Magazine - Year 1981 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मात्र विज्ञान नहीं सद्ज्ञान भी चाहिये
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
वैज्ञानिक क्षेत्र में एक नये तकनीक का विकास हुआ है जिसे ‘बायोनिक्स’ कहते हैं। इस पद्धति में हजारों शोध कर्ता प्रकृति का अध्ययन गहराई से करने में लगे हैं। बायोनिक्स में प्रकृति के सभी जीव-जन्तुओं का अध्ययन उनकी शारीरिक विशेषताओं का गूढ़ पर्यवेक्षण इसलिए किया जाता है कि उनके आधार पर नये प्रयोग परीक्षण किए जा सकें। इस क्षेत्र में लगे वैज्ञानिकों का कहना है कि जीव-जन्तुओं के क्रिया-कलापों में इंजीनियरिंग के महत्वपूर्ण सिद्धांत छिपे हैं। उनको समझा और अपनाया जा सके तो भौतिक क्षेत्र में मानव अब की अपेक्षा कई गुना आगे बढ़ सकता है।
शोध कर्ताओं का मत है कि मनुष्य ने मौलिक रूप से कुछ नहीं किया है। प्रकृति की नकल उतार कर प्रेरणा ग्रहण कर ही वह विकास की वर्तमान अवधि तक पहुँच सका है। बायोनिक्स के अध्ययन में लगे वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकृति संसार की सबसे कुशल प्रशिक्षक है। समय-समय पर वह मूक रूप से मनुष्य को पाठ पढ़ाती रहती है। उसकी प्रेरणा एवं प्रशिक्षण को सही रूप से जीवन में उतारा जा सके तो सर्वांगीण प्रगति का आधार बन सकता है।
अब तक की प्रगति की समीक्षा करने पर यह तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है कि इंजीनियरिंग क्षेत्र में जितना विकास हुआ है- वह प्रकृति के जीव-जन्तुओं की नकल मात्र है। मेढ़क की आँखों की संरचना एवं देखने की पद्धति पर आधारित अनेकों यन्त्रों का निर्माण हो चुका है। मेढ़क की यह विशेषता है कि वह जीवित कीटकों का ही भक्षण करता है। जीभ की परिधि में आने वाले कीटकों को ही उसकी आँखें देख सकती हैं। नीचे पड़े हुए मृत जन्तुओं पर प्रायः उसकी दृष्टि नहीं पड़ती है। एक प्रयोग में ‘जान्स होप’ और ‘हयूमर जोन’ नामक कीट शास्त्रियों ने मृतक मक्खियों का ढेर मेढ़क के पास लगा दिया। मक्खियों में गति न होने के कारण मेढ़क की आँखें उन्हें नहीं देख सकीं। उनकी आँखों की बनावट ऐसी होती है कि वे गतिशील वस्तुओं को ही देख पाती हैं तथा उन्हीं का सन्देश भी मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं। मेढ़क की आँख की संरचना एवं क्रिया-पद्धति के आधार पर मिलिट्री में मैप रीडिंग के लिए आँख बनाने में सफलता मिली है। अमेरिका की हवाई-सुरक्षा पद्धति जैसे ‘आटोमेटिक ग्राउन्ड इनवारन्मेट’ (ए.जी.ई) कहते हैं- ऐसे ही ‘राडार’ का प्रयोग किया जाता है। जिस प्रकार मेंढक की आंखें मात्र अपने दुश्मनों, एवं आहार को ही देखती हैं, उसी प्रकार ए. जी. ई. राडार भी कार्य करता है। सामान्यतया कई वस्तुएं आकाश में एक साथ दिखाई पड़ती हैं। बादल छोटी उल्काएं, पक्षी, हवाई जहाज आदि भी दिखाई पड़ने के कारण असुविधा बराबर बनी रहती थी। उड़ने वाले यान अपने हैं या दुश्मन के इस निर्धारण में पर्याप्त समय लग जाता है। इस असुविधा का हल निकल आया है- ए. जी. ई. राडार द्वारा। मेंढक की आँख के समान यह राडार मात्र दुश्मन के यानों का ही अंकन करता है। हवाई दुर्घटनाओं को रोकने एवं यानों के आवागमन पर समुचित निगरानी बनाये रखने के लिए भी मेढ़क की नेत्र पद्धति पर आधारित एयर ट्रैफिक रेडार स्कोप का निर्माण हुआ है।
रैटिल स्नेक एक विशेष प्रकार का सर्प होता है। वह अधिक गरम रक्त वाले जन्तुओं का ही शिकार करता है। तापमान जानने के लिए उसके मस्तिष्क पर एक विशेष सम्वेदनशील यन्त्र होता है जो एक डिग्री के हजारवें हिस्से तक का अन्तर माप सकता है। इस यन्त्र द्वारा वह ‘इन्फ्रारेड’ किरणों को भी ग्रहण कर सकता है। वैज्ञानिकों ने इसके अध्ययन से प्रेरणा लेकर ‘ऐन्टी एयर क्राफ्ट साइड विन्डर मिसाइल’ और मेगा-सटेलाइट का निर्माण किया है। इन यन्त्रों से सूक्ष्मतम ताप नापने की आवश्यकता पड़ती है। आज की विकसित इन्फ्रारेड सेन्सिंग पद्धति भी इन्हीं सिद्धांतों को आधार पर कार्य करती है। इन्फ्रारेड सेन्सिंग पद्धति द्वारा संसार के किसी भी कोने से छोड़े गये राकेट के विषय में कुछ ही क्षणों में पता लगाया जा सकता है। ‘कोनिकल चैम्बरविंग’ के निर्माण को देखकर मानवी मस्तिष्क की सराहना करने को मन करता है, पर इसके निर्माण की प्रेरणा भी पक्षियों से मिली है। आकाश में तेज गति से उड़ने वाले समुद्री पक्षियों के पंखों की संरचना को देखकर जहाजों में स्थिरता देने के लिए उक्त ‘विंग’ का निर्माण सम्भव हो सका है।
सामान्य से लेकर असामान्य भौतिक विज्ञान की उपलब्धियाँ प्रकृति प्रेरणाओं द्वारा ही प्राप्त हो सकी है। ‘बायोनिक्स’ की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि एलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में हुई है। अमेरिका के एअर वार्न इन्स्ट्रूमेन्ट लैबोरेटरी ने एक ऐसी कृत्रिम आँख बनायी है जो सामान्य कोशिकाओं से कैन्सर कोशिकाओं को पृथक दर्शाती है। उक्त सूक्ष्म दर्शक यन्त्र की प्रेरणा मानवी आँख से मिली है। लिंकन लैबोरेटरी एवं जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी ने एक ऐसे यन्त्र का निर्माण किया है जो मानवी आँख की क्रिया-पद्धति का अनुसरण करती तथा गतिशील वस्तुओं की वास्तविक दूरी का बोध करा सकती है।
कम्प्यूटर के निर्माण पर वैज्ञानिकों गर्व है, पर एक सामान्य कीड़ा कहीं उससे अधिक सक्षम एवं सक्रिय है। उड़ती हुई मक्खी को पकड़ने में शिकारी कीड़े को एक सेकेंड का बीसवाँ भाग लगता है। जो कि किसी भी कम्प्यूटर की क्रिया पद्धति से कही अधिक सशक्त है। “डा. बैरन मैकुबोला” इस कम्प्यूटर प्रणाली के मूर्धन्य वैज्ञानिक हैं। उनका कहना है कि “कम्प्यूटर जटिल मन्द बुद्धि वाले पशु होते हैं, उनमें सबसे पिछड़ी हुई चींटी जितनी भी मानसिक क्षमता नहीं होती है। जो कार्य चींटियाँ कर सकती हैं, वह शक्तिशाली कम्प्यूटर द्वारा भी संभव नहीं है।
मछली के फेफड़ों का अध्ययन किया जा रहा है कि उसमें ऐसी कौन-सी विशेषता है जिसके द्वारा पानी में रहते हुए भी ऑक्सीजन ग्रहण करती तथा कार्बनडाइआक्साइड छोड़ती है। इससे पनडुब्बियों के और परिष्कृत उपयोग में मदद मिलेगी। डाल्फिन मछली के मुँह के निकट एक विशेष प्रकार की इलास्टिक त्वचा होती है जिससे वह 90 प्रतिशत मुँह से खिंचाव को कमकर सकती है। यू. एस. रबर कम्पनी जहाजों एवं पनडुब्बियों के उपयोग के लिए डाल्फिन मछली से प्रेरणा लेकर ‘प्लाएबिल रबर स्किन’ के निर्माण में संलग्न है।
बायोनिक्स की शोध में विश्व के हजारों जीवशास्त्री, भौतिकविद्, रसायन शास्त्री, इलेक्ट्रानिक्स के विशेषज्ञ, इंजीनियर, गणितज्ञ लगे हुए हैं। वे जीवों की बायोलॉजिकल संरचनाओं के रहस्योद्घाटन करके भौतिक क्षेत्र में नवीन प्रयोग परीक्षणों में जुटे हैं। भौतिक प्रगति में प्रकृति प्रेरणाएं असामान्य रूप से सहायक सिद्ध हुई हैं। बुद्धिमान मनुष्य ने जीवों से भरपूर लाभ उठाया है और आगे भी उठायेगा।
पर प्रकृति प्रेरणाओं का एक और भी पक्ष है, जिसका अनुसरण कही अधिक आवश्यक है- जीव जन्तुओं का प्राकृतिक जीवन क्रम। सहजता, सरलता, उमंग, उत्साह से भरी दिनचर्या। कृत्रिमता से दूर हटकर स्वास्थ्य, प्रसन्नता एवं प्रफुल्लता से भरे जीवन के लिए मनुष्य को भी पशु-पशुओं की प्राकृतिक दिनचर्या से प्रेरणा लेनी होगी। न केवल जीव-जन्तुओं वरन् प्रकृति का प्रत्येक घटक मनुष्य को प्रेरणा देने में समर्थ है। स्वास्थ्य ही नहीं, मानवी एकता, समता, शुचिता, सहकार एवं सौहार्द्र को विकसित करने के लिए भी प्रकृति का अध्ययन करना होगा। सृष्टि की सुव्यवस्था एवं सन्तुलन प्रत्येक अणु, परमाणु के परस्पर सहकार सहयोग पर ही आधारित है। मानवी एकता एवं आत्मीयता का आधार भी यही है। मनुष्य ने प्रकृति की नकल द्वारा यांत्रिकीय प्रगति की है। शान्ति और संतोष से भरे, स्नेह आत्मीयता सौहार्द्र से, स्निग्धता, प्रसन्नता से ओत-प्रोत जीवन की प्राप्ति के लिए भी प्रकृति के परस्पर के सहकार सहयोग की प्रेरणाओं को भी अपनाना होगा। बायोनिक्स की उपलब्धियों का सही उपयोग वह तभी कर पायेगा।