Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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दूध पियें-सौ से भी अधिक वर्ष जियें
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“आज की दुनिया का अच्छा से अच्छा स्वादयुक्त भोजन मैंने किया। सर्वोत्तम भोग भोगे। उस समय मैंने किसी भी प्राकृतिक नियम का विचार नहीं किया। उसी का प्रतिफल है कि मेरा पेट अपनी जीवनी शक्ति खो बैठा, निष्क्रिय, निकम्मा और बेकार हो गया। मुझे ऐसा लगता है कि पेट में पत्थर भरे पड़े हैं। एक छोटी सी चपाती भी हजम करना मेरे लिये पहाड़ उठाने के बराबर कठिन है यदि कोई मेरा पेट ठीक कर दे तो उसे चिकित्सा के अतिरिक्त 10 लाख डालर का पुरस्कार दूँगा।
यह था विज्ञापन अमरीका के प्रसिद्ध करोड़पति “जान राक फेलकर” का। भोग-विलास के असीम अनियन्त्रित साधन मनुष्य की जो भी दुर्गति कर सकते हैं राक फेलर उन सबसे ग्रस्त थे उसी का परिणाम था कि वे चाय और सिगरेट के अतिरिक्त जीवन धारणा रखने के लिये मात्र कुछ दवायें और इंजेक्शन ही ले सकते थे। उनका विज्ञापन पढ़कर डाक्टरों की कतारें लग गई। जितना झटका जा सकता था उन्होंने पैसा झटका पर क्या तो राक फेलर क्या डाक्टर उन बेचारों को कौन बताता कि रोग-शोक अपनी भूल अपने पाप के परिणाम होते हैं। उनसे सुरक्षा का एक ही उपाय होता है पश्चाताप और प्राकृतिक जीवन की ओर वापसी। शार्टकट रास्ते से चलकर कोई प्राकृतिक दण्ड से बचना चाहे तो यह नितान्त असम्भव है।
अन्त में एक प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह पर राक फेलर ने दुग्ध चिकित्सा कराई और तब वह फिर से एक नई जीवनी शक्ति प्राप्त कर सकने में सफल हुये।
दूध वास्तव में ऐसा ही पेय है जो जर्जर शरीर को भी नई जीवनी शक्ति प्रदान कर सकता है । चरक का कथन है-”पयः पथ्यं यथामृतम्” अर्थात्-दूध तो अमृत के समान पथ्य है। दूध से आयु, बल, तेज,नेत्र ज्योति सौंदर्य, गालों की ओठों की लालिमा, हृदय और फेफड़ों में शक्ति की वृद्धि ही नहीं होती उसके नियमित सेवन और कल्प से रक्तचाप, कब्ज, एनीमिया,फोड़े फुन्सी, स्त्रियों के रोग, अनिद्रा, अग्नि मन्दता, पथरी, गठिया, दमा, श्वेत प्रदर, नपुँसकता, डायबिटीज, अतिसार, बवासीर आदि अनेकों रोगों में अमृत-औषधि के समान लाभ होता है। दूध के दस गुणों का वर्णन करते हुये प्रसिद्ध भेषज चरक ने लिखा है-
स्वादु शीतं मृदु स्निग्ध बहलं श्लेक्ष्णी पच्छिलम् ।
गुरु मन्द प्रसन्नं च गव्य दश गुणं पयः ॥
अर्थात्-दूध में स्वादिष्ट ठण्डा, कोमल, चिकना, गाढ़ा, सौम्य सात्विक लसदार भरी वाह्य प्रभाव से देरी से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला-यह दश गुणा होते हैं। “धारोश्णा दूध की तो आयुर्वेद में भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है और उससे असाध्य रोग ठीक होने की बात विश्वासपूर्वक कही गई है। धारोश्णा दूध तुरन्त निकाले गये दूध को कहते हैं उसे ज्यों का त्यों छान कर पीना चाहिये।
डॉ0 श्रीमती एलाव्हीलर विलौक्स ने दूध को हृदय रोगों और कैंसर तक में लाभदायक माना है। डॉ0 फ्रेडरिक हाफमैन दूध को पूर्ण आहार और स्वास्थ्य का जनक कहा करते थे।
इन पौष्टिक और औशधीय गुणों का कारण वह तत्व हैं जो दूध में प्राकृतिक रूप से विद्यमान रहते हैं। प्रोटीन जो शरीर में माँस बनाते हैं, टूट फूट ठीक करते हैं, बल प्रदान करते हैं, केसिन, लैकोट-ग्लोव्यूमेन, एल्व्यूमिन, एमिनो एसिड स्टार्च आदि 101 रासायनिक तत्वों का सम्मिश्रण दूध में पाया जाता है। इसकी चर्बी सुपाच्य ओर तेज वर्धक होती है गाय के दूध में तो मल की मात्रा बिलकुल ही न्यून होती है। यदि एक माह तक लगातार गौ-दुग्ध का सेवन किया जाये तो मनुष्य उससे एक वर्ष के बराबर शक्ति अर्जित कर सकता है। नियमित रूप से दूध पीने वाले लोगों को कभी बीमारियाँ नहीं होतीं, कमजोरी नहीं सताती। यही कारण था कि प्राचीनकाल में हमारे बच्चों को युवावस्था तक अधिक खुराक दूध की ही मिलती थी। अन्न लोग काफी बड़ी आयु में खाना प्रारम्भ करते थे इससे उन्हें न केवल सौ वर्ष तक विविध भोगों का रसास्वाद करते हुये सशक्त और निरोग जीवन जीने का लाभ मिलता था वरन् लोग वृद्धावस्था तक तेजस्विता बनाये रखने में समर्थन होते थे। आज लोगों ने दूध छोड़कर अप्राकृतिक पेय पीने शुरू कर दिये हैं उनकी हानियाँ अनेक रोगों के रूप में स्पष्ट देखी जा सकती हैं आज का मनुष्य जितना सभ्य है उससे अधिक रोगी है उसका कारण बाल्यावस्था में पर्याप्त दूध का न मिलना भी शामिल है।
दूध में विटामिन की मात्रा पर्याप्त परिमाण में होती है। “ए” और “डी” विटामिन्स तो बहुतायत से पाये जाते हैं। खनिज लवण जो कि बच्चे के विकास के लिये बहुत आवश्यक होते हैं दूध में पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। सौ ग्राम दूध में फास्फोरस .93 ग्राम, लोहा .002 ग्राम, कैल्शियम 1.20 ग्राम पाया जाता है इसके अतिरिक्त वैनेडियन, क्रोमियन, टिन, अन्म्यूनियम, अभ्रक, सीसा आदि पाये जाते हैं। माँ के दूध में रजत की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है यह तत्व शरीर को बलवान बनाते हैं यही कारण है कि पहलवान लोग सबसे ज्यादा आहार दूध का ही करते हैं।
दूध यों भेड़, बकरियों, ऊँट और गधों का भी गुण-कारी होता है और कई तरह की बीमारियों में इनका उपयोग करते हैं पर ओज, गुण और सौंदर्यवर्धक तत्व अधिकाँश माँ और गाय के दूध में ही पाये जाते हैं। सम्भवतः भारतवर्ष दुनिया का पहला देश है जहाँ आदि काल से ही माताएं बच्चों को स्तन-पान कराती रही हैं आधुनिक सभ्यता के प्रभाव के कारण आजकल पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ इस परम्परा से मुख मोड़ रही हैं यह उचित नहीं है माँ के दूध में माँ के संस्कार भी घुले हुये होते हैं वह बच्चे के निर्माण में बड़े सहायक होते हैं अतएव इसे पवित्र कर्तव्य मानकर बच्चे को दूध हर माँ को पिलाना चाहिये।
आयुर्वेद में अनेक प्रकार के कल्प बताये गये हैं और जीर्ण शीर्ण शरीर के पुनर्निर्माण में उन सबका प्रयोग चिकित्सा शास्त्री करते रहे हैं। दीर्घकालीन अनुभवों के बाद दूध कल्प को सर्वाधिक लाभदायक पाया गया। उससे शरीर में बल वीर्य की वृद्धि और अंग-अंग में नया तेज फूट पड़ता है। पावन प्रणाली में एक नई शक्ति आती है। कब्ज यदि स्थायी रूप से कभी ठीक हो सकता है तो वह एक मात्र दुग्ध कल्प से ही सकता है और कोई उपाय इससे अच्छा नहीं। दुग्ध कल्प का सबसे अच्छा प्रभाव गुर्दों पर वीर्य और मूत्र रोगों पर होता है। उससे गुर्दे के विष धुल कर साफ हो जाते हैं। पेट की सफाई तथा आँखों में नई चमक त्वचा की मन निवारक शक्ति में वृद्धि होती है तथा अनेक रोग जड़ से दूर हो जाते हैं। दूध में आयु संवर्धन की आश्चर्यजनक शक्ति है।
दूध हमारी शक्ति और समर्थता का आधार है उसके प्राकृतिक गुणों को पहचान सकें तो हम न केवल शक्ति संचय कर सकते हैं वरन् खाद्य समस्या और स्वास्थ्य संरक्षण की आवश्यकता को भी पूरा कर सकते हैं।