Magazine - Year 1958 - Version 2
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Language: HINDI
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गायत्री उपासना के अनुभव
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मुकदमे में सहायता मिली
श्री अवध बिहारी, सरैयाँ बगडौरा (बलिया) से लिखते हैं- कुछ महीने हुए मैं अपने एक मित्र के साथ उनके पक्ष की बातें सही और शुद्ध रूप में समझाने के लिए निकट के ही एक पुलिस थान में गया था। वहाँ का अधिकारी जो संभवतः किसी स्वार्थवश दूसरे पक्ष के अनुकूल था हमारे साथ अनुचित व्यवहार करने को तत्पर हो गया और उसने हमारे पाँच व्यक्तियों को हिरासत में ले लिया। मैं थाने की कोठरी में बन्द होते ही पालथी मार कर बैठ गया और गायत्री माता का जप करने लगा। बाहर पुलिस कर्मचारी रिपोर्ट लिखने बैठा और चौकीदार से मुकदमे संबंधी नाम पूछने लगा। गायत्री माता के प्रभाव से चौकीदार ने अन्य नामों के साथ एक ऐसे व्यक्ति का नाम भी रिपोर्ट में लिखा दिया जिसे मरे हुए 16-18 वर्ष बीत चुके थे। यह भेद तब खुला जब पुलिस के सिपाही उस व्यक्ति के नाम का सम्मन लेकर गये और वापस लौटकर सब हाल बतलाया। परिणाम यह हुआ कि हम लोगों की हानि कर सकने के बजाय पुलिस कर्मचारी को ही लेने के देने पड़ गये। इस प्रकार अकल्पित ढंग से सहायता मिलती देखकर हम माता को धन्यवाद देने लगे।
चोरी गया माल वापस आ गया
श्री बलराम पारधी आनन्द बिलास मोहल्ला धन्तोली, नागपुर से लिखते हैं- इसी जनवरी की 13 तारीख को रात के समय हमारे कारखाने में कीमती औजारों की चोरी हो गई। दूसरे दिन दोपहर को पता लगने पर हमने पुलिस में रिपोर्ट की और दो जगह तलाशी भी ली गई पर माल का कुछ पता नहीं लगा। मंगलमय प्रभु की लीला अपरंपार है। आज ता. 16 जनवरी को हमने गायत्री परिवार के हवन में भाग लिया और जैसे ही वहाँ से घर वापस आये कि बच्चों ने बतलाया कि घर के पीछे एक कपड़े में लपेटे औजार दिखलाई पड़ रहे हैं। पिछले 6-7 दिन में हमने चारों ओर घूमकर खूब तलाश किया था पर तब कहीं कुछ दिखलाई नहीं दिया। माता की इस कृपा के लिए हमने 24 हजार का अनुष्ठान करने का निश्चय किया है।
निराशा में आशा
श्री जानकी प्रसाद गंगबार, अमृताखास (पीलीभती) से लिखते हैं- मैंने ग्राम सेवक का फार्म भरा था और उस सम्बन्ध में ‘इन्टरव्यू’ के लिए बुलाया गया। मुझे अपना सफल होना नितान्त असम्भव लगता था तो भी माता का भरोसा करके जितनी देर वहाँ रहा गायत्री का मानसिक जप करता रहा। माता की असीम कृपा से मेरा नाम उत्तीर्ण उम्मीदवारों की सूची में आ गया।
सूखा रोग से बच्चे की रक्षा।
श्री शंकरसिंह कुशवाहा, गाँव बाढ़ (मुरैना ग्वालियर) लिखते हैं मेरे पुत्र मातादीन को सूखा रोग हो गया था। उसका बहुत सा इलाज कराया पर कोई लाभ नहीं हुआ। एक दिन पं. शंभूदयाल जी ने मुझसे कहा कि उनका संध्या करने के जल से गायत्री मंत्र पढ़ कर मार्जन करो। मैंने ऐसा ही किया और अब एक महीना के प्रयोग से उसका रोग दूर होकर स्वास्थ्य बहुत सुधर गया है और वह इधर-उधर दौड़ता फिरता है।
चोर भाग गये।
श्री महातम तिवारी ग्राम पकड़ी (बलिया) से लिखते हैं मेरे यहाँ चोरों का बड़ा समूह आधी रात के समय आया। वह कुछ हानि करने ही वाला था कि अपने एक आदमी के चिल्लाने की आवाज आई। मैंने लाठी उठाकर उनको ललकारा जिस पर वे सब भाग गये। वे मुझसे जबर्दस्त थे और मैं किसी हालत में उन सबका मुकाबला नहीं कर सकता था पर गायत्री माता के प्रभाव से हमारी रक्षा हो गई।
तीन महान संकटों से रक्षा हुई।
श्री नायव लाला शुक्ल, ग्राम करनपुर (जिला खौरी) से लिखते हैं- पिछली गर्मियों के मौसम में मैं लखनऊ में था। वहाँ पण्डितों ने मुझे बतलाया कि तुम्हारे कई ग्रह कोपित हैं, आश्विन भर में जो न हो जाय थोड़ा है। इस पर मैं एक माला के बजाय तीन माला जप करने लगा। कुछ ही समय बाद खबर आई कि बड़ी बहू साँघातिक बीमारी के कारण अस्पताल में भेजी गई है और तीसरा पुत्र 30-40 हाथ ऊंचे पेड़ से गिर गया है। मैं भाग कर घर आया। मालूम हुआ कि बहू की दशा सुधर गई है और बच्चे को भी तीन जगह साधारण चोट लगी है। मैं कुछ दिन घर ठहर कर वापस जाने वाला था कि मेरी स्त्री को मस्तक में काले सर्प ने काट खाया। प्रभु की दया से उपचार होने पर वह भी बच गई। लखनऊ के ज्योतिषी पं. प्रताप नारायण ने जो मुझसे अपरिचित थे, मुझे बतलाया कि तुम्हारे गायत्री जप के प्रभाव से ही इन तीनों की जीवन रक्षा हो गई। तब से मेरी श्रद्धा माता में बहुत बढ़ गई है।
प्रेत का भय दूर हुआ।
श्री सिद्धेश्वर लाला, ग्राम हाथीबाड़ी (उड़ीसा) से लिखते हैं मुझे कुछ समय के लिए सपरिवार एक ऐसे मकान में रहना पड़ा जो प्रेत से आक्रान्त जान पड़ता था। कुछ प्रत्यक्ष तो दिखलाई नहीं दिया पर वहाँ लड़को को भय लगना, चौंकना आदि घटनाएं वहाँ अधिक होती थी। पर गायत्री जप करने के बाद नई घटनाओं में बहुत कमी हो गई। वास्तव में माता की शक्ति के आगे सभी नतमस्तक हो जाते हैं।
नौकरी में तरक्की हुई।
श्री चीनाराम पोल्दार, बिलासपुर (म. प्र.) से लिखते हैं हमारे एक सक्रिय सदस्य श्री आनन्द मोहन वर्मा अत्यन्त निष्ठापूर्वक अपनी साधना करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप शीघ्र ही इनकी नौकरी में तरक्की हो गई और सहकारी कर्मचारी भी विशेष सम्मान करने लगे। माता की कृपा से इनकी बतलाई बातें प्रायः ठीक ही निकल जाती हैं इससे दफ्तर के कर्मचारी इनको बाबाजी कहने लग गये हैं।
गायत्री माता की कृपा से परीक्षोत्तीर्ण हुआ।
ईश्वर शरण पाण्डेय, ग्राम बालपुर (बिलासपुर) से लिखते हैं कि इसी वर्ष मैंने नागपुर विश्व विद्यालय की एक-एक परीक्षा (संस्कृत प्रथम भाग) प्राइवेट देने का विचार किया था। प्रार्थना पत्र मैंने यथा समय भेज दिया, पर अनेक बार स्मृति पत्र भेजने पर भी विश्वविद्यालय की स्वीकृति बहुत देर से मिली। दूसरी बात यह भी थी कि मेरा स्वास्थ्य जुलाई से ही ऐसा बिगड़ा कि पढ़ाई में मन ही नहीं लगता था, और पूरी पुस्तकें भी मेरे पास न थी। परीक्षा से 10 दिन पहले नागपुर जा पहुँचा। इस आशा से कि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय से उन पुस्तकों को प्राप्त कर देख जाऊंगा जो मेरे पास नहीं थी यह आशा पूर्ण हुई और मैंने यथा समय परीक्षा दी। आश्चर्य है कि जिन प्रश्न पत्रों की पुस्तकें मेरे पास थी वे तो कुछ बिगड़ गये और जिनकी पुस्तकें नहीं थी वे बहुत अच्छे बन गये। इस प्रकार अनेक बाधाओं के होते हुए भी गायत्री माता की कृपा से मैं परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया।
शहद की मक्खियों से रक्षा हुई।
श्री सरदार मल गौतम (कोयला कोटा) से लिखते हैं कि गत वर्ष दिवाली के अवसर पर कई स्थानीय गायत्री उपासक देवझरी के स्थान पर ऊपर की तरफ वेदी बनाकर हवन कर रहे थे। कुछ देर पश्चात् शहद की मक्खियाँ काफी तादाद में वहाँ आ गई। वहाँ कुछ व्यक्ति स्नान भी कर रह थे उन सबको मक्खियों ने काफी परेशान किया। उनके काटने से उन व्यक्तियों के शरीर खूब सूज गये। उसी स्थान पर हम सब हवन कर रहे थे, पर मक्खियों ने किसी को नहीं काटा। वैसे सैकड़ों मक्खियाँ हमारे सरों पर उड़ रही थी और बालों पर बैठ भी जाती थी। माता की ऐसी ही विलक्षण शक्ति है।
इच्छानुसार तबादला हो गया।
श्री बालकुन्द तिवारी (जबलपुर) से लिखते हैं- कि रेलवे के प्रशिक्षण से उपरान्त मेरी नियुक्ति हैदराबाद (दक्षिण) में हो गई। वहाँ भाषा की भिन्नता के कारण मैं किसी से बातचीत न कर सकता था इससे फुर्सत के समय में बराबर गायत्री उपासना ही करता रहता और कभी-कभी माता से अपने स्थानान्तर की प्रार्थना भी कर बैठता था। माता ने आदेश दिया कि दो मास में हो जायेगा। भरोसा न होते हुए मैंने अर्जी भेज दी और वास्तव में डेढ़ मास बाद ही मेरा तबादला जबलपुर क्षेत्र में हो गया।
मेरी परिस्थिति सुधर गई
श्री वीरेन्द्र प्रसाद नायक (प्रो. रोसडाघाट दरभंगा) लिखते हैं- कि जब से मैं गायत्री जप करने लगा हूँ मेरी परिस्थिति बराबर सुधरती जाती है। पहले बहुत प्रयत्न करने पर भी नौकरी नहीं मिलती थी जप शुरू करने के थोड़े समय बाद ही मेरा काम लग गया। इसी प्रकार पहले मैं बराबर अस्वस्थ रहा करता था, पर अब तन्दुरुस्ती भी बहुत कुछ सुधर गई है। ध्यान में भी मुझे शिवजी, विष्णु, गायत्री माता, सूर्य भगवान आदि किसी न किसी देवता के दर्शन सदैव प्राप्त हुआ करते हैं।
बाइसिकल पर से बचा
श्री परमात्मा प्रसाद शुक्ल, बसौदी (जिला-बस्ती) से लिखते हैं- ता. 14-7-57 को मैं खलीलाब से बाइसिकल पर आ रहा था और रास्ते में मस्त होकर गायत्री चालीस गा रहा था। ज्यों ही मैं अपने घर पहुँच कर बाइसिकल से उतरा कि अगला पहिया निकल कर दूर चला गया। मेरी रक्षा केवल माता की दया से ही हुई, अन्यथा जिस तेजी से मैं। बाइसिकल चला रहा था। उसमें अगर पहिया निकल जाता तो मेरी हड्डियाँ भी चूर-चूर हो जातीं।
खेत का रुपया प्राप्त हुआ
श्री. स्नेहराम शर्मा (रायपुर) से लिखते हैं कि- हमारी खानदानी खेती की जमीन कुछ रिश्तेदारों ने दबा ली थी और झगड़ा करने को तैयार थे। निराश होकर हमने गायत्री माता की शरण ली। तब फिर पिताजी वहाँ गये तो रिश्तेदारों ने खेत का दाम एक हजार रु. दे दिया। मेरी माता जी को हृदय का रोग हो गया था और उनका जी सदैव घबड़ाया करता था। गायत्री चालीसा का अनुष्ठान करने से बीमारी दूर हो गई।