
जीवन की जड़ें गहरी और मजबूत रखें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
जिनकी जड़े सड़ गई उन खोखले पेड़ों को, आँधी का एक झोंका उखाड़ फेंकने के लिए पर्याप्त है। जब वे गिरते हैं तब औंधे मुँह गिरते हैं और फिर उठने का अवसर कभी भी प्राप्त नहीं करते। इसके विपरीतता जिनकी जड़े गहरी और मजबूत हैं वे तूफानों का सहज ही सामना करते रहते हैं, आँधी प्रचण्ड हों तो भी उनकी कुछ शाखाएँ ही टूटती हैं, तना फिर भी अप्रभावित ही रहता है। वह भी टूट जाय तो जड़े फिर नये अंकुर देती हैं और टूट हुए वृक्ष जैसा ही एक नया वृक्ष चन्द दिनों में फिर बनकर खड़ा हो जाता है। टूटा हुआ तना यदि थोड़ा भी जुड़ा रहा तो उसमें भी नई डालियाँ लहलहाने लगती हैं। यह सारे चमत्कार मजबूत जड़ों के हैं। पेड़ की जिन्दगी, सुरक्षा और प्रगति एवं शोभा उन्हीं पर निर्भर रहती है।
मनुष्य की जड़े उसकी मनोवृत्तियाँ हैं। हिम्मत,निष्ठा, लगन, श्रमशीलता, स्फूर्ति जैसी अन्तः प्रवृत्तियों को जड़ों की संज्ञा दी जा सकती है। वे मजबूत होंगी तो जीवन संग्राम में आये दिन आते रहने वाले आँधी तूफानों का आसानी से सामना किया जा सकेगा। यदि विपरीत परिस्थितियों ने कुछ अवरोध या व्यवधान उपस्थित किये तो उस आगत विपत्ति को भी सहन कर लिया जायगा। क्षति पूर्ति का भी मार्ग निकाल लिया जायगा। मनस्वी व्यक्तियों को भी अन्यान्य व्यक्तियों की तरह कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है पर वे उन्हें हँसी खेल समझ कर निपटते रहते हैं और मन पर उदासी की छाप नहीं पड़ने देते जबकि दुर्बल मन वाले व्यक्ति तनिक सी कठिनाई को देखकर भयभीत हो उठते हैं। आगत विपत्ति से पूर्व, मात्र आशंका ही उनके धैर्य को तोड़ देती है।
प्रगतिशील जीवन की जड़े गहरी होनी चाहिए। धैर्य, साहस और लगन से युक्त, संकल्पनिष्ठ व्यक्ति की जड़े ही इतनी मजबूत होती हैं कि वह उस समर्थ, सुस्थिर, सुविकसित और दीर्घजीवन में रह सके। मनस्वी व्यक्ति अपनी आन्तरिक विशेषता एवं दृढ़ता के आधार पर जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करते हैं इसके विपरीत दुर्बल मनः− स्थिति वालों के लिए तनिक से कारण तोड़−मरोड़ कर रख देते हैं, फिर उनके लिए कोई महत्वपूर्ण साहस कर सकना ही सम्भव नहीं रहता।
शरीर से परिपुष्ट दीखने से ही कोई व्यक्ति बलिष्ठ नहीं हो जाता। शक्ति मान वे है जिनमें मनोबल की अभीष्ट मात्रा मौजूद है। दुर्बल काया लेकर कर्मक्षेत्र में उतरे ऐसे महापुरुषों की संख्या अगणित है जिन्होंने अपने मनोबल के कारण अपने को ऊँचा उठाया और अगणित लोगों के भविष्य का निर्माण किया। गाँधी जी जैसे दुर्बल कार्य किन्तु मनोबल के धनी व्यक्ति कितने महत्वपूर्ण काम कर सकने में समर्थ हुए हैं ऐसे उदाहरणों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। आद्य−शंकराचार्य जैसे भयानक भगंदर व्रण से रुग्ण व्यक्ति भी अपने छोटे से जीवन में चकित कर देने वाली सफलताएँ प्राप्त करते रहे है। शरीर−बल की नहीं मनोबल की महत्ता को ही यह उदाहरण प्रतिपादित करते हैं। शरीर बल और मनोबल की तुलना करनी हो तो विशालकाय हाथी और मनस्वी सिंह के मल्ल−युद्ध का प्रतिफल हमें सहज ही वस्तुस्थिति समझा सकता है।
हमें जीवन की जड़ों को मजबूत बनाना चाहिए और उन्हें निरोग बनाने के लिए जितना ध्यान रखा जाता है, साधन जुटाया जाता है उससे अधिक प्रयत्न यह जाय। हिम्मत कम न पड़े— परिश्रम में उदासी न आये— आशा की ज्योति धूमिल न पड़े। कठिनाइयाँ सामने आने पर उनसे लड़ने की बहादुरी इतनी अधिक बनी रहे कि संघर्षों से निपटना एक मनोरंजक खेल भर बनकर रह जाय।
अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति में हमारी आशा और चेष्टा इतनी बलवती होनी चाहिए कि परीक्षा के लिए समय−समय पर आते रहने वाले आँधी तूफान अपना कुछ बिगाड़ न सकें। जड़ें जितनी गहरी होंगी सफल जीवन की अभिव्यंजना का उतना ही सुखद रसास्वादन उपलब्ध रहेगा।