Magazine - Year 1979 - January 1979
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Language: HINDI
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न यंत्र न विज्ञान फिर भी दूरवर्ती का ज्ञान
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शरीर के एक भाग में चोट पहुंचती है तो पूरे शरीर को इसकी तत्काल सूचना पहुंच जाती है और प्रत्येक अंग अपनी सामर्थ्य के अनुसार संकटग्रस्त अंग की सहायता के लिए तत्पर हो जाते हैं। पैर के अँगूठे में घाव हो जाने पैर आँख में आँसू, चेहरे पर घबड़ाहट, हाथ में कंपकंपी और मस्तिष्क में विचार, समस्याओं से उबरने के उपाय उत्पन्न होने लगते हैं। इसका कारण यह है कि पूरा शरीर एक ही चेतना से ओतप्रोत है। परन्तु यह भी नहीं मान लेना चाहिए कि वह चेतन सत्ता केवल शरीर तक ही सीमित है। शरीर के बाहर भी वह चेतना अखिल विश्व ब्रह्माण्ड में व्यास है और अपने शरीर में विद्यमान चेतना को परिष्कृत, निर्मल तथा विशुद्ध बनाया जा सके तो संसार के किसी भी कोने में घटने वाली घटना का तत्काल पता लगाया जा सकता है जैसे वह अभी ही आँखों के सामने घट रही हो।
सैकड़ों मील दूर टेलीविजन स्टेशन पर कोई फिल्म का दृश्य दर्शाया जाता है और वह दूर पड़े टी.वी. सैट पर ज्यों का त्यों देखा जा सकता है। रेडियो से हजारों मील दूर स्थित रेडियो स्टेशन पर प्रसारित समाचारों, सूचनाओं और विवरणों को शब्दशः सुना जा सकता है। आधुनिक विज्ञान ने जड़ साधनों द्वारा भी हजारों मील दूर संपर्क सूत्र तत्काल स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली है फिर चेतना तो उससे हजार गुना समर्थ और लाख गुना शक्तिशाली है।
महाभारत का युद्ध कहीं लड़ा जा रहा है और अन्धे धृतराष्ट्र के पास राजमहल में बैठा संजय युद्ध का आँखों देखा विवरण बता रहा होता है। दूरबोध-परोक्ष दर्शन की सैकड़ों घटनायें शास्त्रों में भरी पड़ी हैं। प्रत्येक धर्म के इतिहास में इसके प्रमाण बिखरे पड़े है परन्तु आधुनिक विज्ञान का ध्यान करीब 100 वर्ष पूर्व ही इस ओर गया था। दूरबोध (क्लेअरवायेन्स) की ही तरह चेतना के माध्यम से दो विभिन्न दूरियों के बीच सम्बन्ध सूत्र जोड़ने का एक और प्रकार है विचार सम्प्रेषण (टैलीपैथी)। ने लगभग 100 वर्ष पूर्व इंग्लैंड के वैज्ञानिक ए. ए. क्रीरी ने विचार संप्रेषण के सफल प्रयोग किये। इसके लिये उन्होंने कुछ छोटे-छोटे प्रयोग किये। इस प्रयोगों में उन्होंने अपनी पुत्रियों अथवा नौकरानियों को कमरे से बहार भेजकर कमरे के भीतर की किसी वस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। इन प्रयोगों के उत्साहजनक परिणाम सामने आये। बाहर गयी हुई युवतियों द्वारा दिये गये सही उत्तरों की संख्या इतनी अधिक पायी गयी कि उनके निष्कर्षों की ओर अनेक शोधकर्ताओं का ध्यान गया। डबलिन विश्वविद्यालय के प्रो. मर विलियम बैरट इंग्लैंड की सोसायटी फौर साइकिकल रिसर्च के अध्यक्ष प्रो. सिजविग व सोसायटी के सदस्यों ने भी क्रीरी के इन प्रयोगों की जाँच की और सामान्य अवस्था में भी विचार सम्प्रेषण को थोड़े से अभ्यास द्वारा सम्भव साध्य बताया।
रेडियो और टी. वी. कार्यक्रमों के प्रसारण में ध्वनि तथा दृश्य को तरंगों में रूपांतरित भर कर दिया जाता है। उन तरंगों को रेडियो या टी. वी. सैट पकड़ते हैं तथा वापस ध्वनि या दृश्य में बदल देते है। विचारों की तरंगें ध्वनि और प्रकाश की तरंगों से बहुत अधिक सूक्ष्म होती हैं। ध्वनि और दृश्य तो कान और आँखों से भी सुने, देखे जा सकते है। इस तरह उनका एक प्रकट स्वरूप भी है परन्तु विचार तो जब तक स्थूल माध्यमों द्वारा व्यक्त नहीं किये जाते तब किसी को उनका पता ही नहीं चलता। अर्थात् स्वरूपतः ही वे सूक्ष्म है और चेतना के निकट भी। पश्चिमी देशों में आजकल इस क्षेत्र में काफी शोध की जा रही है और इसमें काफी सफलता भी प्राप्त हो रही है। यह अनुभव किया जाने लगा है कि टेलीपैथी एकाग्रचित्त, ध्यान के केन्द्रित कारण तथा मानसिक शक्तियों की साधना से सिद्ध की जा सकती है। परन्तु परोक्ष (क्लेयरवायन्स) के सम्बन्ध में वैज्ञानिक अभी भी मौन है।
डा. एंडरीना पुहरिच ने, जो अमेरिका के सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक है, टेलीपैथी पर वर्षों तक कार्य किया तथा उनके आधार पर कुछ सिद्धान्त निष्पादित किये। उनके अध्ययन में आयी दो प्रमुख घटनायें इस प्रकार हैं। सॉलिनॉस (कैलीफोर्निया) निवासी श्रीमती हायेस ने सुबह होते होते एक सपना देखा। उनका पुत्र जॉन हायेस कार में घूमने जा रहा है। रास्ते में कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। जॉन का शरीर बहुत अधिक रक्त निकल जाने के कारण पीला पड़ गया है। जॉन लेटा हुआ है और उसका शरीर कपड़े से ढका है।” यह सपना देखकर श्रीमती हायेस की नींद टूट गयी और नीचे आकर उन्होंने सेंट जोंस स्टेट कॉलेज में फोन किया जहाँ जॉन पड़ता था। उस समय तक कॉलेज अधिकारियों को ऐसी किसी भी दुर्घटना की जानकारी नहीं थी। उन लोगों को यह भी मालूम नहीं था कि इस समय जॉन कहाँ है?
इस घटना का उल्लेख डा. एण्डरीना पुहरिच ने अपनी पुस्तक “वियाँण्ड टैलीपैथी” में किया है तथा लिखा है कि कॉलेज फोन करने के बाद भी श्रीमती हायेस का चित्त बेहद अशान्त रहा। बारह घण्टे बाद हायेस के फोन की घंटी बजी। हायेस ने फोन उठाया। फोन उसी कॉलेज से आया था और बताया जा रहा था कि कार दुर्घटना में जॉन को चोटें आयीं है। उस समय लगभग साढ़े पाँच बजे का समय था।
श्रीमती हायेस ने भी इस समय स्वप्न में दुर्घटना का आभास प्राप्त किया था। इस घटना और श्रीमती हायेस को हुए परोक्ष आभास की संगति के कारणों का अध्ययन करने के लिए डा. पुहरिच ने जॉन से पूछा कि क्या वह दुर्घटना के समय अपनी माँ के बारे में सोच रहा था तो जॉन का कहना था कि दुर्घटना इतने कम समय में हो गयी कि उसे पास अपनी माँ या किसी और बात के बारे में सोचने के लिए समय ही नहीं था।
इसी पुस्तक में एक और प्रामाणिक घटना का उल्लेख किया गया है। अमेरिका के ही बोस्टन शहर में जैक सुल्लीवान का एक मजदूर खाइयों में लगे पानी के पाइप ठीक करने का काम किया करता था एक दिन वह वाशिंगटन स्ट्रीट में अकेला खाई में पाइप की बैल्डिंग कर रहा था। काम का समय समाप्त हो गया था। तभी खाइयों को बन्द करने वाला एक दस्ता वहाँ आया और उन्होंने यह समझकर कि खाई में कोई नहीं है, खाई को बन्द कर दिया। सुल्लीवान उसी खाई में दब गया।
उस स्थान के पाँच मील दूर काम कर रहे सुल्लीवान के मित्र वेल्डर टामी विटकर को अचानक इस प्रकार की कल्पना आयी कि उसके मित्र को खाई में बन्द कर दिया गया है। टामी का कहना था कि पता नहीं किस प्रकार यह विचार मेरे दिमाग में आया और काम करते-करते ही मैं सोचने लगा कि वाशिंगटन स्ट्रीट जाऊँ और अपने मित्र के बारे में मालूम करूं। मैं वाशिंगटन स्ट्रीट पहुँचा तो मैंने देखा कि वास्तव में गलती से सुल्लीवान खाई में दब गया है और इस बात का किसी को पता नहीं चल सका है। टामी ठीक समय पहुँचा था, उस समय सुल्लीवान अपने जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था। सुल्लीवानं को खाई खोद कर बचा लिया गया।
“बियाण्ड टैलीपैथी” में डा. पुहरिच ने बताया है कि शरीर की दो अवस्थाएँ दूरवर्ती घटनाओं का आभास करा देती है। पहली दशा को “कोलिनर्जिया” कहा गया है जिसमें शरीर पूर्णतः शिथिल होता है तथा व्यक्ति आराम कर रहा होता है। दूसरी दशा को “एडरेनजिया” बताया गया है, उस स्थिति में शरीर पूरी तरह तनावग्रस्त रहता है। ऐसी स्थिति में शरीर या चेतना सन्देशों का संप्रेषण करती है।
योग साधनाओं द्वारा मनुष्य वह सामर्थ्य भी विकसित कर लेता है जिसमें एक स्थान पर बैठे-बैठे ही दूरवर्ती स्थानों पर क्या हो रहा है? यह जान लेता है। उस स्थिति में व्यक्ति की चेतना शरीर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि विराट चेतना से एकाकार हो जाती है। जिस प्रकार अँगूठे में आयी चोट की सूचना मस्तिष्क को और वहाँ से रोम-रोम तक पहुँच जाती है, उसी प्रकार विश्व ब्रह्माण्ड के किसी भी क्षेत्र में घटने वाली घटना का प्रभाव वहीं तक सीमित नहीं रह जाता। पानी में फेंके गये ढेले के कारण उठने वाली लहरों की तरह उसकी तरंगें सर्वत्र व्याप्त हो जाती हैं। योग साधनाओं द्वारा परिष्कृत अन्तःकरण और निर्मल चित्त हुए व्यक्ति उन तरंगों को पकड़ने में समर्थ हो जाते हैं। अनायास होने वाली परोक्ष अनुभूतियाँ चेतना की इसी सामर्थ्य का परिचय देती है और व्यक्ति को जड़ में ही उलझे न रहकर उससे भी सामर्थ्यवान चेतन को विकसित करने की प्रेरणायें देती हैं।