Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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ब्रह्माण्डव्यापी चेतना में घनिष्ठता होने की सुखद सम्भावना
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इस विशाल ब्रह्माण्ड में अकेली पृथ्वी पर ही जीवधारी नहीं रहते, वरन् अन्यत्र ग्रह-नक्षत्रों पर भी जीवन विद्यमान् है, अब यह सम्भावना स्पष्टतः स्वीकार कर ली गई है। परिस्थितियों के अनुरूप जीवधारियों की आकृति और प्रकृति में अन्तर हो सकता है, पर उसका अस्तित्व अन्यत्र भी है अवश्य।
इस दिशा में खगोलवेत्ताओं की उपलब्धियाँ क्रमशः यही सिद्ध करती जा रही हैं कि अपने सौर-मण्डल में भी जीवन का अस्तित्व मौजूद है और उसके बाहर के अन्य तारकों में बुद्धिमान जीवधारियों की सत्ता मौजूद है। जैसे-जैसे अन्यत्र जीवन में अस्तित्व का पता चलता जा रहा है वैसे-वैसे यह चेष्टा भी तीव्र होती जा रही है कि इन जीवधारियों के साथ किस प्रकार सम्पर्क बनाया जाय और पारस्परिक सहयोग के आधार पर निखिल चेतना को किस प्रकार संबन्ध सूत्र में पिरोया जाय। धरती के निवासी मानवों के परस्पर सहयोग ने इस छोटे से ग्रह पिंड को कैसा सुन्दर सुविकसित बना डाला। यदि ब्रह्माण्डव्यापी जीवन सत्ता के बीच घनिष्ठता स्थापित हो सके, तो उस सहयोग का न जाने कितना बढ़ा-चढ़ा चमत्कारी परिणाम उत्पन्न हो सकता है। इस दिशा में चल रहे प्रयास को चेतना की उज्ज्वल संभावना के रूप में बड़े मनोयोगपूर्वक विज्ञ समाज द्वारा देखा जा रहा है।
फेनेमारिया (कैलीफोर्निया) विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मेथ्यू नार्टन का कथन है कि मानवी प्रयत्नों से शुक्र ग्रह में कुछ स्थानों पर वनस्पतियाँ उगाई जा सकती हैं और अन्य रेडियो प्रयत्नों द्वारा वहाँ संव्याप्त कार्बन डाइ ऑक्साइड के मूल तत्त्व कार्बन को अलग किया जा सकता है। शुक्र ग्रह सम्बन्धी अपने शोध-निबन्ध में नार्टन महोदय ने इन गैसों के विच्छेदीकरण और वनस्पति उत्पादन की प्रक्रिया को 'फोटो सिंथेसिस' की एक विशिष्ट प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया है और कहा है, कि इस आधार पर शुक्र में जल वर्षा आरम्भ हो सकती है तथा वहाँ का वातावरण कुछ दिन में ऐसा ही हो सकता है, जैसा कि जीवधारियों के रहने योग्य अपनी पृथ्वी का है।
पुल्कोवो रेडियो टेलिस्कोप द्वारा प्राप्त सूचनाएँ ऐसी नहीं है कि शुक्र ग्रह पर जीवन के अस्तित्व से सर्वथा इंकार किया जा सके और न डॉ. री का वह कथन अभी तक पूरी तरह रद्द किया गया है, जिसमें उन्होंने शुक्र में प्राणधारियों की बड़ी संख्या में होना सम्भावित बताया था।
मंगल ग्रह में कई हजार मील दूर रहकर अन्तरिक्ष यानों ने जो 80 हजार फोटो भेजे हैं, उन्हें देखने पर यह निश्चित नहीं किया जा सका कि उनमें जीवन विद्यमान् है। ग्रीनवैक्स (वर्जीनिया) के पर्यवेक्षकों ने भी उपलब्ध रेडियो सन्देशों के आधार पर अभी यह निष्कर्ष नहीं निकाला है कि उनकी पहुँच के क्षेत्र में पृथ्वी के अतिरिक्त अन्यत्र भी जीवन है।
वर्जीनिया के ग्रीनवैक्स नामक स्थान पर अवस्थित रेडियो वेधशाला के खगोलशास्त्री फ्रैकड्रेक ने एक तारे से आने वाले रेडियो संकेतों का अध्ययन किया था। जहाँ से यह संकेत आते थे, उस तारे का नाम उन्होंने “ओज्मा” रखा था और इसी नामकरण के आधार पर उनकी अनुसन्धानशाला को ओज्मा प्रोजेक्ट कहा जाता था। उन्होंने 21 सेंटीमीटर वेवलेंथ पर 150 घण्टे तक संकेत सुने थे। यद्यपि उस समय किसी निष्कर्ष पर न पहुँचा जा सका, फिर भी ड्रेक महोदय ने यह भविष्यवाणी की थी कि अब न सही, फिर कभी सही, हम अन्तर्ग्रही प्राणियों के साथ आदान-प्रदान में सफलता प्राप्त करके रहेंगे।
जहाँ-तहाँ पाये गये उल्का पिण्डों में जीवन तत्त्व पाए गए हैं, इससे अनुमान होता है कि जीवन होना चाहिए। अपने लोक में कभी-कभी ऐसे वाइरस (विषाणु) आ धमकते हैं, जिनमें ताप सहन शक्ति इतनी अधिक होती है जितनी पृथ्वी पर सम्भव नहीं। इन आधारों को देखते हुए इस मान्यता की पुष्टि होती है कि अन्यत्र भी जीवन होना ही चाहिए।
जीवन कहीं भी– किसी भी रूप में क्यों न प्राप्त हो, उसके मूल में डी.एन.ए. धागों के रूप में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ ही है। इन रसायनों का अस्तित्व अन्य लोकों में भी है, इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
प्रख्यात रूसी खगोलवेत्ता निकालाई कार्दाशेव ने अन्तरिक्ष से अवतरित होने वाली विभिन्न रेडियो ध्वनि तरंगों को वर्णछटा में परिवर्तित करके ऐसे चार्ट तैयार किये थे, जिनसे यह प्रकट होता है कि प्राकृतिक परिवर्तनों से रेडियो कम्पनों की क्या स्थिति होती है और अन्तर्ग्रही रेडियो संकेतों की उन से क्या भिन्नता है।
इस अन्वेषण को आगे जारी रखते हुए सोवियत संघ के एक-दूसरे ज्योतिर्विद् गेन्नादी शोलोमित्स्को ने पता लगाया कि सौ दिन के अन्तर से एक जैसे अन्तर्ग्रही रेडियो संकेत नियमित रूप से– नियमित क्रम से आते हैं। इस नियमितता के पीछे किन्हीं प्रबुद्ध प्राणियों का प्रयास ही होना चाहिए ?
खगोलज्ञ मानते हैं कि हमारी आकाश गंगा में एक करोड़ के लगभग ग्रह ऐसे है, जो अपने-अपने सूर्यों की परिक्रमा करते हुये ऐसे क्षेत्र में रहते हैं, जहाँ न अधिक सर्दी है न गर्मी। वहाँ हमारी धरती की तरह ही मध्यवर्ती शीत-ताप ही नहीं, अन्य परिस्थितियाँ भी ऐसी हैं, जिन पर जीवन अपने आप पनप सकता है। जीव-विज्ञानी पहले यह मानते थे कि वहाँ जीवन का आधार कठिन है, पर अब यह माना जाने लगा है कि सिलिकन में भी कार्बन जैसी ही जीवन को उत्पन्न कर सकने वाली क्षमता मौजूद है। सिलिकन प्रचुर मात्रा में अन्य ग्रहों पर मौजूद है, तो वहाँ जीवन भी होना ही चाहिए।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो. मार्टिन रायल ने 25 ऐसे रेडियो तारकों की सूची तैयारी की है, जो अपने सूर्य की अपेक्षा सैकड़ों गुने बड़े और तेजस्वी हैं। उनकी ऊर्जा कल्पनातीत हैं। प्रो. फ्रड हायल के अनुसार उन रेडियो तारकों के अनेक ग्रह-उपग्रह जुड़े हुए हैं। उनमें अनेकों की स्थिति जीवन के लिए अनुकूल उपयुक्त होने की पूरी-पूरी सम्भावना मानी जा सकती हैं। ऐसी ही उपलब्धियों से प्रभावित होकर ब्रिटेन के अन्तरिक्ष विज्ञानी लार्ड स्नो ने आशा व्यक्त करते हुए कहा था कि वह दिन हम सब के लिए बेहद खुशी का होगा, जब ब्रह्माण्ड के अन्य प्राणियों के साथ हमारा सम्पर्क बनेगा। एक प्रश्न यह भी है कि यदि अन्य ग्रहों पर जीवन हो, तो क्या वहाँ हमारा आवागमन सम्भव हो सकता है? क्योंकि बिना प्रत्यक्ष संपर्क अथवा आदान-प्रदान के जीव सत्ताएँ ब्रह्माण्ड में अपने स्थान पर बनी रहकर अन्य लोक वासियों के लिए कुछ अधिक उपयोगी सिद्ध न हो सकेंगे।
तारकों की दूरी को देखते हुए और मनुष्य-प्राणी की सीमित आयु को देखते हुए यह खाई पटती नहीं दीखती कि उन लोकों तक पहुँचना और वापिस लौटना सम्भव हो सके। अपने आधुनिकतम अन्तरिक्ष यान द्वारा यदि निकटतम तारक की यात्रा की जाय तो उसमें कम से कम चार प्रकाश वर्ष लगेंगे। एक प्रकाश वर्ष अर्थात् लगभग 60 खरब मील की दूरी।
वैलेस सलीवान ने अपनी पुस्तक “वी आर नाट अलोन" (हम अकेले नहीं हैं), पुस्तक में अन्तरिक्ष यात्राओं के एक नवीन आधार का उल्लेख किया है। यह आधार 21 सेंटीमीटर अथवा 1420 मेगा साइकिल वेवलेंथ के रेडियो कम्पनों पर अवलम्बित है। हाइड्रोजन परमाणुओं के विकिरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। इसे करतलगत किया जा सकता है। तब अन्तरिक्ष यात्रा के लिए कम समय, कम श्रम एवं कम धन लगाकर ही अन्तर्ग्रही आवागमन सम्भव हो सकता है।
प्रकाश की चाल से चल सकने वाले अन्तर्ग्रही यान तारकों की दूरी को देखते हुए वहाँ पहुँचने और लौटने में जितना समय लेंगे, उसमें मनुष्य की कई पीढ़ियाँ बीत जायेंगी। इतनी लम्बी प्रतीक्षा में बैठे रहना अन्तरिक्ष जिज्ञासुओं के लिए कठिन है, अस्तु वह आधार ढूँढे जा रहे हैं, जो उस गति में तीव्रता ला सके। सौभाग्य से वह आधार मिल भी गया है। मेगा साइकिल वेवलेंथ के सहारे यान इतनी तेजी से उड़ सकेंगे कि अभीष्ट अवधि के अन्दर ही अन्तर्ग्रही आवागमन सम्भव हो सके। मनुष्य की गरिमा महान् है। उसकी बुद्धि को दैवी वरदान ही कहा गया है। अलभ्य आकांक्षा, तन्मय तत्परता, समग्र एकाग्रता और प्रचंड श्रमशीलता के चारों आधार मिल जाने पर मानवी बुद्धिमत्ता सीमा की समस्त मर्यादाओं को लांघ जाती है। बलि भगवान की तरह वह तीन चरणों में समस्त विश्व ब्रह्माण्ड को नाप सकती है, नापने जा भी रही है। इस बुद्धिमत्ता का जब भी सदुपयोग होगा, तो मनुष्य पर देवताओं को निछावर किया जा सकेगा और तब इस धरती की गरिमा स्वर्ग से बढ़ी-चढ़ी ही होगी।