Magazine - Year 1981 - Version 2
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Language: HINDI
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सफलता संकल्पवानों को मिलती है।
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परमात्मा ने मनुष्य को इस संसार में उन विभूतियों से विभूषित कर भेजा है, जो अन्य प्राणियों को प्राप्त नहीं हैं। उन विभूतियों का उपयोग कर ही वही आदिम काल की जंगली पिछली स्थिति से विकसित होकर आधुनिकतम सुविधा साधनों का विकास कर सका है। निश्चित ही सभ्यता और संस्कृति के विकास में थोड़े बहुत गिने-चुने प्रतिभाशाली व्यक्तियों का योगदान रहा है। अधिकांश व्यक्ति तो सामान्य क्रम से ढर्रे का जीवन ही व्यतीत करते रहे हैं। उन्हें अपने भीतर निहित शक्तियों और सम्भावनाओं पर विश्वास ही नहीं होता और वे दीन-हीन जीवन जीते रहते हैं। कई लोगों की मान्यता रहती है कि सफलता किन्हीं सौभाग्यशाली व्यक्तियों को ही प्राप्त होती है तथा उन्हें जन्म से ही अनुकूल परिस्थितियाँ मिलती हैं, जिनमें आगे बढ़ने के अवसर अनायास ही प्रस्तुत होते रहते हैं।
इस तथ्य को भूल जाना चाहिए कि अनुकूल परिस्थितियाँ और आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने वाली पृष्ठभूमि किन्हीं गिने चुने लोगों को ही प्राप्त होती है, जबकि अधिकांश व्यक्तियों को अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ता है और स्वयं के बलबूते पर ही प्रगति पर अग्रसर होना पड़ता है।
प्रस्तुत सफलता या प्रगति न अनुकूल परिस्थितियों पर निर्भर करती है और न उपयुक्त अवसरों पर। सफलता बहुत कुछ व्यक्ति के अपने आत्म-विश्वास और उस आधार पर संचित किये गए आत्मबल पर ही निर्भर करती है। यदि अपने भीतर, अपने शक्तियों के प्रति विश्वास कूट-कूट कर भरा हो तो कदाचित ही किसी को असफलताओं का मुँह देखना पड़े। असफलताओं का सामना तभी करना पड़ता है जब सामर्थ्य और साधनों का विचार न करते हुए ऐसे कदम उठा लिए जाते हैं जो विचारशीलता और विवेक की दृष्टि से उपयुक्त नहीं कहे जा सकते। इसके अतिरिक्त आत्मविश्वास का अभाव भी असफलता का एक कारण है। आत्मविश्वास का अर्थ अनियन्त्रित भावुकता नहीं है, वरन् वह उस दूरदर्शिता का नाम है जिसके साथ संकल्प और साहस भी जुड़ा रहता है। ऐसे आत्मविश्वासी जो भी काम करते हैं, उनमें न तो ढील-पोल होती है और न ही अनुत्तरदायित्व। इस स्तर के आत्मविश्वास को लेकर जो भी कार्य किये जाते हैं, उनमें पूरा मनोयोग, तन्मयता, तत्परता तथा परिश्रम का समावेश रहता है।
इस नीति को अपना कर कई व्यक्ति प्रतिकूलताओं में भी आशातीत प्रगति कर चुके हैं। अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्राहम लिंकन का नाम ऐसे व्यक्तियों में अग्रणी तौर पर लिया जा सकता है, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हुए भी सफलता के शिखरों का स्पर्श किया। उनका पालन-पोषण उनकी सौतेली माँ ने किया था। गरीबी और कठिनाइयों के बीच रहते हुए उसने अपने बेटे को ऐसी प्रेरणाएं दीं और उसके अन्तःकरण में ऐसे बीज बोये जिनके अंकुर लिंकन की शिक्षा और समझ को ही नहीं उसकी आत्मा को भी ऊँचा उठाते चले गए। उनमें पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने का ऐसा भाव उत्पन्न हुआ कि वे पुस्तकें प्राप्त करने के लिए मीलों पैदल चल कर जाते और अपने मित्रों से पुस्तकें माँगकर लाते। पढ़ने के बाद उसी प्रकार पुस्तक को वापस करने के लिए वापस जाते।
लक्ष्य के प्रति निष्ठा, लग्न और तन्मयतापूर्वक आत्मविश्वास के साथ अपने काम में लगे रह कर प्रगति करते हुए लिंकन न केवल अमेरिका के राष्ट्रपति बने, बल्कि उनकी गणना विश्व के महामानवों में की जाने लगी। इस बीच उन्हें कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ा, पर क्या मजाल कि उन्होंने अपने मन को छोटा किया हो। एक बार लिंकन से किसी ने उनकी उन्नति का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि जन्मदात्री न होते हुए भी जिससे मेरी निर्मात्री होने का कार्य पूरा किया, मैं अपनी उस माँ का हाथों बनाया गया एक खिलौना मात्र हूं।
ईसाई धर्म के प्रचारकों में पादरी इवाइटा मूडी का नाम उल्लेखनीय है। उनकी पत्नी बहुत कम पढ़ी-लिखी थी, पर वह चाहती थी कि मेरा पति पादरी बने और मूड़ी तो एकदम अनपढ़ थे, सो कम पढ़ी-लिखी श्रीमती मूड़ी ने अपने अनपढ़ पति को ही थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना सिखाया और उनमें धर्म प्रचार के प्रति लगन पैदा की। थोड़ा बहुत पढ़ लिखने और धर्म प्रचार के प्रति उत्साह उत्पन्न कर देने के बाद मूड़ी स्वयं अभीष्ट कार्य में प्रवृत्त हुए और रुचिपूर्वक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगे। अन्ततः पत्नी की प्रेरणा, प्रयत्न और प्रोत्साहन ने मूड़ी में इतना प्रचण्ड आत्म-विश्वास जागृत कर दिया कि उन्होंने उसके बल पर ईसाई जगत में असाधारण ख्याति तथा प्रतिष्ठा प्राप्त की।
अब तक जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं उनमें जिस वैज्ञानिक ने सबसे अधिक आविष्कार किये हैं उनका नाम है- टामस अल्वा एडीसन। विज्ञान के माध्यम से मनुष्य जाति को अपने अनुदानों से उपकृत करने वाले एडीसन बचपन में अति मंदबुद्धि बालक थे। स्कूल में भरती कराये जाने पर कुछ दिनों बाद अध्यापक ने एडीसन के माता-पिता को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया था कि आपके बच्चे का दिमाग पढ़ने-लिखने में जरा भी नहीं चलता है और इसलिए यह कभी पढ़ लिखकर योग्य नहीं हो सकेगा। बेहतर होगा कि आप इसे स्कूल से हटा लें, क्योंकि इसका प्रभाव अन्य बच्चों पर भी पड़ सकता है।
यह पत्र पढ़कर माता-पिता की आंखें भर आईं और एडीसन को स्कूल से हटा लिया। किन्तु माँ ने उसे ढाँढस बंधाते हुए कहा, कोई बात नहीं बेटा स्कूल में तुम पढ़ नहीं सकते। लेकिन तुम मंद बुद्धि नहीं हो। मैं स्वयं तुम्हें पढ़ाऊंगी। और माँ स्वयं अपने बेटे को पढ़ाने लगी। इस शिक्षण के साथ ही उन्होंने बालक एडीसन में ऐसे संस्कार भी बोये जिनके परिणाम स्वरूप उनकी प्रतिभा का अवरुद्ध स्त्रोत खुल गया और उसके जो परिणाम आये वे सबके सामने हैं। सर्वविदित है कि एडीसन की गणना विश्व के सर्वाधिक मूर्धन्य वैज्ञानिकों में सबसे पहले की जाती है।
अस्पताल की एक साधारण-सी नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के पास न साधन थे न सुविधाएं, पर उनके मन में रोगियों और दुर्घटनाग्रस्त लोगों के प्रति अपार वेदना का समाधान करने और घायलों, विपत्ति के मारे लोगों की सहायता सुश्रूषा करने के लिए उन्होंने रेडक्रास सोसायटी की योजना बनाई और संस्था के उद्देश्य तथा स्वरूप को लेकर बड़े-बड़े लोगों के पास गईं। नाइटिंगेल की स्थिति, सामर्थ्य और कार्य की गरिमा में इतना भारी अंतर देखते हुए लोगों ने उन्हें यही परामर्श दिया कि इस तरह की हवाई कल्पनाएं करना व्यर्थ है। अच्छा हो आप अपनी नौकरी ही ठीक−ठाक ढंग से करें और इसी में अपनी भावनाओं का संतोष खोजें। कइयों ने उन्हें प्रत्यक्ष रूप से भी निरुत्साहित किया परन्तु नाइटिंगेल हताश नहीं हुई। कहीं से भी कोई सहायता न मिलने पर उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम आरम्भ कर दिया और संस्था जब धीरे-धीरे विकसित होने लगी तो, वही लोग जिन्होंने नाइटिंगेल को आरम्भ में निरुत्साहित किया था, सहयोग की भावना लेकर आगे आए। यह लक्ष्य के प्रति निष्ठा और तन्मयतापूर्वक समन्वय का ही परिणाम है कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल द्वारा स्थापित रेडक्रास सोसायटी तथा उनका मिशन देशकाल की सीमाओं को लाँघकर विश्व भर में फैली हुई है और सार्वभौम बन गई है।
ऐसे हजारों उदाहरण हैं जिनसे सिद्ध होता है कि सफलता या असफलता परिस्थितियों पर नहीं, स्वयं अपने ऊपर निर्भर करती है। संकल्पशील और दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति जब काम करने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाते हैं तो उनके एक नहीं हजार हाथ हो जाते हैं। वह अपनी संकल्पशक्ति से अनुकूल परिस्थितियों तथा वस्तुओं को आकर्षित कर लेता है। इस चुम्बकीय आकर्षण शक्ति का स्त्रोत आत्मविश्वास है। अपने पर, अपनी सामर्थ्य पर यदि विश्वास किया जाय तो अगणित कठिनाइयों और अभावों के रहते भी व्यक्ति अपनी क्षमता और सामर्थ्य के बल पर उपयुक्त दिशा में बढ़ता चलता है, प्रगति कर लेता है।