Magazine - Year 1975 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
क्या बन्दर सचमुच हार गया?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अमेरिका में लड़े गये उस मुकदमें को लोग कभी भी भूल न सकेंगे जो देखने में जरा-सा था, पर उस पर ध्यान उस देश के लोगों का ही नहीं, सारी दुनिया का आकर्षित हुआ। उसके समाचार विश्व की अति महत्व पूर्ण घटनाओं की तरह संसार भर में मोटी सुर्खियों के साथ तब तक छपने रह्वहे जब तक कि मुकदमा अदालत में चलता रहा। यह मुकदमा “मंकी ट्रायल” के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
मुकदमा जानस्कोप्स नामक एक अध्यापक पर चला। वह टेनेसी राज्य के एक छोटे से कस्बे ‘डेटन’ में जीव विज्ञान पढ़ाता था। उस राज्य के सरकारी कानून में यह प्रतिबन्ध था कि स्कूलों में जो कुछ पढ़ाया जाय वह बाइबिल के प्रतिपादनों के अनुरुप ही होना चाहिए। उससे भिन्न या विपरीत नहीं।
जीवन विकास के सम्बन्ध में आधुनिक विज्ञान की मान्यता है कि उसका विकास छोटे जीवों से हुआ है और वह क्रमशः बढ़ते-बढ़ते उन उच्चस्तर के प्राणियों तक बढ़ा है जिनमें से एक मनुष्य भी है। पुरातन पंथियों की मान्यता इससे विपरीत है। वे कहते हैं मनुष्य ऊपर से उतरा-आसमान से टपका और जमीन पर आ गिरा। नीचे से ऊपर उठने की परम्परा रही है अथवा ऊपर से नीचे गिरने की। यह प्रमुख मतभेद है पुरातन पथियों और नवीन विचारकों में। यह मतभेद उस छोटे स्कूल में भी उधर आया। जीव विज्ञानी जानस्कोप अपना विषय पढ़ाता था। स्कूली पाठ्य-क्रम बाइबिल के अनुसार निर्धारित थे सो पढ़ाता तो वह उन्हें भी था, पर साथ ही यह भी कह देता था कि मेरा इन बातों पर विश्वास नहीं है। मेरी मान्तया तो इस समर्थन में जाती है कि जीवन नीचे से ऊपर उठा है और वह क्रमशः जायगा। मेरी समझ यह नहीं कहती कि हम ऊपर से नीचे गिरे है और इस पतन क्रम के गर्त में निरस्तर अधिक गहरे गिरते चले जायेंगे।
एक दिन की मामूली सी घटना थी। रेप्पेलीए नामक एक इंजीनियर किसी पादरी से बहस में उलझ पड़ा और कहने लगा ‘जीवन विकास के सम्बन्ध में डार्विन का विकासवाद सही है।’ पादरी बाइबिल की बातें तो कहता, पर कोई तर्क संगत उत्तर न दे पाता। अस्तु उसने स्केल के जीव विज्ञान शिक्षक को अपने समर्थन के लिए बुला भेजा ताकि वह इन्जीनियर को परास्त कर सके। स्कोप्स आया तो पर उलटे इन्जीनियर की बात का ही समर्थन करने लगा। इसने यही कहा-इन्जीनियर का कथन सही र्है। जीवन नीचे से ऊपर को उठा है।
इस पर पादरी झल्ला गया। एक धार्मिक राज्य में, निर्धारित धर्म मान्यताओं के विरुद्ध कोई अध्यापक मतभेद रखे और छात्रों में भी अनास्था पैदा करेः यह सहन नहीं किया जा सकता। सीधा तरीका तो यह था कि अध्यापक को नौकरी से निकाल दिया जाता, पर बात कुछ अन्य प्रकार की बन गई। स्कूल के अधिकारियों ने यह उचित समझा कि अध्यापक पर अदालत में मुकदमा चलाया जाय और उसे दंडित कराके यह जाहिर किया जाय कि ऐसा करना अपराध है और जो अपराध करेगा वह दंड भुगतेगा। निदान 7 मई 1925 को वह मुकदमा अदालत में दायर कर दिया गया।
कानूनी प्रश्न तो इतना भर था कि टेनेसी राज्य के प्रचलित कानून का उल्लंघन जिस अध्यापक ने किया है उसे दण्ड दिया जाय। पर उसकी पृष्ठ-भूमि बहुत बड़ी थी। मुख्य विवाद धर्म और विज्ञान के बीच था। पूर्व मान्यताएँ ही ठीक मानी जाती रहें या जो बुद्धि संगत है। उसे स्वीकारा जाय। विवाद का मुख्य केन्द्र यहाँ आटिका। अदालत को गौर इस विषय पर भी करना था कि शिक्षण सही है गलत। अध्यापक अपना उत्तरदायित्व यथार्थ ज्ञान देने के रुप में निभा रहा है या नहीं। कानून का पालन एवं यथार्थ शिक्षण यह दो प्रश्न साथ-साथ जुड़ जाने से विवाद का विषय काफी बड़ा हो गया।
मुकदमा एक अध्यापक और स्कूल अधिकारियों के बीच उठे एक मामूली से विवाद का था, पर उसने बहुत बढ़ा रुप धारण कर लिया। विज्ञान पक्ष धरों का जोश उमड़ पड़ा और वे मुकदमे को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने की तैयारी करने लगे। दूसरी ओर भी जोश कम न था पुरातन पंथियों ने विवाद को, प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और अभियोग को सिद्ध करने के लिए पूरी तैयारी के साथ कमर कसकर खड़े हो गये। कोई पक्ष न झुकने को तैयार था न हारा मानने की। अस्तु मुकदमा पूरी तैयारी के साथ और पूरे जोश के साथ लड़ा गया। “सत्य की शिक्षा देने के लिए किसी अध्यापक को दंडित न होना पड़े” इसके समर्थन के लिए अमेरिका की नागरिक स्वतन्त्रता यूनियन ने मुकदमा लड़ने का निश्चय किया और सफाई पक्ष की ओर से अमेरिकाके सबसे प्रख्यात वकील क्लेरेंस डेरो खड़े किये गये। उस देश की धर्म संस्थाओं ने मिलकर वाकील पक्ष के वकील के रुप में डमोक्रेटिक पार्टी की ओर तीन बार राष्ट्रपति पद के लिए मनोनीत विलियम ब्राउन को खड़ा कर दिया।
मुकदमें ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। संसार भर के प्रमुख पत्रों के एक सौ से अधिक सम्वादाता नित्य अपने-अपने पत्रों के लिए खबरें भेजन के लिए हवाई जहाजों से उड़ कर आये। तारधर को 22 नये तार कर्मचारी नियुक्त करने पड़े और नई लाइनें बिछानी पड़ीं। प्रतिदिन प्रायः दो लाख शब्दों के समाचार वहाँ से भेजे लाने लगा। उस छोटे से कस्बे की आबादी मात्र डेढ़ हजार थी। लेकिन मुकदमे के दिनों देश के कोने-कोने से आये दिलचस्पी लेने वालों-विदेशी सम्वाददाताओं-तम्बुओं में बने होटलों और सरकार के व्यवस्था कर्मचारियों की इतनी भीड़ हो गई मानो अच्छाखासा मेला लगा हो।
प्रमुख वकील तो दोनों पक्षों के एक-एक ही थे किन्तु उनकी सहायता के लिए अमेरिका भर के चोटी के दर्जनों वकील आकर जमा हो गये। टेनेसी राज्य के एटर्नी जनरल टामस स्टीवर्ट स्वयं सरकार की ओर से मुकदमा लड़ने आये। ब्राइन अद्भुत वक्ता थे और भी सभी कई वकील चोटी के थे जो अपराध सिद्ध करने में ऐडी चोटी का पसीना एक कर रहे थे। सफाई पक्ष में डैरो के अतिरिक्त उडलेफील्डमेलन और अर्थिर गारफील्ड हैज ऐसे थे जिन्हें अमेरिका के अदालती क्षेत्र का प्रत्येक व्यक्ति भली प्रकार जानता था। इन लोगों की उन दिनों धाक थी। दोनों पक्ष के गवाहों में विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों से लेकर वैज्ञानिकों धर्माध्यक्ष, संसद सदस्यों तथा दूसरे मूर्घन्य लोगों की लम्बी नामावली थे। वे सभी बारी-बारी गवाहियाँ देने आये। मुकदमा काफी समय तक चला। किन्तु आर्श्चय इस बात का था कि मुख्य न्यायाधीश जान काल्स्टन ही एक कानूनी बरीकियों को समझते थे। जूरी 12 थे। उनमें से तीन तो ऐसे थे जिनने बाइबिल के अतिरिक्त और कोई पुस्तक ही नहीं पढ़ी थी। एक बिलकुल अनपढ़ था। शेष ऐसे ही अर्ध शिक्षित थे।
दोनों पक्षों की ओर से जोरदार बहसें की गई अनौखे तर्क दिये गये और वक्तृताओं की ऐसी धारा बहारई गई कि उसे सुनना भर श्रोताओं के लिए एक बहुत बड़ा दिलचस्प कौतूहल था। हजारों की संख्या में लोग उन बहसों को सुनने मात्र के लिए दूर-दूर से आकर वहाँ जमा हुए।
बहस के कुछ स्फुट प्रसंग लोगों की नोटबुकों में अभी तक लिखे हैं। सफाई पक्ष के वकील डेरो ने अदालत को सम्बोधित करते हुए कहा था-आज सत्य की शिक्षा देने से अध्यापक रोके जा रहे हैं, कल वैसा साहित्य प्रकाशित करने पर रोक लगाने के और परसो सोचने या बोलने पर प्रतिबंध लगाये जायँगे और हमें उस सोलहवीं सदी में धकेल दिया जायगा जिसमें ज्ञान की चेतना उत्पन्न करने वालों को धर्माध लोगों द्वारा सरेआम जीवित जला दिया जाता था।’
वादी पक्ष के ब्राइन ने कहा-युगों से धर्म चेतना उत्पन्न करने वाली ईश्वरी पुस्तक बाइबिल को आज की गलत पुस्तकें नहीं काट सकती। ईश्वर की कही हुई बातें झूठी नहीं हो सकतीं। बन्दर मनुष्यों का पूर्वज नहीं हो सकता।
मेलोन ने सचाई पर कोई बन्धन न लगाने का आग्रह करते हुए कहा-सत्य से किसी को नहीं लड़ना चाहिए। वह अजेय है। तथ्य भले ही पूर्वाग्रहों से भिन्न हों, पर उन्हें विवेक और न्याय का समर्थन मिलना चाहिए।
डेरो एक के बाद एक प्रश्न बड़ी गम्भीरता और संजीदगी से पूछते रहे। उनने ब्राइन से पूछा-आप तो बाइबिल पर अक्षरशः विश्वास करते हैं न?
ब्राइन बाइबिल पर अनेक लेख लिख चुके थे और सारगर्भित भाषण दे चुके थे। वकील की तरह बाइबिल विशेषज्ञ के रुप में भी उनकी ख्याति थी। उत्तर में ‘हाँ’ के अतिरिक्त और कुछ वे कह भी सकते थे।
डेरो ने बाइबिल का एक वाक्य पढ़ा-”और तब सुबह और शाम से मिलकर पहला दिन बना।” ----”सुरज की सृष्टि चौथे दिन हुई। और पूछा-क्या आप बता सकतें हैं कि-सूरज के बिना सुबह और शाम कैसे हुई? और जब सूरज था ही नहीं तो चार दिन बाद उसके उगने का हिसाब कैसे लगाया गया?”
डेरो ने दूसरा प्रश्न किया-बाइबिल के अनुसार आदम और हब्बा के वर्जित फल खाने के लिए बहकाने पर ईश्वर ने साँप को पेट के बल रेंगने का शाप दिया था। पर इससे पहले साँप किस प्रकार चलता था?
ब्राइन कोई उत्तर न दे सके मात्र बड़बड़ाते रहे और उन पर नास्तिक होने का आरोप लगाते रहे। तो भी धैर्य पूर्वक यही पूछते रहे-क्या आप सचमुच इन बातों पर विश्वास करते हैं जिन पर आज कोई भी बुद्धिमान विश्वास नहीं कर सकता।
मुकदमे का अन्त हुआ। अदालत ने एक छोटा-सा फैसला लिखा और उसे नौ मिनट में सुना दिया। “सौ डालर जुर्माना और मुकदमे के सरकारी खर्च की अदायगी।’
धर्म पक्ष के लोगों ने इस पर खूब खुशियाँ मनाई। पर विचारशील लोगों ने उस मुकदमे की जान भर कहा-विवाद की विजय के रुप में उसे नहीं स्वीकारा यहाँ तक कि प्रमुख प्रवक्ता ब्रायन भी अपने मन में वैसा ही मानते रहे और अपने बुद्धि कौशल की अनुपयुक्तता पर पश्चाताप करते हुए जीत के दो दिन बाद ही परलोकवासी हो गये।
डेटन का अब बहुत विकास हो गया है और वहाँ ब्रायन के नाम एक अच्छाखासा विश्वविद्यालय बना हुआ है। टेनेसी राज्य का वह पुराना कानून अभी भी मौजूद है जिसमें बाइबिल के मत से भिन्न कुछ भी नहीं पढ़ाया जा सकता। किन्तु वह कानून सिर्फ कागजों पर छपा रह गया है उसका प्रयोग नहीं होता। ब्रायन विश्वविद्यालय में भी डार्बन के विकासवाद को बिना किसी रोक-टोक के पढ़ाया जाता है। मिलान में मुकदमें के दौरान जो बौद्धिक की माँग की थी और अदालत से कहा था-’सत्य से किसी को नहीं लड़ना चाहिए-वह अजेय है। तथ्य भले ही पूर्वाग्रहों से भिन्न हो, पर उन्हें विवेक और न्याय का समर्थन मिलना चाहिए। यह माँग उस समय जानराल्स्टन की अदालत ने स्वीकार नहीं की थी, पर आज विवेक की अदालत ने उसे स्वीकार कर लिया है यही कारण है उन्हीं पुराने कानूनों की-उसी प्रबल समर्थक ब्रायन के नाम पर चलकर विश्वविद्यालय में ही खुली अवज्ञा हो रही है। यद्यपि पूर्वाग्रह अपने स्थान पर अभी भी यथास्थान जमे बैठे हैं।
‘मंकी ट्रायल’ मुकदमा देखने को जन-साधारण की इच्छा को देखते हुए एक प्रख्यात फिल्म बना है-”इन हेरिट दी विड” यह फिल्म संसार भर में बड़े चाव से देखी गई है। मुकदमे में हारा हुआ डार्विन का बन्दर फिल्म के पर्दे पर जन विवेक से यह पूछता दिखाया गया है बताइए मेरा नीचे का ऊपर चढ़ना ठीक है या परम्परा वादियों के अनुसार मुझे ऊपर से नीचे गिराने की बात सीखनी चाहिए।