
विलक्षण प्रतिभाएँ संचित ज्ञान−सिद्धाँत की साक्षी
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संसार में ऐसी विलक्षण प्रतिभाएँ समय−समय पर उत्पन्न होती रहती हैं जिनकी बौद्धिक असाधारणता को देखकर अवाक् रह जाना पड़ता है। शरीर विकास की तरह बौद्धिक विकास का भी एक क्रम है। समय और अवधि के अनुरूप— साधन−सुविधाओं के सहारे कितने ही मनुष्य अपनी प्रतिभा को निखारते, बढ़ाते देखे गये हैं। पुरुषार्थ और परिस्थितियों के सहारों उन्नति के उच्च शिखर तक पहुँचते भी अनेकों को देखा जाता है पर इस स्वाभाविक प्रगति−प्रक्रिया का उल्लंघन करके कई बार ऐसी प्रतिभाएँ सामने आती हैं जिनके विकास क्रम का कोई बुद्धिगम्य कारण दिखाई नहीं पड़ता। ऐसी विलक्षण प्रतिभाओं का कारण ढूंढ़ने के लिए हमें पूर्व संचित ज्ञान सम्पदा का प्रतिफल मानने के अतिरिक्त और कोई समाधान मिल ही नहीं सकता।
विख्यात फ्राँसीसी बालक ‘जान लुई कािर्दयेक’ जब तीन मास का था तभी अँग्रेजी वर्णमाला का उच्चारण कर लेता था। तीन वर्ष का होते होते वह अच्छी लैटिन पढ़ने और बोलने लगा। पाँच वर्ष की आयु में पहुँचने तक उसने फ्रच,हिब्रू और ग्रीक भी अच्छी तरह सीख ली। छै वर्ष की आयु में उसने इतिहास,भूगोल और गणित पर भी आश्चर्यजनक अधिकार प्राप्त कर लिया। सातवें वर्ष में वह संसार छोड़कर चला गया।
विलियम जेम्स सिदिस ने सारे अमेरिका को आश्चर्यचकित कर दिया। दो वर्ष की आयु में वह धड़ल्ले की अँग्रेजी बोलता, पढ़ता और लिखता था। आठ वर्ष की आयु में छै विदेशी भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें ग्रीक और रूसी भाषाएँ भी सम्मिलित थीं; जिनका उस देश में प्रचलन नहीं था। ग्यारह वर्ष की आयु में उसने उस देश के मूर्धन्य विशेषकों की सभा में ‘चौथे आयाम’ की संभावना पर एक विलक्षण व्याख्यान दिया उस समय तक तीसरे आयाम की बात ही अन्तिम समझी जाती थी।
सिदिस की यह विलक्षणता किशोरावस्था आने पर न जाने कहाँ गायब हो गई। वह अति सामान्य बुद्धि का व्यक्ति रह गया।
इंग्लैंड के डेवोन स्थान में एक पत्थर तोड़ने वाले श्रमिक का दो वर्षीय पुत्र जार्ज, गणित में अपनी अद्भुत प्रतिभा प्रदर्शित करने लगा। चार वर्ष की आयु में उसने गणित के अत्यन्त जटिल प्रश्नों का दो मिनट में मौखिक उत्तर देना आरम्भ कर दिया जिन्हें कागज, कलम की सहायता से गणित के निष्णात आधा घण्टे से कम में किसी भी प्रकार नहीं दे सकते थे। इसकी प्रतिभा भी दस वर्ष की आयु में समाप्त हो गई। फिर वह सामान्य लड़कों की तरह पढ़ कर कठिनाई से सिविल इंजीनियर बन सका।
फिल्मी दुनिया में तहलका मचाने वाला बाल अभिनेता विलियम हेनरी वेट्टी बाल्यकाल से ही अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय देने लगा। उसके अभिनय ने सारे यूरोप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। 11 वर्ष की आयु तक पहुँचते −पहुँचते वह फिल्म दर्शकों का सुपरिचित प्रिय−पात्र बन गया। ऐसा ही एक दूसरा बालक था लन्दन का कवेंट गार्डन, उसका अभिनय देखने के लिए आकुल भीड़ को हटाने के लिए एकबार तो सेना बुलानी पड़ी थी उसे इतना अधिक पारिश्रमिक मिलता था जितना पाने का अन्य किसी कलाकार को सौभाग्य न मिला। एकबार तो ‘हाउस आफ कामन्स ‘ का अधिवेशन इसलिए स्थगित करना पड़ा कि उस दिन कवेंट गार्डन द्वारा हेमलेट का अभिनय किया जाना था और सदस्यगण उसे देखने के लिए आतुर थे।
जर्मन की बाल प्रतिभा का कीर्तिमान स्थापित करने वालों में जान फिलिफ वैरटियम को कभी भुलाया न जा सकेगा। उसने दो वर्ष की आयु में ही पढ़ना−लिखना सीख लिया। छै वर्ष की आयु में वह फ्रेंच और लैटिन भी धारा प्रवाह रूप से बोलता था। सात वर्ष की आयु में उनने बाइबिल का ग्रीक भाषा में अनुवाद करना आरम्भ कर दिया। सात वर्ष की आयु में ही उसने अपने इतिहास, भूगोल और गणित सम्बन्धी ज्ञान से तत्कालीन अध्यापकों को अवाक् बना दिया। सातवें वर्ष में ही उसे वर्लिन की रॉयल एकेडेमी का सदस्य चुना गया तथा डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि से सम्मानित किया गया। वह भी अधिक दिन नहीं जिया। किशोरावस्था में प्रवेश करते करते वह इस संसार से विदा हो गया।
विलक्षण प्रतिभावान होते हुए भी प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने वालों में एक है लार्ड मैकाले जो 51 वर्ष की आयु तक जिये। वे वयोवृद्धों का सा स्वभाव लेकर जन्मे थे उनके सोचने, बोलने और करने का ढंग आरम्भ से ही वृद्धों जैसा रहा।वे बच्चों के साथ नहीं बूढ़ों के साथ बैठते और बात करते थे। दो वर्ष की आयु में पढ़ने लगना उनकी विशेषता थी। सात वर्ष की आयु में उन्होंने विश्व का इतिहास लिखना आरम्भ कर दिया और कितने ही अन्य शोध पूर्ण ग्रन्थ लिखे। उन्हें ‘ चलती−फिरती विद्या’ कहा जाता था।
अत्यन्त छोटी आयु में विलक्षणता का परिचय देने में समस्त छोटी आयु में विलक्षणता का परिचय देने में समस्त विश्व इतिहास को पीछे छोड़ देने वालों में लुवेक (जर्मनी) में उत्पन्न हुआ बालक फ्रेडरिक हीनकेन था। वह सन् 1721 में जन्मा। जन्मने के कुछ घण्टे के बाद ही वह बातचीत करने लगा। दो वर्ष की आयु में बाइबिल के सम्बन्ध में पूछी गई किसी भी बात का विस्तार पूर्वक उत्तर देता था और बताया था कि वह प्रकरण किस अध्याय के किस मन्त्र में है। इतिहास और भूगोल में उसका ज्ञान अनुपम था। डेनमार्क के राजा ने उसे राजमहल बुलाकर सम्मानित किया। तीन वर्ष की आयु में उसने भविष्यवाणी की कि अब मुझे एक वर्ष की और जीना है। उसका कथन अक्षरशः सही उत्तरा चार वर्ष की आयु में वह इस संसार से विदा हो गया।
जो लोग पुनर्जन्म का अस्तित्व नहीं मानते। मनुष्य को एक चलता−फिरता पौधा भर मानते हैं। शरीर के साथ चेतना का उद्भव और मरण के साथ ही उसका अन्त मानते हैं वे इन असमय उदय हुई प्रतिभाओं की विलक्षणता का कोई समाधान नहीं ढूंढ़ पायेंगे। वृक्ष वनस्पति पशु−पक्षी सभी अपने प्रकृति क्रम से बढ़ते हैं उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विशेषताएँ समयानुसार उत्पन्न होती हैं फिर मनुष्य के असमय में ही इतना प्रतिभा संपन्न होने का और कोई कारण नहीं रह जाता कि उसने पूर्व जन्म में उन विशेषताओं का संचय किया हो और हो और वे इस जन्म में जीव चेतना के साथ ही जुड़ी चली गई आई हों।