Magazine - Year 1961 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पुरुषार्थ से क्या नहीं हो सकता?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
गिरीन्करोति मृत्पिडान,
श्रेष्ठ आत्माओं का संकल्प मिट्टी के ढेले को पहाड़ बना सकता है। समुद्र का पुल बाँध सकता है। आकाश को भुजाओं से तर सकता है। तात्पर्य कोई कार्य ऐसा नहीं जो संकल्प शक्ति के आधार पर पूर्ण न हो सके।
सोत्साह त्यास्ति लोकेपुन क्रिंचिदपि दुर्लभक्
-बाल्मीकि0 किष्क0 1122
उत्साही पुरुषों के लिये इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
वछि समुद्रवति निर्मथनेन काष्ठा
काष्ठ को रगड़ते रहने से अग्नि पैदा हो जाती है, भूमि को खोदते रहने से जल निकल आता है, चलते रहने में दूर यात्रा पूर्ण होती है, कार्य में संलग्न मनुष्य क्या नहीं कर लेता?
यो समर्थ प्रार्थयते तदर्थ चेहते क्रमात्
-योगवाशिष्ठ
जिस वस्तु की इच्छा की जाय और तदर्थ प्रयत्न किया जाय तो उसकी प्राप्ति अवश्य ही होती है यदि प्रयत्न को बीच में ही छोड़ न दे तो।
प्राध्यापदं न व्यथते कदाचि-दुधोगमन्विच्छति चा प्रभातः।
जो आपत्ति पड़ने पर भी अधीर नहीं होता वरन् विवेक और उद्योग का सहारा लेकर उसे सहन करते हुये पार होता है। ऐसे व्यक्ति के विघ्नों को परास्त हुआ ही जानो।
साहसे खलु श्रीः वसति।
-चाणक्य सूत्र 2150
निश्चय ही साहस में लक्ष्मी का निवास है।
यथा वशान्ति देवा स्तथेदसत्।
-ऋग्वेद 8/28/4
श्रेष्ठ पुरुष जैसा चाहते हैं वैसा होता है।
आरभे तैव कर्माणि श्रान्तः श्रान्तः पुनः पुनः,
-मनु 9130
बार-बार थक जाने पर भी बार-बार प्रबल करे। कार्य में लगे रहने पर अन्त में विजय श्री मिलती ही है।
प्राप्तये किं यशः शुभ्रमनंगी कृत्य साहसम्।
साहस को अपनाये बिना शुभ यश किसको मिला है?
दधति धु्रवं क्रमश एव न तु,
तेजस्वी लोग भी धीरे-धीरे ही उन्नति कर पाते है। सहसा नहीं”।
मनस्वी कार्यार्थी गणयसि दुःखं न च सुखम्।
-भर्तृहरि
मनस्वी कर्तव्य परायण लोग सुख दुःख की परवाह नहीं करते।
आशया हि किमिव न क्रियते।
आशा के सहारे क्या नहीं किया जा सकता?
आलस्य कि मनुष्याणाँ शरीरस्थो महान् रिपुः।
-भृतंहरि
मनुष्य शरीर में आलस्य ही महान् शत्रु है। उद्यम के समान कोई मित्र नहीं। उद्यमी दुखी नहीं रहता।
आलस्यं यदि न भवेष्जगत्यनर्थः
-योगवाशिष्ठ 2/5/30
इस संसार में यदि आलस्य रूपी अनर्थ न होता तो कौन विज्ञान और धनी न हो जाता? आलस्य के कारण ही वह सारी पृथ्वी दरिद्री और नर पशुओं से भरी पड़ी है।
न ऋते भं्रान्तस्य सख्याय देवाः
-ऋग्वेद 4/33/11
परिश्रमी को छोड़कर और किसी की देवता सहायता नहीं करते।
उत्साह सम्पन्नमदौर्ध सूत्र क्रियाविधिज्ञं व्यसनेध्वसक्तम। शूब्कृतज्ञ दृढसौहदं च लक्ष्मीः स्वयं वाच्छति वास हेतोः।
उत्साही, निरालस्य, व्यवहार कुशल, मिर्त्यसनी, साहसी, कृतज्ञ और दृढ़ मित्रता करने वाले व्यक्ति पर लक्ष्मी स्वयं कृपा करती है।
सत्जनानां हि शैलीयं सक्रमारम्भशालिता
बुद्धिमानों की नीति अपने कार्यक्रमों का धीरे-धीरे क्रमिक विकास करने की रहती है।
अप्रिया न भविष्यन्ति प्रियोमेन भविष्यति।
अहं च न भविष्यमि सर्वच न भविष्यति-बोधिचर्यायतारः
अप्रिय लगने वाले भी न रहेंगे, प्रिय लगने वाले भी कुछ दिन बाद न रहेंगे। मैं भी कहाँ रहूँगा? यह सब जो दीखता है कुछ भी न रहेगा?
तुगत्वमितरानाद्रौनेदं सिन्धावगाघता।
पर्वतों में ऊँचाई होती है गहराई नहीं, समुद्र में गहराई है ऊँचाई नहीं पर मनस्वी लोगों में यह दोनों ही बातें होती हैं।
आरम्भतेऽल्पमेवाज्ञाः कामं व्यप्राभवन्ति च।
क्षुद्र लोग काम तो करते हैं छोटा पर घबराते हैं बहुत। किन्तु महान् लोग महान् कार्य अपने कंधे पर लेकर भी अधीर नहीं होते।
दैवमाश्वासना मात्रं दुःखेपेलब बुद्धिपु
-योगवाशिष्ठ 2/8/15
भाग्य की कल्पना कम बुद्धि वालों को दुःख के समय सान्त्वना देने के लिये है। सान्त्वना के अतिरिक्त वस्तुतः भाग्य कोई वस्तु नहीं है।
मूढैः प्रकल्पितं दैवं तत्परास्ते क्षयं गताः।
-योगवाशिष्ठ 2/8/16
मूर्ख लोग भाग्य की कल्पना करके उसी के भरोसे बैठे रहते है और नष्ट हो जाते हैं। बुद्धिमान लोग पुरुषार्थ करके उन्नति करते हैं और अच्छी स्थिति को प्राप्त करते है।
पुरुषार्थ फल प्राप्ति र्देशकाल वशादिह।
-योगवाशिष्ठ 2/7/21
किये हुये पुरुषार्थ का देश काल परिस्थिति के अनुसार जो देर सवेर में फल प्राप्त होता है उसी का नाम भाग्य है।
यथा यथा प्रयत्नः स्याद्ववेदाषु फलं तथा।
-योगवाशिष्ठ 216
जैसा प्रयत्न किया जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है। पुरुषार्थ ही सत्य है, उसी को भाग्य भी कहते हैं।
ये शूरा ये च विक्रान्ता ये प्राज्ञा ये च पंडिताः।
तैस्तैः क्रिमिवा लोकेऽस्मिन्वद दैर्व प्रतीच्यते।
-योगवाशिष्ठ
जो शूर हैं, उन्नतिशील हैं, ज्ञानी हैं, पंडित हैं उनमें से कौन भाग्य भरोसे बैठा रहता है, जरा बताओ तो सही?
सर्वाच निरतिः भवतु या श्रमरति
-अशोक
श्रम से प्रेम करना, मनोरंजनों से सबसे श्रेष्ठ ह