Magazine - Year 1975 - Version 2
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Language: HINDI
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ब्रह्माण्डीय प्राण-चेतना का मिलन अब निकट ही है
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पृथ्वी से बाहर के ग्रह-नक्षत्रों में जीवन की सम्भावना पर चिरकाल से विचार होता चला जाता है। उपलब्ध प्रमाण सामग्री के आधार पर दावे के साथ तो नहीं कहा जा सका, पर आशा यही बँध रही थी कि ‘जीवन’ अकेली पृथ्वी की ही बपौती नहीं हो सकता उसका अस्तित्व अन्यत्र भी हो सकता है और है।
इस दिशा में अधिक उत्साहवर्धक प्रयास आरसिवाँ दक्षिण अमेरिका के प्यूरटोरिकन कस्बे में स्थापित एक वेधशाला के द्वारा प्रारम्भ हुआ है। इस वेधशाला का नाम ‘नेशनल एस्ट्रोनामी एण्ड आयोनोस्फियर सेन्टर’ है। इसमें 1000 फुट व्यास की रेडियो दुर्वीन लगाई गई है और साथ ही शक्तिशाली रेडर ट्रान्समीटर फिट किये गये हैं। यह स्थापना अपने ढंग की अनोखी और अत्यन्त शक्तिशाली है।
नई नये दूरवीक्षण संयंत्र के सहारे अब बुध, शुक्र, मंगल और चन्द्रमा के कुछ हिस्सों को अधिक स्पष्ट रुप से देख सकना सम्भव हो गया है। इन दिनों मंगल की खोजबीन इसलिए की जा रही है कि अमेरिका अपना ‘बाइकिग-ए’ राकेट सन् 1976 में मंगल को धरती पर उतारने का निश्चय कर चुका है। उसके उतरने का स्थान चुनने के लिए स्थान का चुनाव अभी से करना होगा।
इस संयंत्र द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड के लिए सौरमण्डल का नकशा, मानव शरीर की रचना और प्रकृतिगत परिस्थितियों की आरम्भिक जानकारी प्रसारित की गई है, ताकि यदि मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी कहीं रहते हों और उनका ज्ञान इसी सीमा तक विकसित हो गया हो तो वे इन संकेतों को समझकर तदनुकूल उत्तर दें और पृथ्वी से सर्म्पक बनाने का प्रयत्न करें।
कारनेल विश्वद्यालय की वेधशाला के निर्देशक और प्रख्यात खगोल शास्त्री डा. कार्ल एडवर्ड स्वाँगा विशेष रुप से प्रयत्नशील है। उन्होंने एक अन्तर्ग्रही भाषा के रुप में ‘मैसेज वायनरी’ का आविष्कार किया है जिसके सहारे रेडियो विज्ञान के जानकार किसी भी लोक में रहने वाले प्रेसित विचारों को समझ सकेंगे और इसी आधार पर उत्तर दे सकेंगे। यह भाषा चित्र प्रधान है।
हार्बर्ट विश्वविद्यालय के फिलिप मारसिन-शिकागो विश्वविद्यालय के स्टेनले मिलर के सहयोग से ऐसी प्रयोगशाला बनाना सम्भव हो गया है जिसमें मंगल ग्रह जैसा वातावरण है उसमें ऐसे जीवाणुओं का विकास किया गया जो मंगल जैसी परिस्थितियों में निर्वाह कर सकें।
डा. साँगा और रुस के अन्तरिक्ष विज्ञानी इयोसेफ श्क्लोवस्की ने संयुक्त रुप से इस सर्न्दभ में एक पुस्तक लिखी है-’इन्टिटेलिजेन्ट लाइफ इन दि युनिवर्स’। इसमें अन्तर्ग्रही जीवन की सम्भावना उसके स्वरुप एवं पृथ्वी निवासियों के साथ सर्म्पक के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया है। यदाकदा उड़न तश्तरियों जैसे तथ्य सामने आते रहते हैं और उनसे अन्तर्ग्रही सर्म्पक का आभास मिलता है। ऐसे प्रमाणों की गहरी छान-बीन करने में ‘अमेरिकन ऐसोसियेशन फार दि एडवाँसमेण्ट आप साँइस’ नामक संस्था संलगन है, उसकी शोधें भी इस सम्भावना को बल देती है कि ब्रह्माण्ड में अन्यत्र भी जीवन है और कितने ही ग्रहों पर पृथ्वी से भी अच्छी स्थिति मौजूद है।
यह मान्य तथ्य है कि हम विकसित हो रहे हैं। अभी यह विकास क्रम विज्ञान के आधार पर भौतिक क्षेत्र में बढ़ा है और उसने कई प्रकार के सुख साधन प्रस्तुत किये हैं। अगले दिनों अध्यात्म सक्रिय होगा और विचारणा तथा भावना की विभूतियाँ भी उस उपलब्ध होंगी। ज्ञान और विज्ञान का उभय-पक्षीय विकास हमें अपूर्णता से पूर्णता की ओर अग्रसर करेगा। इस मार्ग पर चलते हुए मनुष्य अपने अन्य सजातीयों को इस निखिल ब्रह्माण्ड में कहीं न कहीं से खोज ही लेगा। जब ब्रह्माण्डीय मानव चेतना एक जुट होकर कुछ अच्छा सोचने और कुछ अच्छा करने में प्रवृत्त होगी तो निश्चय ही यह संसार बहुत सुन्दर सुहावना दृष्टिगोचर होगा।