो से तीन घण्टे तक चल सकती है। काम में लाई हुई मिट्टी दोबारा काम में न लाएं। पुल्टिस में बंधा कपड़ा धोकर दुबारा काम में लाया जा सकता है। लेकिन उसमें पीव इत्यादि न लगी हो। पेडू पर पुल्टिस बाँधनी हो तो पहले पुल्टिस पर एक गरम कपड़ा रखे तब उस पर पट्टी चढ़ाएं। हर आदमी को एक डिब्बे में भर कर मिट्टी रखनी चाहिए, जिससे मौके पर ढूंढ़ने न जाना पड़े। बिच्छू आदि के डंक पर जितनी जल्दी मिट्टी लगाई जाती है उतना ही अधिक फायदा होता है। यों तो मिट्टी में अनगिनत गुण हैं पर कुछ खास बातें नीचे दी जाती हैं :-
(1) अन्दर के पुराने मल को उखाड़ती है।
(2) अन्दर के विजातीय द्रव्य (दूषित पदार्थ) को बाहर खींच लेती है।
(3) सूजन, दर्द, फोड़े, फुन्सी आदि में लाभ करती है।
(4) प्रदाह (जलन), टपकन एवं तनाव आदि को दूर करती है।
(5) शरीर की अतिरिक्त गर्मी को खींचती है।
(6) शरीर में आवश्यक ठंडक पहुँचाती है।
(7) शरीर को चुम्बकीय शक्ति मिलती है। जिससे अन्दर स्फूर्ति एवं शक्ति का संचार होता है।
(8) जहरीले अथवा पागल जन्तु के काटने पर लाभकारी है।
मिट्टी त्वचा के रोमकूपों को खोलती है। रक्त को ऊपरी भाग में खींचती है। अन्दर के दर्द एवं रक्त के इकट्ठे होने को दूर करती है। रक्त के संचार को तेज करती है और विजातीय पदार्थों के बाहर निकालने में सहायता करती है। अगर स्वच्छ मिट्टी पर सोया जाय तो वह शरीर के अन्दर की अतिरिक्त गर्मी को शाँत करके कोपों की मरम्मत करती है और अच्छी नींद लाती है। इसी प्रकार नदी नाले पर या घर पर मिट्टी से शरीर को खूब रगड़कर मलने से शरीर का मैल छूटकर त्वचा झलकने लगती है और कोमल भी हो जाती है। इससे रोमकूपों के छिद्र खुल जाते हैं और शरीर को अधिक परिमाण में ‘ओषजन’ प्राप्त होती है। जहाँ साबुन से नहाने से अनेक प्रकार की हानियाँ हैं। वहाँ मिट्टी मलकर स्नान करने से बड़ा लाभ होता है।
कुछ लोग अपनी सुन्दर, सुकोमल त्वचा पर मिट्टी लगाना असभ्यता का चिन्ह समझते हैं। फैशन वाले लोग इसे हंसी की बात समझते हैं। पर उनको समझ लेना चाहिए कि जिस मिट्टी से हमारा शरीर बना है और जिस मिट्टी में पैदा हुआ भोजन नित्यप्रति खाकर हम जीवित रहते हैं उसका उपयोग किसी दशा में लज्जा या संकोच का विषय नहीं माना जा सकता। हमको उसका प्रयोग करके अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए।