Magazine - Year 1975 - Version 2
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Language: HINDI
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आकाँक्षाएँ बनाम उपलब्धियाँ
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प्राणियों की आवश्यकताएँ तथा इच्छाएँ उनकी शारीरिक, मानसिक शक्तियों तथा भौतिक परिस्थितियों का सृजन करती हैं इस तथ्य को, थोड़ा अधिक गहराई से विचार करने पर सहज ही जाना जा सकता है और उसके अनेकों प्रमाण पाये जा सकते हैं।
समझा जाता था कि वर्षा होने से वृक्ष वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं, पर पाया यह गया है कि वृक्षों की आवश्यकता उधर उड़ने वाले बदलों को पकड़ कर घसीट लाती हैं और उस अपने क्षेत्र पर बरसाने के लिए उन्हें बाध्य करती हैं। कुछ दिन पूर्व जहाँ बड़े रेगिस्तान थे पानी नहीं बरसता था और बादल उधर से सुखे ही उड़ जाते थे, पर अब जब वहाँ बन लगा दिये गये हैं तो प्रकृति का पुराना क्रम बदल गया और अनायास ही वर्षा होने लगी है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के बारे में अब यह नया सिद्धान्त स्वीकार किया गया है कि वहाँ की वन सम्पदा बादलों पर बरसने के लिए दबाव डालती है। बादलों की तुलना में चेतना का अंश वृक्षों में अधिक है इसलिए वे विस्तार में बादलों से कम होते हुए भी सामर्थ्य में अधिक है। अतएव दोनों की खींचतान में चेतना का प्रतिनिधि वृक्ष ही भारी पड़ता है।
आत्म-रक्षा प्राणियों की एक महती आवश्यकता है। जीवों में जागरुकता और पराक्रम वृत्ति को जीवन्त बनाये रखने के लिए प्रकृति ने शत्रु पक्ष का निर्माण किया है। यदि सभी जीवों को शान्तिपूर्वक और सुरक्षित रहने की सुविधा मिली होती तो फिर वे आलसी और प्रमादी होते चले जाते उनमें जो स्फूर्ति और कुशलता पाई जाती है वे या तो विकसित ही न होतीं या फिर जल्दी ही समाप्त हो जाती।
सिंह, व्याघ्र, सुअर, हाथी, मगर आदि विशालकाय जन्तु अपने पैने दाँतों से आत्म-रक्षा करते हैं और उनकी सहायता से आहार भी प्राप्त करते हैं। साँप, बिच्छू, बर्रे, ततैया, मधुमक्खी आदि अपने डंक चुभो कर शत्रु को परास्त करते हैं। घोंघा, केंचुआ आदि के शरीर से जो दुर्गन्ध निकलती है उससे शत्रुओं को नाक बन्द करके भागना पड़ता है। गेंडा, कछुआ, सीपी, घोंघा, शंख, आर्मेडिलो आदि की त्वचा पर जो कठोर कवच चढ़ा रहता है उससे उनकी बचत होती है। टिड्डे का घास का रंग, तितली फूलों का रंग, चीते पेड़-पत्तों की छाया जैसा चितकवरापन निरगिट मौसमी परिवर्तन के अनुरुप अपना रंग बदलता है। ध्रुवीय भालू बर्फ जैसा श्वेत रंग अपनाकर समीपवर्ती वातावरण में अपने को आसानी से छिपा लेते हैं और शत्रु की पकड़ में नहीं आते। कंकड़, पत्थर, रेत, मिट्टी, कूड़ा-करकट आदि के रंग में अपने को रंग कर कितने ही प्राणी आत्म-रक्षा करते हैं। शार्क मछली बिजली के करेन्ट जैसा झटका मारने के लिए प्रसिद्ध है। कई प्राण्यों की बनावट एवं मुद्रा ही ऐसी भंयकर होती है कि उसे देखकर शत्रु को बहुत समझ-बूझकर ही हमला करना पड़ता है।
शिकारी जानवरों को अधिक पराक्रम करना पड़ता है इस दृष्टि से उन्हें दाँत, नाखून, पंजे ही असाधारण रुप से मजबूत नहीं मिले वरन् पूँछ तक ही अपनी विशेषता है। यह अनुदान उन्होंने अपनी संकल्प शक्ति के बल पर प्रकृति से प्राप्त किये हैं।
शेर का वजन अधिक से अधिक 400 पौंड होता है जबकि गाय का वजन उससे दूना होता है। फिर भी शेर पूँछ के सन्तुलन से उसे मुँह में दबाये हुए 12 फुट ऊँची बाड़ को मजे में फाँद जाता है।
प्राणियों की शरीर रचना और बुद्धि संस्थान भी अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है, पर उनकी सबसे बड़ी विशेषता है संकल्प शक्ति, इच्छा तथा आवश्यकता। यह सम्वेदनाएँ जिस प्राणी की जितनी तीव्र हैं वे उतने ही बड़े अनुदान प्रकृति से प्राप्त कर लेते हैं। मनुष्य को जो विभूतियाँ उपलब्ध हैं उनका कारण उसकी बढ़ी हुई संकल्प शक्ति ही मानी गई है।