Magazine - Year 1963 - Version 2
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Language: HINDI
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पथिक को उद्बोधन (kavita)
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राह कठिन है पथिक कहीं घबरा मत जाना।
लोगे हैं तूफान कहीं पथ भूल न जाना॥
चलना है कण्टकाकीर्ण अति दुर्गम मथ पर।
लड़ना है बाधाओं से तुझको पग-पग पर॥
जाना है उस ठौर जहाँ मानवता रोती।
द्रुपद-सुता सी जहाँ सुसंस्कृति लज्जा खोती॥
लक्ष्य तुम्हारा धरती पर सज्जनता लाना।
राह कठिन है पथिक कहीं घबरा मत जाना॥
शक्ति! अरे तू शक्ति पुंज है अजर अमर है।
तेरे सम्मुख काल प्रबल कम्पित थर-थर है॥
आदि शक्ति का पुत्र कभी दुर्बल हो कैसे?
आत्म ज्ञान का धनी भला निर्धन हो कैसे?
ज्योति-पुंज तू तम का है अस्तित्व मिटाना।
राह कठिन है पथिक कहीं घबरा मत जाना॥
जीवन की निश्छलता है पाथेय तुम्हारा।
अन्तर की उज्ज्वलता सच्चा ध्येय तुम्हारा॥
दया क्षमा करुणा ममता शम दम ये सारे।
भव्य भाव विश्वास अटल, हैं शस्त्र तुम्हारे॥
धर्म एक बस ज्ञान मार्ग पर बढ़ते जाना।
राह कठिन है पथिक कहीं घबरा मत जाना॥
दूर नहीं मंजिल बस थोड़े कदम शेष है।
वही लक्ष्य पाते जो बढ़ते निर्निमेष हैं॥
पुरुष वही है जो पथ की पीड़ायें सहता।
हार मानता नहीं, निरन्तर चलता रहता॥
प्रतिबन्धों में कभी न अपना शीश झुकाना।
राह कठिन है पथिक कहीं घबरा मत जाना॥
-मुकुल कुकर्जी
*समाप्त*