Magazine - Year 1981 - Version 2
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Language: HINDI
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सपने पढ़िये गुत्थियाँ सुलझाइये
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अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. आट्टो लोबी सत्रह वर्षों से यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि भ्रूणावस्था में शारीरिक तंतुओं की क्रियाविधि कैसी होती है? इस सम्बन्ध में आम धारणा यह थी कि शारीरिक तन्तु सूक्ष्म विद्योत्तन द्वारा स्नायुओं के उत्तेजना प्रदान करते हैं। लेकिन यह धारणा वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्ध नहीं की जा सकी थी। डा. लोबी का विचार था, यह उत्तेजना स्नायुओं में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के कारण होती है। लेकिन इसकी परीक्षा किस प्रकार की जाय? उसका कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। डा. लोबी इस उधेड़बुन में तेरह वर्ष से लगे हुए थे और प्रयोग पर प्रयोग किये जा रहे थे। न यह धारणा सही सिद्ध हो रही थी और न ही प्रयोगों से यह बात प्रामाणित हो रही थी कि यह धारणा गलत है।
सन् 1920 का ईस्टर मई आया, ईस्टर की पूर्व रात्रि को जब वे सोये तो उन्होंने एक स्वप्न देखा। स्वप्न बहुत विचित्र था और उनके प्रयोगों से ही सम्बन्धित था। जब उनकी नींद खुली और स्वप्न की याद आई तो उन्होंने सपने में देखे गये सभी तथ्यों को नोट कर लिया। नहाधोकर ताजादम होने के बाद उन्होंने नोट किये तथ्यों को देखा तो आश्चर्य में पड़ गये कि प्रयोग सम्बन्धी तथ्य उनके वैज्ञानिक अवधारणा से ही सम्बन्धित थे। जल्दी-जल्दी में उन्होंने स्वप्न से सम्बन्धित जो बातें नोट की थीं, उनमें से बहुत-सी बातें नोट करना भूल गये थे और बात अधूरी रह गयी थी। इसके बाद वे दोपहर तक उस स्वप्न के सम्बन्ध में ही विचार करते रहे।
दोपहर का भोजन करने के बाद जब वे सोये तो उन्होंने दुबारा वही स्वप्न देखा और अब की बार उन्हें वह सपना हूबहू याद रहा। इस बार उन्होंने जरा भी भूल नहीं की और स्वप्न को अक्षरशः नोट कर लिया। प्रयोगशाला में जाकर उन्होंने स्वप्न के आधार पर प्रयोग आरम्भ किया। यह प्रयोग एक मेंढक पर किया गया और प्रथम प्रयास में ही उनकी धारणा सत्य सिद्ध हुई। इसके बाद तो उन्होंने यह प्रयोग कई बार दोहराया और हर बार उनकी धारणा पुष्ट होती चली गयी। इस प्रयोग से चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा नया अध्याय जुड़ा जिसने हृदय रोगियों के उपचार की एक नयी दिशा ही खोल दी। इस खोज के लिए उन्होंने सन् 1936 में जीव विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भी मिला।
डा. लोबी का कहना था कि पुरस्कार का सारा श्रेय उनके अवचेतन मन को है जिसने स्वप्न के रूप में एक नयी सम्भावना को जन्म दिया। तो क्या स्वप्न सचमुच कभी-कभी अविज्ञात की अनुकम्पा के आधार बन जाते हैं? अब तक तो मनःशास्त्री यही मानते रहे थे कि स्वप्नों के माध्यम से मानव मन अपनी दमित इच्छाओं की पूर्ति करता है। स्वप्न मन की अतृप्त वासनाओं और कामनाओं की पूर्ति मात्र का उपक्रम है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। लेकिन इस बात से हजारों प्रमाण हैं कि स्वप्न केवल मन का क्रीड़ा कल्लोल मात्र नहीं, वरन् उसके माध्यम से व्यक्ति पर अविज्ञात का अजस्र अनुदान भी बरसता रहता है। डा. लोबी के समान ही सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई एजासिज ने भी स्वप्न के आधार पर एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज की। उन्होंने मछली के जीवाश्मों को पत्थर पर ढालने में सफलता, एक जीवाश्म की अनुकृति को स्वप्न में देखने के बाद ही पायी।
प्रसिद्ध गणितज्ञों ने स्वप्न में ही अनेक जटिल गणितीय समस्याओं का हल किया है। कुछ वर्ष पूर्व फ्राँस के गणितज्ञ हेनरी फौरा ने विश्व भर में फैले अपने कई सहयोगियों से पूछा कि आप गणित की जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए कौन-सी विधि अपनाते हैं, मनन चिन्तन की अथवा अपने साथियों से विचार विमर्श की? यह प्रश्न सतहत्तर गणितज्ञों से पूछा गया था। आश्चर्य है कि सतहत्तर मे से इक्यावन ने इसका उत्तर दिया था कि उन्हें अपने गणित सम्बन्धी प्रश्नों को समझाने में स्वप्न एवं अपने अचेतन से सहायता मिलती है।
महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक आइन्स्टीन से एक बार पूछा गया था कि आपकी सृजनात्मक प्रक्रिया का क्या रहस्य है? उत्तर में आइन्स्टीन का कहना था कि सोते समय स्वप्न में एक ऐसी स्थिति आती है जब बुद्धि एक लम्बी-सी छलांग लगाकर बोध के उच्चतर स्तर पर पहुँच जाती है। संसार के अधिकाँश वैज्ञानिक आविष्कार इसी स्थिति में सम्भव हुए हैं। उनका विश्वास था कि गणित और विज्ञान की सहायता से यह सिद्ध किया जा सकता है कि यह जगत एक स्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं है। अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने पत्रिका ‘लाइफ’ के प्रतिनिधि को एक भेंटवार्ता में कहा था कि “पूरी सच्चाई और ईमानदारी के साथ कौन यह कह सकता है कि हम जो एक वृक्ष देख रहे हैं वह सचमुच ही वृक्ष है? वह एक स्वप्न भी तो हो सकता है।
आइन्स्टीन का यह कथन भारतीय दर्शन की उस मान्यता के निकट ही है जिसमें इस जगत को स्वप्न बताया गया है और ब्रह्म मात्र ही सत्य बताया गया है। ईश्वर का ही परम अस्तित्व मानकर जगत को उसी की कल्पना का, संकल्प विकल्प की क्रीड़ा कल्लोल मानने वाले सिद्ध सन्तों को मनःस्थिति दृश्य और स्वप्न में कोई विशेष अन्तर नहीं करती।
स्वप्नों की भाषा क्या है? वह व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा से सर्वथा भिन्न है। व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा तो मनुष्य द्वारा अपनी सुविधा के लिए गढ़ी गयी है और वह बाह्य आदान-प्रदान तक ही सीमित रहती है। उसे चेतन मन द्वारा आविष्कृत या गढ़ी हुई भाषा कहा जा सकता है जबकि सपने अवचेतन की व्यवस्था में आते हैं। जागृत अवस्था में जो व्यवहार किया जाता है, जो क्रिया-कलाप सम्पन्न किये जाते हैं वे चेतन की व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं और सपने अवचेतन की व्यवस्था में आते हैं। अस्तु, सपने अवचेतन की भाषा में बोलते हैं और भाषा प्रतीकात्मक होती है।
यद्यपि प्रतीकात्मक भाषा को समझना कोई दुरूह नहीं है। उसके लिए आवश्यकता केवल पर्यवेक्षण, निरीक्षण और अभ्यास की है। इसके अभाव में स्वप्नों को समझ पाना सम्भव नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति के अपने संस्कार होते हैं, अपनी मान्यताएं होती हैं और अपनी भावनाएं होती हैं। अपनी कल्पनाओं और संस्कारों के अनुरूप ही मनुष्य का अवचेतन प्रतीक गढ़ता है। ये प्रतीक प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने अलग-अलग होते हैं। इसलिए इस संदर्भ में कोई सर्वमान्य और सब पर लागू होने वाला प्रतिपादन नहीं दिया जा सकता। इसके लिए स्वयं ही अपने आप को पढ़ना और अपने व्यक्तित्व को समझना आवश्यक है।
पिछले दिनों आयरलैण्ड के पुलिस विभाग ने एक हत्या का मामला सपने के माध्यम से ही सुलझाया और उस आधार पर हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया। रोम की एमीलिया नामक युवती ने वर्षों पूर्व सपने में देखा कि एक अज्ञात युवक व युवती मिलकर एक गैरेज में उसके व्यापारी पति की हत्या कर रहे हैं। यात्रा पर गये पति को निर्धारित समय पर लौटते न देखकर, तीन दिन तक प्रतीक्षा करने के बाद एमीलिया ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पति के समय पर न लौटने तथा अपने स्वप्न के बारे में बताया। पुलिस अधिकारियों ने सपने में दिखाई पड़ने वाले युवक और युवती का हुलिया नोट कर लिया तथा उनकी और एमीलिया के पति की खोज आरम्भ कर दी। कुछ समय बाद एमीलिया द्वारा दिये गये स्वप्न के संकेतों के आधार पर उसके पति की लाश खोज निकाली गयी तथा हत्यारे युवक तथा युवती को गिरफ्तार भी किया जा सका।
स्वप्नों को अब न तो मन की कल्पनाओं से बुना- ताना-बाना कहा जा सकता है और न ही अकारण कौतूहल तथा असमंजस में डालने वाली मृग-मरीचिका। बात वस्तुतः इतनी छोटी नहीं है। उनके पीछे यह तथ्य और रहस्य सुनिश्चित रूप से छिपा हुआ है कि हमारे सूक्ष्म जीवन तथा भगवान के सूक्ष्म जगत की स्थिति को स्वप्नों के झरोखों में बैठकर देख सकना सहज सम्भव है।