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Magazine - Year 1974 - Version 2

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भयंकर अणुशक्ति नहीं, मानवी दुर्बुद्धि है

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प्रकृति के कण−कण में अनन्त शक्ति का भण्डार भरा पड़ा है। वस्तुतः यह समस्त जगत शक्ति रूप ही है; पर ब्रह्म की सहचरी प्रकृति भी यदि शक्ति सम्पन्न न हुई तो और कौन होगा? अपना सौरमण्डल और अगला विश्व ब्रह्माण्ड जिस असीम विस्तार वैभव से भरा पूरा है उसी का प्रतिनिधित्व छोटा परमाणु करता है। जो ब्रह्माण्ड में है वह पिण्ड में भी सन्निहित है इस प्राचीन उक्ति को अणु विशेषज्ञों ने पदार्थ की न्यूनतम इकाई का विश्लेषण करके अक्षरशः सत्य सिद्ध कर दिया है।

परमाणुओं का आकार कितना होता है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक सेन्टीमीटर लम्बाई में वे 10.00,00,000 रखे जा सकते हैं।

बहुत समय पूर्व परमाणु को ‘पदार्थ ‘ की सबसे छोटी इकाई माना जाता था। पीछे पता चला ‘परमाणु’ भी एक पूरा सौरमण्डल है, जिसका मूल केन्द्र है नाभिक — न्यूक्लियस। इसके इर्द −गिर्द इलेक्ट्रोन ग्रहों की तरह परिक्रमा करते हैं। पीछे पता चला नाभिक भी एकाकी नहीं है। वह प्रोटोन और न्यूट्रोन कणों से मिलकर बना है। अब वे भी दो नहीं रहे। परमाणु के भीतर 150 प्राथमिक कण खोजे जा चुके हैं। ये सभी प्राथमिक कण गिने जा रहे हैं। इनके गुण, धर्म अभी बहुत स्वल्प मात्रा में ही जाने जा सके हैं। ये भी चिरस्थायी नहीं। जन्मते, नई पीढ़ी उत्पन्न करते और मरते वे भी हैं। ये जितने छोटे हैं उतना ही इनका जीवनकाल भी छोटा है। वे एक सेन्टीमीटर के 10,000 अरब वें हिस्से की दूरी तक ही चलकर अपना जीवन समाप्त कर देते हैं। समय की दृष्टि से वह इतना कम होता है कि एक के आगे 22 शून्य रखने पर जो संख्या बनती है, एक सेकेंड का उतना भाग कहकर पाठकों को उसे समझाया जा सके।

इन कणों को विद्युत आवेश की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है पॉजिट्रोन अर्थात् धनावेशी कण। इलेक्ट्रोन अर्थात् ऋणावेशी कण।

परमाणु भौतिकी में ऊर्जा की सबसे छोटी इकाई ‘इलेक्ट्रोन बोल्ट’ मानी जाती है। वह इतनी कम है जितनी किसी वस्तु को बहुत ही हलके हाथ से पेन्सिल की नो क छुआ देने भर से उत्पन्न होती है। प्राथमिक कण को इतनी ही ऊर्जा युक्त माना गया है परमाणु का अस्तित्व इतना कम है कि उसे स्वाभाविक स्थिति में नहीं जाना जा सकता उसका परिचय तभी मिलता है जब उसे अतिरिक्त ऊर्जा चंचल बनाया जाय। ऐसी चंचलता 1000 से 10000 इलेक्ट्रोन बोल्ट को बढ़ाने पर ही हम उन्हें अपने किसी काम में ला सकते हैं। उसका नाभिक विचलित कर ने के लिए 1 लाख से लगाकर 100 लाख तक इलेक्ट्रान बोल्ट ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।

विभिन्न पदार्थों में पाये जाने वाले कणों की संरचना अलग−अलग प्रकार की है। हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक में केवल एक प्रोटोन पाया जाता है जबकि अन्यों में अनेक। यूरेनियम के नाभिकों में तो 92 प्रोटोन पाये जाते हैं।

भौतिकी का मोटा और सर्वमान्य नियम यह है कि समान आवेश वाले कण एक दूसरे को दूर धकेलते हैं और असमान आवेश वाले एक दूसरे को पास खींचते हैं विद्युत और चुम्बक बल का आधार यही है। नाभिक में धनावेशी प्रोटीन होते हैं इसलिए स्वभावतः ऋणावेशी इलेक्ट्रोन उनका चक्कर काटेंगे। पर आश्चर्य यह है कि नाभिक के भीतर सभी प्रोटोन धनावेशी होते हैं और वे साथ−साथ निर्वाह करते हैं। इसमें तो भौतिकों का सर्व मान्य सिद्धान्त ही उलट जाता है। इस समस्या का समाधान करते हुए वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि नाभिक के क्षेत्र में विद्युत चुम्बकीय नियम निरस्त हो जाता है उसके स्थान पर एक अनय बल काम करता है− जिसका नाम ‘ नाभिकीय बल’ रखा गया है। यह विद्युत चुम्बकीय बल की तुलना में 100 गुना अधिक सशक्त माना गया है इसका प्रभाव अपने छोटे क्षेत्र तक ही सीमित रहता है। प्राथमिक कण न केवल अपनी छोटी कक्षा में वरन् धुरी पर भी घूमते हैं। अन्य ग्रहों की तरह ही उनका भी वही क्रम है।

नाभिक को तोड़ने से प्रचण्ड ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके लिए कणों को अतिरिक्त ऊर्जा देनी पड़ती है इसके लिए बहुमूल्य संयत्र बनाये गये हैं जिन्हें साइक्लोट्रोन या सिक्राटोन कहते हैं। अमेरिका के ब्रुक ‘हैवन’ क्षेत्र में बने संयत्र में 30 अरब इलेक्ट्रोन वाल्ट की क्षमता है। रूस के डूबना क्षेत्र में बने संयत्र में इससे भी ढ़ाई गुनी अधिक क्षमता है।

आइन्स्टाइन द्वारा प्रादुर्भूत शक्ति महासूत्रों के आधार पर यदि एक पौंड पदार्थ को पूर्णतया शांति रूप में बदला जाय तो उससे उतनी

ऊर्जा प्राप्त होगी जितनी 1400000 टन कोयला जलाने से मिल सकती है। इसमें 25 हजार अश्व शक्ति का कोई इंजन कई सप्ताह सतत कार्य करता रह सकता है।

जिस प्रकार अपने सौरमण्डल का केन्द्र सूर्य है उसी प्रकार अणु का केन्द्र न्यूक्लियस है। इसके इर्द−गिर्द घूमने वाले कणों को इलेक्ट्रोन कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ के अणुओं की संरचना अलग−अलग किस्म की इस आधार पर कही जाती है कि उनमें इलेक्ट्रोनों की संख्या अलग−अलग होती है। न्यूक्लियस भी एकाकी नहीं है— वह प्रोटान और न्यूट्रान कणों से मिलकर बना होता है। इन मिलन संगठन में जो शक्ति काम करती है वह उस समय प्रचण्ड ऊर्जा के रूप में उफनती है जबकि प्रोटान और न्यूट्रान के परस्पर संयोग को वियोग के — विगठन के रूप में परिणत किया जाता है। सभी अणुओं में प्रोटॉनों की संख्या तो समान होती है पर न्यूट्रानों में वस्तु भेद से संख्या की न्यूनाधिकता पाई जाती है।

इस अणु शक्ति का यदि सद्भावना पूर्वक सदुपयोग किया जा सके तो समृद्धि का असीम उत्पादन हो सकता है और उससे मानवी सुख−शान्ति में अनेक गुनी वृद्धि हो सकती है। अणु शक्ति के रचनात्मक प्रयोग सोचे गये हैं और वे सहज ही कार्यान्वित भी हो सकते है। पर यह सम्भव तभी है जब सद्भावना का उत्पादन अन्तःकरण की प्रयोगशालाओं में भी साथ−साथ होता चले। अणु आयुधों की भयंकरता और उनके उत्पादन की विपुलता को देखते हुए आज समस्त मानव जाति महामरण के त्रास बुरी तरह संत्रस्त हो रही है। वस्तुतः वह त्रास अणु शक्ति का नहीं मानवी दुर्भावना का है जिसके आधार से अमृत भी विष बन जाता है। यदि पाशा पलट जाय,दुर्बुद्धि का स्थान सद्भावनाएँ ले लें और अरपु शक्ति का उपयोग रचनात्मक कार्यों में होने लगे तो उसकी सुखद सम्भावनाओं का क्षेत्र भी अत्यन्त व्यापक हो सकता है।

रेडियो सक्रियता को धातुओं में नियंत्रित एवं व्यवस्थित क्रम से सँजोकर आइस्टोप बनाये जाते हैं। इनका उपयोग चिकित्सा, उद्योग, हाइड्रोलाजी आदि में होता है। थाइराइड ग्रन्थियों की गड़बड़ी रोकने के लिए रेडियो डाइन आइस्टोपों का प्रयोग होता है। स्वर्ग निर्मित आइस्टोप केन्सर की चिकित्सा में काम आते हैं रक्त में बढ़े हुए श्वेत कणों की चिकित्सा फास्फोरस आइस्टोपों से होती है।

फसल में लगे हुए कीडु मारने, उत्पादन बढ़ाने, शरीर एवं जल परीक्षा जैसे कार्यों में इनका प्रयोग होता है। इनका निर्माण एक बन्द कैबिन में यंत्रों की सहायता से किया जा सकता है।

सस्ती और प्रचुर परिमाण में विद्युत शक्ति प्राप्त करने के लिए अब परमाणु शक्ति पर विज्ञान का ध्यान केन्द्रित है समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने के लिए इसी शक्ति का बड़े पैमाने पर प्रयोग करना पड़ेगा। पानी पाई जाने वाली हाइड्रोजन गैस को बिजली में बदल देने का— जलयान, वायुयान चलाने में— ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी जमीनों को समतल बनाने में जितनी प्रचण्ड शक्ति का प्रयोग करना पड़ेगा उतनी मात्रा अणु शक्ति के अतिरिक्त और किसी माध्यम से नहीं मिल सकती।

अणु ऊर्जा से बिजली पैदा करने का कार्य अब अनेक विकसित देशों में हो रहा है। सन् 1971 में संसार भर में 120 अणु शक्ति से बिजली उत्पन्न करने वाले 102 रिएक्टर थे। और 19 हजार मेगाटन बिजली उनसे पैदा हो रही थी अब यह वृद्धि द्रुतगति से हो रही है। अनुमान है कि 1980 में 3 लाख टन बिजली इसी आधार पर पैदा होने लगेगी जो संसार के समस्त विद्युत उत्पादन की 15 प्रतिशत होगी। सन् 2000 में आधी बिजली अणु शक्ति द्वारा उत्पन्न की गई ही होगी।

इन दिनों बिजली, भाप,तेल, गैस, कोयला आदि के माध्यम से ईंधन की जरूरत पूरी की जाती है और उन्हीं से विविध−विधि प्रयोजन सिद्ध किये जाते हैं। भविष्य में व्यक्ति का स्त्रोत अणु ऊर्जा बन सकती है और उससे वे पर्वतों को चूर्ण−विचूर्ण करके भूमि को समतल, उपजाऊ और उपयोगी बनाया जा सकता है। समुद्री जल को मीठा किया जा सकता है। समुद्र तल से संपदाओं के निकालने और अन्तरिक्ष में उड़ाने जैसी अगणित सम्भावनाएँ अणु शक्ति अपने साथ छिपाये हुए है। सद्बुद्धि अपना सका तो परमात्मा का राजकुमार मनुष्य प्रकृति माता से अनेकानेक उपहार निरन्तर अनन्त काल तक प्राप्त करता रह सकना है। पर यदि उसकी दुर्बुद्धि यथावत बनी रही तो फिर अपना अस्तित्व तो वह समाप्त करेगी ही इस सुन्दर पृथ्वी ग्रह को भी अन्य निस्तब्ध एवं निष्प्राण पिंडों की श्रेणी में ले जाकर खड़ा कर देगी।

एक और विभीषिकाएं और दूसरी ओर सुखद संभावनाएं लिए हुए अणु शक्ति हमारे सामने हाथ बाँधे खड़ी है और पूछती है कि दुर्बुद्धि के माध्यम से उसे मृत्यु दूत के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला है अथवा सद्भावनाओं के सहारे उसे दैवी वरदान बनने का अवसर दिया जाने वाला है। दोनों में से कोई भी आदेश देना मनुष्य के अपने हाथ की बात है। निर्णायक शक्तियाँ नहीं— सम्प्रदाएँ नहीं— मनुष्य की अपनी मान्यताएँ है निर्धारण और परिष्कार र उन्हीं का होना चाहिए।

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