Magazine - Year 1982 - Version 2
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Language: HINDI
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सभी प्रज्ञा परिजन इन प्रश्नों क उत्तर दें
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जून की अखण्ड-ज्योति और जुलाई, अगस्त के प्रज्ञा अभियान अंक में परिजनों को कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण परामर्श दिये गये हैं। उन्हें सामान्यतया यथासमय पढ़ लिया गया होगा। यह पंक्तियाँ पढ़ने के उपरान्त उन अंकों को एक बार नई दृष्टि से पढ़ा जाना चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि उन परामर्शों में से किस के लिए क्या किस प्रकार, किस हद तक कर सकना सम्भव हो सकता है।
इस संदर्भ में निम्नलिखित सात प्रश्न सभी परिजनों से पूछे जा रहे हैं।
(1)जून की अखण्ड-ज्योति में जिस आत्म परिष्कार और परिवार परिष्कार की सप्तसूत्री योजना का उल्लेख है उसे पूरा या उसका कोई अंश कार्यान्वित करने की बात सोची गई है क्या? यदि सोची गई तो उसके लिए कुछ संकल्प उठा और कार्यक्रम बना क्या? यदि बना तो उस संदर्भ में अब तक क्या प्रगति हुई?
(2) प्रज्ञा अभियान जुलाई-अगस्त अंक में कर्मनिष्ठ परिजनों को युग सृजेताओं की किसी संसद में सम्मिलित होने के लिए कहा गया है। अपना मन उनमें से किसी में सम्मिलित होने का हुआ क्या? यदि हुआ तो उसके लिए हरिद्वार सूचना भिजवा दी क्या? यदि अभी नहीं भिजवाई तो कब तक भिजवा रहें है?
(3)इस वर्ष ‘खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती है’ इस तथ्य को जन-जन के मन-मन में उतारना है। दीवारों पर इस उद्घोष को लिखना है। विवाह योग्य लड़के-लड़कियों से इस कलंक को न ओढ़ने के संकल्प कराने हैं। विचारशील अभिभावकों से बच्चों की खर्चीली शादियाँ न करने की प्रतिज्ञाएँ करानी हैं। जहाँ वैसा हो रहा हो वहाँ सम्मिलित न होने का असहयोग तो होना ही चाहिए। इस आन्दोलन का चरम सीमा तक आगे बढ़ाने और बिना खर्च की शादियों का सुयोग बिठाने की तत्परता हम में से प्रत्येक को बरतनी चाहिए।
(4)इस वर्ष का दूसरा विशेष कार्य है-हरीतिमा विकृति एवं विषमता को देखते हुए वातावरण का भयानकता से सुरक्षा एवं हरीतिमा के प्रति भाव चेतना जगाने की दृष्टि से यह आन्दोलन छोटा दीखने पर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके लिए अपने प्रभाव क्षेत्र में पूरे उत्साह के साथ टोली बनाकर-घर-घर जाकर प्रयत्न किया जाय।
साथ ही घरेलू शाक वाटिका, पुष्प वाटिका लगाने के लिए आन्दोलन उठाया जाय। आँगनवाड़ी, छत बाड़ी' छप्पर बाड़ी, हर घर में शाक और फूलों से लदा दिखाई पड़े यह कार्य हमें हजारी किसान जैसी तत्परता के साथ करना और कराना चाहिए।
(5) साधना विहीन हम में से कोई न रहे। प्रज्ञा योग को छोटी किन्तु सुनिश्चित साधना में थोड़ा-सा समय हर दिन लगाते रहने के लिए प्रत्येक प्रज्ञा परिजन का कहा गया है। वे नियमित रूप से उसे प्रारम्भ करे और जहाँ श्रद्धा के बीजांकुर दीखे वहाँ कार्यान्वित करायें। इस सम्बन्ध में क्या कदम उठे?
(6) हर शिक्षित को बिना मूल्य घर बैठे युग साहित्य पहुँचाने वापिस लेने के झोला पुस्तकालय, ज्ञान रथ रह जागृत क्षेत्र में नियमित रूप से चल पड़े । स्लाइड प्रोजक्टरों के माध्यम से युगान्तरीय चेतना के प्रतिपादन हर शिक्षित अशिक्षित को हृदयंगम करने का अवसर मिले। यह स्वाध्याय और सत्संग के दो कारगर उपाय लोकमानस को परिष्कृत करने की दृष्टि से अवश्य माने जाएँ और उनके लिए किसी न किसी प्रकार कुछ न कुछ प्रयत्न किया ही जाय। यह प्रयत्न वैयक्तिक या सामूहिक रूप से किस प्रकार अग्रगामी बन सकेंगे इसकी अपनी तैयारी क्या चली?
(7) नव सृजन के लिए हममें से प्रत्येक का कुछ न कुछ समयदान-अंशदान नित्य नियमित रूप से निकले। निर्वाह प्रयासों में यह उदारता भी इन दिनों सम्मिलित रहे। इस
संदर्भ में अपना संकल्प क्या हुआ?
इन सातों प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक परिजन से व्यक्ति