
मानवी काया में उच्चस्तरीय विद्युतशक्ति का प्रवाह
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मानवी तत्व की व्याख्या, विवेचना अनेक आधारों पर की जाती है अध्यात्म एवं तत्व दर्शन के आधार पर मनुष्य को ईश्वरीय सत्ता का प्रतिनिधि और अगणित दिव्य संभावनाओं का भाण्डागार माना गया है, भौतिक विश्लेषण के अनुसार वह रासायनिक पदार्थ और पंचतत्व समन्वय का एक हँसता,बोलता पादप है। विद्युत विज्ञान के अनुसार उसे एक जीवित जागृत बिजली घर भी कहा जा सकता है। रक्त संचार, श्वास−प्रश्वास, आकुंचन−प्रकुंचन जैसे क्रिया−कलाप पेंडुलम गति से स्वसंचालित रहते हैं और जीवनी शक्ति के नाम से पुकारी जाने वाली विद्युत शक्ति की क्षति पूर्ति करते हैं। मस्तिष्क अपने आप में एक रहस्य पूर्ण बिजली घर है। जिसमें जड़े हुए तार समस्त काया को कठ−पुतली की तरह नाचते हैं।
मनुष्य शरीर की बिजली एक प्रत्यक्ष सचाई है। उसे यन्त्रों से भी देखा जाना जा सकता है। वह अपने ढंग की अनोखी है। भौतिक विद्युत से उसका स्तर बहुत ऊँचा है। बल्ब में जलने और चमकने वाली बिजली की तुलना में नेत्रों में चमकने वाली बिजली की गरिमा और जटिलता अत्यन्त ऊँचे स्तर की समझी जानी चाहिए। तारों को छूने पर जैसा झटका लगता है वैसा आमतौर से शरीरों के छूने से नहीं लगता है तो भी काया संस्पर्श के दूरगामी कायिक और मानसिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। महामानवों के चरण−स्पर्श जैसे धर्मोपचार इसी दृष्टि से प्रचलित हैं। यह कायकि बिजली कभी−कभी भौतिक बिजली के रूप में देखने में आती हैं उससे उस रहस्य पर पड़ा हुआ पर्दा और भी स्पष्ट रूप से उधर जाता है जिसके अनुसार मनुष्य को चलता−फिरता बिजली घर ही माना जाना चाहिए।
अमेरिका में मिसौरी के निकट सिडैलिया में एक दुबली पतली लड़की थी जेनी माँगन। जब चौदह वर्ष की हुई तो उसके शरीर में अद्भुत क्षमता उत्पन्न लगने जैसा अनुभव करता। लड़की जब हैण्डपम्प से पानी निकालने जाती तो उंगलियों का स्पर्श होते ही चिनगारियाँ छूटने लगती। घर के लोगों के बीच उसे अछूत की तरह रहना पड़ता। सभी उससे डरने लगे। यहाँ तक कि उसकी पालतू बिल्ली तक ने किनारा कस लिया।
यह आश्चर्यजनक स्थिति की बात दूर−दूर तक फैली। उसे छूकर विचित्र अनुभव पाने के लिए लोग दूर−दूर से आने लगे। अन्ततः यह ‘केस’ डा. ऐसक्राफ्ट को सौंपा गया। उन्होंने दो बार लड़की को स्वयं छुआ और बेहोश कर देने जितनी शक्ति के झटके अनुभव किये। उन्होंने कई विद्युत विशेषज्ञों और शरीर विज्ञानियों की सहायता से इसका कारण जानने का बहुत प्रयत्न किया पर वे किसी नतीजे पर न पहुंच सके। लड़की जब बड़ी हुई तो उसकी यह शक्ति घटती गई और पच्चीस की आयु तक पहुँचने पर इस जंजाल से उसे पूर्णतया मुक्ति मिल गई।
चिकित्सा इतिहास में ऐसी ही एक और घटना अंतरिक्षीय क्षेत्र के बोंडन की है। वहाँ एक 17 वर्षीय लड़की कैरोलिन क्लेअर अचानक बीमार पड़ी। डेढ़ वर्ष तक चारपाई पकड़े रहने के कारण उसका 130 पौंड वजन घटकर 90 पौंड रह गया। जब उस बीमारी से पीछा छूटा तो एक नई बीमारी और लग गई। उसके शरीर में चुम्बकत्व काफी ऊँचे वोल्टेज की बिजली पैदा हो गई जो छूता वही विद्युत आघात का अनुभव करता। धातु की बनी कोई वस्तु वह छूती तो वह हाथ से चिपक जाती। अन्तरिक्षीय मेडीकल ऐसोशियेशन ने इसकी विधिवत् जाँच की पर रिपोर्ट में किसी कारण का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया जा सका—केवल अनुमान और सम्भावनाओं के आधार पर ही कुछ चर्चा की गई। कुछ वर्ष बाद उसकी भी यह विलक्षणता घटते लगी और धीरे−धीरे समाप्त हो गई।
एक तीसरी घटना सोलह वर्षीय लुई हेवर्गर की है। इस लड़के में शक्तिशाली चुम्बक पाया गया। वह जिन धातु पदार्थों को छूता वे उससे चिपक जाते और कि सी दूसरे द्वारा बलपूर्वक छुड़ाये जाने पर ही छूटते। मेरीलण्ड कालेज आफ फार्मेसी के तत्वावधान में इस इस लड़के के सम्बन्ध में भी बहुत दिन तक खोज−बीन की गई। पर निश्चित निष्कर्ष उसके सम्बन्ध में भी व्यक्त न किया जा सका।
एक और घटना मिसौरी के निकट जापलिन नगर की है। यहाँ एक व्यक्ति था—फ्रैक मैक किस्टी। उसके शरीर में प्रातःकाल तेज बिजली रहती थी पर जैसे−जैसे दिन चढ़ता, वह शक्ति घटती चली जाती। जाड़े के दिनों में तो वह इतनी बढ़ जाती थी कि बेचारे को चलने−फिरने में भी कठिनाई अनुभव होती थी।
इस तरह झटका मारने जैसे स्तर की बिजली तो कभी−कभी किसी−किसी के शरीर में ही देखने को मिलती है, पर सामान्यतया वह हर मनुष्य में पाई जाती है और जीवन की विविध गतिविधियों के संचालन में सहायता करती है। इसके सदुपयोग एवं अभिवर्धन का विज्ञान यदि ठीक तरह समझा जा सके तो मनुष्य परम तेजस्वी, मनस्वी एवं आत्मबल सम्पन्न बनकर सुविकसित जीवन जी सकता है।
शिर और नेत्रों में मानवी विद्युत का सबसे अधिक अनुभव होता है। वाणी की मिठास, कड़क अथवा प्रभावी प्रामाणिकता में भी उसका अनुभव किया जा सकता है। तेजस्वी मनुष्य के विचार ही प्रखर नहीं होते उनकी आंखें भी चमकती हैं और उनकी जीभ के अन्तर में गहराई तक घुस जाने वाला विद्युत प्रवाह उत्पन्न करती है। आत्मबल की साधना में प्रकारांतर से तेजस्विता की साधना ही कह सकते हैं।
मानवी विद्युत के दो प्रकार के दो प्रवाह हैं एक ऊर्ध्वगामी दूसरा अधोगामी। ऊर्ध्वगामी मस्तिष्क में केन्द्रित है। उस मर्मस्थल के प्रभाव से व्यक्तित्व निखरता और प्रतिभाशाली बनता है। बुद्धि कौशल, मनोबल के रूप में शौर्य,साहस और आदर्शवादी उत्कृष्टता के रूप में यही विद्युत काम करती है। योगाभ्यास के—ज्ञान साधना के समस्त प्रयोजन इस ऊर्ध्वगामी केन्द्र द्वारा ही सम्पन्न होते है। स्वर्ग और मुक्ति का—ऋद्धियों और सिद्धियों का आधार इसी क्षेत्र की विद्युत के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य के चेहरे के इर्द−गिर्द छाये हुए तेजोबल को—ओजस् को इस ऊर्ध्वगामी विद्युत का ही प्रतीक समझना चाहिए।
अधोगामी विद्युत जननेन्द्रिय में केन्द्रित रहती है। रति सुख का आनन्द देती है और सन्तानोत्पादन की उपलब्धि प्रस्तुत करती है। विविध कला विनोदों का—हर्षोल्लासों का उद्भव यहीं होता है। ब्रह्मचर्य पालन करने के जो लाभ गिनाये जाते है वे सब जननेन्द्रिय में सन्निहित विद्युत के ही चमत्कार हैं। आगे चलकर मूलाधार चक्र में अवस्थित कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करने साधनारत मनुष्य अपने को ज्योतिर्मय तेज पुञ्ज के रूप परिणत कर सकते हैं।
ऊर्ध्वगामी और अधोगामी विद्युत प्रवाह यों उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की तरह भिन्न प्रकृति के है और एक दूसरे से दूर हैं फिर भी वे सघनता पूर्वक मेरुदण्ड के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए हैं। जननेन्द्रिय उत्तेजना से मस्तिष्क में संक्षोभ उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट चिन्तन से कामविकारों का सहज शयन सम्भव हो जाता है। यदि यह उभय−पक्षीय शक्ति प्रवाह ठीक तरह सँजोया, संभाला जा सके तो उसका प्रभाव व्यक्तित्व के समान विकास में चमत्कारी स्तर का देखा जा सकता है।
मस्तिष्कीय तेजोवलय की तरह जननेन्द्रिय
कक्ष से भी एक विशेष तेजोवलय निकलता है। अस्तु उस क्षेत्र के प्रति सहज आकर्षण पाया जाता है। देखने स्पर्श करने की उत्सुकता रहती है। मादा पशुओं,पक्षियों तथा कीड़े−मकोड़े में तो ऋतुकाल में वह तेजोवलय अत्यन्त प्रचण्ड हो उठता है और एक विशेष गन्ध के रूप में वायु के साथ दूर−दूर तक बिखर जाता है। नर इस गन्ध तेजस की अनुभूति मात्र से उत्तेजित हो उठते हैं और मादा की तलाश में उस गन्ध सूत्र के सहारे आकुलता पूर्वक दौड़ पड़ते हैं। मनुष्य में वह गन्ध क्रम रूप में न सही दूसरे अन्य प्रबल आधारों पर विनिर्मित है और ऋतुकाल न होने पर भी नर−नारी को परस्पर समीप आने के लिए प्रेरित आकर्षित करता रहता है। यह हलचलें जननेन्द्रिय के इर्द−गिर्द छाये रहने वाले तेजोवलय की प्रखरता के कारण उत्पन्न होता है। इसकी एक झाँकी चेहरे पर भी पाई जाती है। चितवन, मुसकान,भाव−भंगिमा के आधार पर कामुक संकेत एक दूसरे तक पहुँचाकर नर−नारी परस्पर आकर्षण अनुभव करते हैं।
विचारों विधा का प्रतिपादन है कि रचनात्मक,संतुलित एवं आदर्शवादी चिन्तन मनुष्य की वाणी एवं दृष्टि से प्रखरता उत्पन्न करता है। सूझ−बूझ और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। किन्तु यदि उन्हें निकृष्ट चिन्तन में निरत रखा जाय तो प्रतिभा विगलित होती चली जायगी और व्यक्ति निकृष्ट से निकृष्टतम बनता चला जायगा। यही बात जननेन्द्रिय में सन्निहित काम शक्ति के बारे में उसका रति प्रयोजन मात्र सन्तानोत्पादन अथवा इन्द्रिय सुख तक ही सीमित नहीं है वरन् दो व्यक्तियों के तेजस् को एक दूसरे में परिवर्तित भी करना है। समर्थ पक्ष असमर्थ पक्ष से महत्वपूर्ण अनुदान दे सकता है। इसमें तेजस्वी पक्ष घाटे में रहते हैं। अस्तु प्रतिभावानों को रति संयोग से विरत रहकर अपनी गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रहने का परामर्श दिया जाता है।
जिस प्रकार निष्कृष्ट चिन्तन से ऊर्ध्वगामी विद्युत का ह्रास होता है उसी प्रकार अवाँछनीय रति क्रिया से भी मनुष्य की प्रतिभा विगलित होती चली जाती है। ब्रह्म चिन्तन और वीर्य रक्षण यह दोनों ही प्रयोग मानवी विद्युत की गरिमा को दिन−दिन ऊँचा उठा सकते हैं। किन्तु यदि हेय संपर्क से अधिक रुझान हो तो फिर इस क्षेत्र में घाटा ही घाटा हाथ लगेगा।
झटका मारने वाली विद्युत भले ही मानवी काया में कभी−कभी ही दीख पड़े पर वह अपनी उच्च गरिमा के रूप में हर मनुष्य में विद्यमान है। बिजली का फिटिंग जहाँ हो वहाँ उसका प्रयोग भी सीखना आवश्यक होता है, हमारे शरीर में उच्चस्तरीय विद्युत भंडार भरा पड़ा है, उचित आवश्यक यह है कि इस चेतन तेजस् का प्रयोग भी जाना सीखा जाय।