Magazine - Year 1958 - Version 2
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Language: HINDI
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आपके करने के 16 आवश्यक कार्य
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इन्हें भूलिये मत, नोट कर लीजिए।
मानव जाति की सोई हुई अन्तरात्मा को जगाने के लिए, विश्व में धर्म भावनाओं का मुख्य शान्तिमय वातावरण उत्पन्न करने के लिए, भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठान के लिए, दैवी तत्वों को परिपुष्ट करने के लिए इस युग के इस अभूतपूर्व एवं महानतम यज्ञ को सुसम्पन्न करना आवश्यक है। यह महा अभियान असफल न रहने पावे इसके लिए हम सबको अपना उत्तरदायित्व समझना होगा और कंधों पर आई हुई जिम्मेदारियों को निबाहना होगा।
जो कार्य आपको करने हैं जिनकी पूर्ति का हर समय ध्यान रखना है, जिनके लिए कुछ समय निरन्तर देते रहना है, वह यह हैं इन्हें नोट कर लीजिए इन्हें विचार क्षेत्र में उतार दीजिए। इन्हें करने में आज से ही जुट जाइए।
1- यदि अभी तक आप ब्रह्माण्ड अनुष्ठान की पूर्णाहुति के यजमान, होता या संरक्षक कुछ भी नहीं बने हैं, तो जिस श्रेणी में आपको सुविधा हो उसमें भर्ती हो जाइये। संकल्प पत्र गत अंक में छपे हुए हैं। उन्हें भरकर तपोभूमि में भेजिए और यज्ञ के नियमित भागीदार बनिये।
2- इस वर्ष गायत्री माता एवं यज्ञ पिता का संदेश घर-घर पहुँचाने का अलख जगाना यज्ञ की पूर्णाहुति इसका एक उत्तम माध्यम है। यज्ञ का समाचार पहुँचाने, होता, यजमान, संरक्षक बनाने मथुरा चलने का निमन्त्रण देने का कार्यक्रम लेकर आप अपने परिचितों के पास अपरिचितों के पास दूर-दूर तक भ्रमण कीजिए। यह धर्म फेरी वस्तुतः सच्ची तीर्थ यात्रा है।
3- धर्म फेरी का कार्य बिना प्रचार साहित्य के सम्भव नहीं। जिसके पास संदेश पहुँचाने जावें उसे इस सम्बन्ध का कुछ छपा साहित्य भी दीजिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए तपोभूमि से अत्यन्त ही सस्ती लागत से भी कम मूल्य में 80 पुस्तकें तथा 240 परिपत्र 6 में दिये जा रहे हैं। आप इतना प्रचार साहित्य मंगा लें और धर्म प्रचार में लगें। इतने पैसे कठिन मालूम देते हों तो आधा-चौथाई जितना सम्भव हो उतना मंगा लें। कई व्यक्ति मिलकर एक सैट मंगा ले ऐसे भी किया जा सकता है। इस यज्ञ में आप धर्म फेरी तथा ज्ञान दान की दो प्रक्रियाएं किसी न किसी रूप में अवश्य ही कर लें।
4- यदि आपके यहाँ गायत्री परिवार की शाखा अभी तक संगठित नहीं है तो कम से कम 5 सदस्य बनाकर एक मंत्री नियुक्त करके अपने यहाँ शाखा स्थापित कर लें। यह संगठन भले ही छोटे हों तो भी बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं।
5- सामूहिक साप्ताहिक सत्संगों के क्रम अपने यहाँ चालू कीजिए। सामूहिक जप, हवन, पाठ, कीर्तन, प्रवचन आदि कार्यक्रम हर सत्संग में हों। बारी-बारी यह सत्संग सदस्यों के घरों में होते रहें। यहाँ आयोजन कम से कम खर्च में किये जाएं जिससे किसी को अर्थ संकोच के कारण अपने यहाँ सत्संग कराने में कठिनाई न हो।
6- इस बार चैत्र की नवरात्रि में सामूहिक आयोजन सर्वत्र किये जाएं। इस पुनीत पर्व पर ता. 21 से 26 मार्च तक 6 दिन मिलजुल कर सामूहिक जप अनुष्ठान, हवन, मंत्र लेखन, कीर्तन, चालीसा पाठ, प्रवचन, सत्संग आदि के आयोजन रखे जाएं। साहित्य वितरण का ब्रह्मभोजन हर उत्सव के साथ अवश्य किया जाय। जो व्यक्तिगत अनुष्ठान की अपनी साधना की सूचना हमें दे देंगे उनकी साधना में रही त्रुटियों का दोष परिमार्जन यहाँ होता रहेगा।
7- गायत्री यज्ञों और अनुष्ठानों की पूर्णाहुति के साथ-साथ कन्या भोजन कराने की परम्परा पुनः जारी कीजिए। आज ब्रह्म कर्म में परायण लोक सेवा एवं अपरिग्रही ब्राह्मण ढूंढ़े नहीं मिलते, उस कमी की बहुत कुछ पूर्ति कन्या भोजन से कराई जा सकती है। मातृ जाति के महान गौरव की प्रतिष्ठा कन्या भोज में सन्निहित है। यों बालकों में भगवान का दिव्य सत तत्व अधिक मात्रा में रहता है पर लड़के की अपेक्षा लड़कियों में तो यह दस गुना अधिक माना गया है। शास्त्रकारों ने आध्यात्मिक दृष्टि से पुत्र जन्म की अपेक्षा कन्या का जन्म दस गुणा अधिक सौभाग्यवान बताया है। कन्या भोज से ब्रह्म भोज की बहुत कुछ पूर्ति हो जाती है।
8- गर्मियों में अध्यापकों की, किसानों की छुट्टियां होती हैं। परिवार के सभी अध्यापकों से प्रार्थना है कि वे यह समय अपने क्षेत्र में धर्म-फेरी लगाने एवं सामूहिक यज्ञानुष्ठान करने में लगावें। दूसरे अन्य लोगों को जब भी जो समय मिले वह समय एक संगठित पार्टी बनाकर भ्रमण करें। यों अपने रोज के समय में से तो कुछ समय इस कार्य के लिए देना ही चाहिए पर कुछ दिन तो पूर के पूरे केवल इसी कार्य के लिए लगाने का संकल्प करना चाहिए।
9- पूर्णाहुति पर जब आप मथुरा आवें तब अपने क्षेत्र के उन लोगों से जो मथुरा नहीं आ सकते उनसे मंत्र लेखन की श्रद्धाँजलियाँ साथ लावें। अभी यह प्रयत्न करें कि कम से कम 1000 मंत्रों की कापियाँ अधिक से अधिक लिखाई जाय। उदार सज्जन अपने आप से भी कापियाँ बाँट सकते हैं। प्रयत्न यह किया जाय कि 1-1 हजार मंत्रों की 24 कापियाँ मथुरा आने वाले होता, यजमान इस क्षेत्र से संग्रह कराके लावें। एक व्यक्ति बहुत संख्या में लिखे इसकी अपेक्षा अनेक व्यक्तियों से लिखने का अधिक महत्व माना जायगा।
10- गर्मियों में किसानों का अवकाश रहता है इसलिए उन दिनों बड़े सामूहिक यज्ञों का आयोजन आसानी से किया जा सकता है। पर उनमें हमें बुलाने का आग्रह न किया जाय। क्योंकि जो विशाल योजनाएं पूरी करने को पड़ी हैं उन्हें पूरा करने में बाहर जाने से भारी अड़चन पैदा होती है। मथुरा से प्रचारक लोग, हवन कराने वाले ब्रह्मचारी आदि भेजने की व्यवस्था की जा सकती है। शुद्ध शास्त्रोक्त विधि से बनी हुई बाजार की अपेक्षा कहीं सस्ती हवन सामग्री भी तपोभूमि से मिल सकती है।
11- यों हिन्दू घरों में न जाने किस-किस अगड़म-बगड़म में मसखरे और बहरूपियों को खिलाने में ढेरों पैसा खर्च होता है और उसे धर्म या दान मान कर झूठा मन संतोष कर लिया जाता है। अब यह आदत भी पैदा करनी है कि दान के लिए कुछ भी खर्च करने के साथ-साथ हम यह सोंचे कि यह दान किस कार्य के लिए किया जा रहा है किस व्यक्ति को दिया जा रहा है। वह कार्य या व्यक्ति लोकहित की दृष्टि में उपयोगी है या नहीं? यदि दान सत्परिणाम उत्पन्न करने वाले कार्य के लिए लोकहित के सत्कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति के गुजारे के लिए दिया गया है तो ही वह वास्तविक दान है। अन्यथा इन कसौटियों पर खरा न उतरने वाला दान वस्तुतः अपव्यय है। इस मान्यता के साथ-साथ परिवार का हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ दान करते रहने की एक प्रवृत्ति बनावे।
12- उपवासों से बचाया हुआ अन्न जमा करके आचार्य जी एवं तपोभूमि को अपने घर का एक सदस्य मानकर उनको एक टुकड़ा रोटी का या एक-दो पैसा रोज देने के ख्याल से कुछ न कुछ नित्य देने की आदत डालनी चाहिए। यह संग्रह न तो मथुरा भेजना है और न किसी व्यक्ति या संस्था को देना है इस पैसे का साहित्य मंगाकर अपने घर में “गायत्री ज्ञान मन्दिर” स्थापित करना चाहिए। उस साहित्य को स्वयं पढ़कर दूसरों को पढ़ाकर ब्रह्म विद्यालय चलाना चाहिए। वितरण के लिए प्रचार साहित्य मंगाना चाहिए। अन्न दान की अपेक्षा ब्रह्म दान का महत्व सौ गुना अधिक है। मानव जाति की भावनाएं विचार भूमिकाएं बदलने का जो महान कार्य करना है उसका मूल आधार यह ब्रह्मदान ही होगा। प्रत्येक सदस्य के घर में उसी दान धर्म के आधार पर नियमित रूप से साहित्य पहुँचता रहेगा। घर में एक अच्छे पुस्तकालय की स्थापना हो उससे घर के पड़ोस के सभी लोग उठावेंगे तथा समय-समय पर जो वितरण साहित्य आया करेगा उससे अगणित लोगों को दिमाग सुधरेंगे। ज्ञान दान की यह नियमित पुनीत प्रक्रिया चलाई ही जानी चाहिए।
13- गायत्री ज्ञान मन्दिर की स्थापना आपके घर में होनी ही चाहिए। गायत्री और यज्ञ का तत्व ज्ञान बताने वाली चार-चार आना मूल्य की 52 पुस्तकें अब छपकर तैयार हैं उनका मूल्य 13 है। अपनी पूजा के स्थान पर यह साहित्य भी स्थापित किया जाय और लोगों के पास जाकर उनमें रुचि उत्पन्न करके यह साहित्य पढ़ाया जाए। ज्ञान मन्दिर के भीतर टाँगने के लिए पुस्तक साइज के 14 आदर्श वाक्य भी गायत्री छपाई के साथ कार्ड बोर्ड पर छापे गये हैं। इनका मूल्य 1 है। गायत्री ज्ञान मन्दिरों की स्थापना इस प्रकार कुल 14 में होती है। यह केवल पूजा मात्र होने वाले देवताओं से अधिक महत्व की है। आप अपने घर में ज्ञान मन्दिर अवश्य स्थापित करें। एक साथ न बन पड़े तो आधा-आधा साहित्य दो बार में मंगा ले। सम्भव हो तो चैत्र की नवरात्रि के पुनीत पर्व पर अपने घर में गायत्री ज्ञान मन्दिर की स्थापना कर लें।
14- इस वर्ष के अपने निज के अत्यन्त आवश्यक कार्यों में ही ब्रह्म अनुष्ठान की पूर्णाहुति को भी आवश्यक कार्य समझें और उसके सम्बन्ध में निरन्तर ध्यान रखें जो कार्य सामने हैं उनमें आप क्या सहयोग कर सकते हैं क्या भार वहन कर सकते हैं यह विचार करें। बन पड़े तो करने लग जावें। यह प्रतीक्षा न करें कि मथुरा से अमुक कार्य करने के लिए कोई खास व्यक्तिगत अनुरोध नहीं आया है तो हम क्यों झंझट में पड़ें। यह पंक्तियाँ ही प्रत्येक परिजन के लिए व्यक्तिगत अनुरोध है।
15- पूर्णाहुति से कुछ पूर्व मथुरा आने और यहाँ की विशाल व्यवस्था में हाथ बंटाने के लिए समय निकालने की अभी से योजना बनाते रहें॥
16- अखण्ड ज्योति इस संस्था की वाणी है। तपोभूमि की कोई भी योजना सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी आवाज अधिक लोगों तक पहुँचे। अधिक लोग उससे सम्बन्धित रहें। यह प्रक्रिया अखण्ड ज्योति की सदस्यता से ही सम्भव है। आप यह प्रयत्न करें कि आपके क्षेत्र में अखण्ड ज्योति के अधिक से अधिक ग्राहक बनें। जिनके यहाँ अखण्ड ज्योति आती है उसे पढ़ने का लाभ अधिकाधिक लोग उठावें। स्मरण रहे अखण्ड ज्योति के प्रसार के बिना- गायत्री प्रचार से लेकर साँस्कृतिक पुनरुत्थान तक कोई भी अपना कार्यक्रम पूरा नहीं हो सकता। इस जड़ को सींचने का ध्यान रहे अन्यथा जड़ सूखने पर अपने कार्यक्रमों में पत्र पल्लव फल प्रभृति के कोई भी सत्परिणाम उपलब्ध न हो सकेंगे।
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अहमदाबाद में ता. 1, 2, 3, 4 फरवरी को पारसी अग्यारी के पीछे मैदान में 24 कुण्डों का विशाल गायत्री महायज्ञ बड़े उत्साह के वातावरण में सम्पन्न हुआ। अहमदाबाद की जनता में इस यज्ञ के लिए अपूर्व उत्साह था। श्रीस्वामी ब्रह्म स्वरूपजी महाराज तथा पं. ज्वालाप्रसाद जी शास्त्री ने यज्ञ कार्य शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ सम्पन्न कराया। मथुरा से श्री आचार्य जी पधारे थे उनका विशाल जुलूस निकाला। गुजरात प्रान्त की शाखाओं का सम्मेलन भी हुआ।
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