Magazine - Year 1961 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है! भगवान कृष्ण के समय में चरणाद्रि चुनाव में पोंएड्रक नाम राजा शासन करता था। उसके दरबारी बड़े खुशामदी थे। वे कहते थे-आप का साक्षात भगवान वासुदेव हैं। आपने भूमार उतारने को अवतार लिया है। हम सब का धन्य भाग है जो आपका नित्य दर्शन करते हैं।” इस प्रकार की चिकनी चुपड़ी बातें कहकर वे उस मूर्ख बनाया करते थे। उन लोगों की बातें सुनते-सुनते वह वास्तव में अपने का भगवान का अवतार समझने लगा। उसने अपने दो नकली हाथ भी लगवा लिये और वह चारों हाथों में भगवान विष्णु के तरह शंख, चक्र, गदा और पद्य धारण किये रहता था। धीरे-धीरे उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि उसने अपना एक दूत द्वारिकापुरी को भेजा और श्रीकृष्ण से कहलवाया कि “तुम भी अपने को वासुदेव कहते हो और विष्णु का असली अवतार तो मैं ही हूँ। अब तुम इन सब चिह्नों को त्याग दो अन्यथा मैं युद्ध में तुम्हारा नाश कर डालूँगा।” पौण्ड्रके के संदेश को सुनकर राज्य-सभा के सदस्य हँसने लगे और कृष्ण भगवान ने दूत थे कहा कि “पौण्ड्रक से कहना कि मैं चरणाद्रि आता है और वहाँ आकर युद्ध में इन चिह्नों को त्याग दूँगा।” जब श्रीकृष्ण पौण्ड्रक की राजधानी के पास अकेले ही रथ पर चढ़ कर पहुँचे तो वह एक अक्षौहिणी सेना लेकर उनसे युद्ध करने निकला। पर उस समस्त सेना को भगवान ने थोड़ी सी देर में ही अपने दैवी अस्त्रों द्वारा नष्ट कर दिया। तब उन्होंने पोण्ड्रक से कहा कि “तुमने जिन चिह्नों का छोड़ने को कहलवाया था अब उनका मैं छोड़ रहा हूँ, तुम सँभाल लेना।” यह कहकर उन्होंने गदा फेंकी जिसके प्रकार से पौण्ड्रक रथ चूर-चूर हो गया। वह कूद कर पृथ्वी पर खड़ा हुआ तो सुदर्शन चक्र ने उसका मस्तक उड़ दिया। उस समय खुशामद करने वालों का पता भी नहीं लगा कि वे कहाँ गये।