Magazine - Year 1982 - Version 2
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Language: HINDI
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तृष्णा-वासना मरने के बाद भी दुःख देती है
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मरने के साथ ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता, जीव-चेतना का अस्तित्व शरीर का अन्त होने के बाद भी बना रहता है, इस तथ्य को अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं। मरने के बाद पुनर्जन्म मिलता है, इसके भी ढेरों ढेर प्रमाण मिलते हैं। जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में बँधे जीवात्मा को ही आवागमन के चक्र में फँसा आत्मा कहा जाता है। इसके विपरीत वे व्यक्ति जो जीवन काल में ही अपनी तृष्णाओं और वासनाओं से मुक्त हो जाते हैं, जीवनमुक्त कहलाते है। उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र में नहीं फँसना पड़ता है, भारतीय दर्शन की मान्यता है कि तृष्णाएँ वासनाएँ ही पुनर्जन्म का कारण है।
मृत्यु के बाद पुनः जन्म लेने की अवधि के बीच जीवात्मा को कुछ समय विश्राम के लिए कि लिए मिलता है। आमतौर पर इस अवधि में आत्माएँ जीवनकाल में लिये गए श्रम की थकान उतरती है और गहरी निद्रा में सोई पड़ी रहती है, जिस प्रकार दिन भर काम करने के बाद रात्रि में सो लेने से प्रातःकाल ताजगी आती है और उठ कर नई शक्ति के साथ नये सिरे से उत्साहपूर्ण मनःस्थिति में काम करना सम्भव हो जाता है। उसी प्रकार इस मध्यवर्ती विश्राम के बाद मृतात्मा नया जन्म धारण करके नये सिरे से, पुनर्जन्म धारण करती है और अपने क्रिया-कलाप आरम्भ करती है। इस मध्यवर्ती काल को ही प्रेत योनि कहा गया है।
देखा गया है कि दिन में कोई भारी चिन्ता परेशान किये होती है रात को नींद नहीं आती है और नींद आती भी है तो रह-रहकर उचट जाती है, उसी प्रकार मरने के बाद सुषुप्तावस्था या प्रेत योनि में पड़े जीव को विश्राम नहीं मिल पाता। जीवनकाल में वह जिन उदद्न वासनाओं और तृष्णाओं से पीड़ित रहता है, उन्हें पूरा करने के लिए वह प्रेत योनि में भी परेशान रहता है तथा तरह-तरह से अपनी कामनाओं एवं वासनाओं की तृप्ति के लिए प्रयत्न करता रहता है। अतृप्त वासनाओं और तृष्णाओं को लेकर मरने वाले व्यक्ति यों की आत्माएँ अपनी इच्छा पूर्ति के लिए जीवित व्यक्ति यों को सन्देश देती है, उनके शरीर पर अधिकार कर अपनी कामनाएँ पूरी करती है तथा वासनाओं का आवेग जिस स्तर का होता है, उसी के अनुरूप मन्द या तीव्र हलचलें करती है।
लन्दन की श्रीमती भार्गा विलियास को अप्रैल 1976 में एक मृत आत्मा का सन्देश प्राप्त हुआ। उस आत्मा का उद्देश्य केवल अपने अस्तित्व का परिचय देना ही था। आत्मा राबर्ट यंग नामक एक डाँक्टर की थी एक समुद्री जहाज में डाँक्टर था। यंग की आत्मा ने विलियास को बताया कि वह अर्डेट नामक युद्ध पोत में सवार था उसके साथ 40 सैनिक भी थे। पोत कैम्पटाउन की लड़ाई में काम कर रहा था और एक दुर्घटना में सागर की अतल गहराइयों में डूब गया था। श्रीमती विलियास ने इस तथ्य की वास्तविकता को परखना चाहा और इसके लिए ब्रिटेन के प्रतिरक्षा विभाग से संपर्क किया। पुरानी फाइलें उलटी गई और सन्देश की प्रामाणिकता सिद्ध हो गई कि वास्तव में राबर्ट यंग एक सर्जन के तौर पर कैम्पट डाउन के युद्ध में भाग लेने वाले जहाज पर गया था, जिसमें 40 सैनिकों सहित उसकी मृत्यु हो गई थी।
श्रीमती विलियास को दूसरा सन्देश एक कोयला खनिज की आत्मा का मिला। इस खनिज का नाम था एडवर्ड रोड्स, उसकी मृत्यु सन् 1970 में यार्क शायर की एक कोयला खान में काम करते समय हो गई थी। मृत्यु के बाद उसके शव को यार्क शायर के स्वेश नामक स्थान पर दफना दिया गया था। रोड्स का कहना था कि उसका शव ठीक से नहीं दफनाया गया है, जब वह दफनाया जा रहा था तो उसके लिए प्रार्थना नहीं की गई। उल्लेखनीय है रोड्स बहुत ही धर्म श्रद्धालु व्यक्ति था वह किसी भी दिन प्रार्थना में नागा नहीं करता था और हर सप्ताह रविवार को नियमित रूप से गिरजे में जाया करता था। पहले तो विलियस ने घटना की यथार्थता जानना चाही और इसके लिए ‘राष्ट्रीय कोयला बोर्ड से संपर्क किया। वहाँ से घटना की सत्यता का पता लग गया इसके बाद विलियस ने रोड्स के परिवार वालों से संपर्क स्थापित किया था तथा आवश्यक धर्मानुष्ठान कराये।
यह तो शान्त आत्माओं के विवरण हैं, जो अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दूसरों से विनम्र अनुरोध करती है। कुछ ऐसी आत्माएँ होती है जो उद्दाम वासनाएँ लिए होती है और उनकी तृप्ति के लिए दूसरों को पीड़ित करने में भी नहीं हिचकिचाती। पिछले दिनों लखनऊ में एक युवक की प्रेतात्मा द्वारा एक परिवार को बुरी तरह पीड़ित किये जाने का समाचार प्रकाश में आया था। युवक का नाम था प्रमोद। युवावस्था में वह अपनी सहपाठी छात्रा बीना के प्रति बुरी तरह आसक्त हो गया था। डडडड उसकी ओर आकर्षित हुई थी। फिल्मी ढंग से दोनों का कथित प्रेम परवान चढ़ने लगा और दोनों ने साथ-साथ मरने की कसमें खाई। घर वालों को जब इसका पता चला तो दोनों पर प्रति बन्ध लगा दिया। अवसर पाकर दोनों भाग निकले किन्तु रास्ते में ही बीना की मृत्यु हो गई। इससे प्रमोद को इतना सदमा पहुँचा कि उसने भी आत्म-हत्या कर ली। जिस स्थान पर दोनों छुपकर मिला करते थे वहाँ आज भी चीखें सुनाई देती है। कुछ समय तक उन्होंने अपने परिवार वालों को तंग किया किन्तु बाद में शान्त हो गए। किन्तु अभी भी उनकी चीखें और अट्टहास उसी खण्डहर में गूँज रहे है जहाँ प्रमोद और बीना मिला करते थे।
कुछ समय पहले इंग्लैण्ड के विख्यात कप्तान डेविड के ऊपर प्रेतात्मा के प्रकोप तथा उससे छुटकारे की घटना का समाचार ब्रिटेन के प्रायः सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है। डेविड की गणना उस देश के मूर्धन्य सेनाध्यक्षों में की जाती थी। अचानक न जाने क्या कि वे विक्षिप्तों की-सी हरकतें करने लगे। उनका विक्षिप्त हो जाना और हर घड़ी प्रेत की छाया को अपने आस-पास मंडराते देखना एक असाधारण कौतूहल की बात थी।
चिकित्सकों ने तरह-तरह के परीक्षण किये, यहाँ तक कि किसी मनोरोग की सम्भावना दृष्टिगत रखते हुए भी बारीकी से उनका निरीक्षण किया गया लेकिन कुछ पता नहीं चला। न कोई शारीरिक रोग पकड़ में आया न ही मानसिक रोग। रोग कोई हो तो पकड़ में आए भी सही। कोई रोग था ही नहीं तो कहाँ से पकड़ में आता। किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि इतना साहसी, निडर और निर्भीक पराक्रमी यह सेनाध्यक्ष इस कदर क्यों भयभीत रहता है? धीरे-धीरे वे मरणासन्न स्थिति में पहुँचने लगे।
डेविड की पत्नी को आशंका हुई कि कहीं यह प्रेत प्रकोप तो नहीं। वह एक प्रेत विद्यावान् बुढ़िया को बुलाकर लाई। बुढ़िया आँख बन्द करके ध्यान करती रही और ध्यान से उठने पर उसने वह चीनी कोट मंगाया जो डेविड को अत्यधिक प्रिय था। उस कोट के अस्तर में समाप्त प्राय खून के दाग लगे हुए थे, जिन्हें सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता था। बुढ़िया के कहने पर डाँक्टरों ने उन दागो की जाँच की और पाया कि वे वास्तव में खून के ही दाग हैं। इस कोट का इतिहास बताते हुए बुढ़िया ने कहा कि एक व्यक्ति की हत्या इसी कोट को पहने हुई थी। उस व्यक्ति को भी यह कोट बहुत प्रिय था मरने के बाद भी इसी कारण उस व्यक्ति की छाया इसी कोट के साथ रहती है, वह आत्मा किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे में यह कोट नहीं देख सकती। जब तक कोट घर में रहेगा, तब तक उस आत्मा का आतंक भी बना रहेगा। बुढ़िया के परामर्श के अनुसार उस कोट को बाहर फेंक दिया गया, और डेविड को उसी क्षण प्रेत के आतंक से मुक्ति मिल गई।
किसी घर के भुतहा होने की भी कई घटनाएँ आए दिनों प्रकाश में आती रहती है। कोई आवश्यक नहीं कि भुतहे कहे जाने वाले सभी मकानों या स्थानों में भूतों का डेरा होता है, मुश्किल से सौ में से एकाध घटनाएँ ही सच होती है और उन स्थानों या घरों के भुतहा होने का कारण मात्र उसमें पहले रह रहे व्यक्ति यों का इन स्थानों के प्रति आत्यंतिक लगाव ही है। अब से कोई 35-40 वर्ष पहले कानपुर के विरहना रोड, नया गंज इलाके एक मकान के सम्बन्ध में विख्यात था कि वह डडडड है। उस मकान में नये-नये आकार रहने लगे। हलवाई ने मकान को नया रूप देने के विचार से तुड़वाया और पहले की अपेक्षा अधिक स्थान घेर कर नया मकान बनवाया । जैसे ही नये बने मकान में उस परिवार ने रहना आरम्भ किया , वैसे ही परिवार का मुखिया प्रेत पीड़ितों की सी हरकतें करने लगा। कई डाँक्टर आए, रोगी को देखा परखा, दवा दारु की किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। अन्त में एक तान्त्रिक की शरण ली गई तो प्रेतात्मा ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि “यह मेरा मकान है। मैंने इस व्यक्ति के साथ हमदर्दी बरती और उसे फटेहाल स्थिति से उबारा किन्तु इसने मेरे साथ ही धोखा दिया। मैं इस मकान में पचासों साल से रहता हूँ। यह मकान मेरा है और किसी तंग नहीं करता। इसने मेरी अवज्ञा और उपेक्षा की इसीलिए इसे किये का दण्ड मिल रहा है।’
बिजनोर जिले के धामपुर परगने में एक गाँव है बसन्तपुर मरावली। यहाँ के निवासी रात में अक्सर गाँव के बाहर एक प्रेतात्मा को देखते हैं जिसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह आज भी अपनी प्रेयसी की तलाश में भटक रहा है। भूत घटना 40 वर्ष की बताई जाती है। उस समय यहाँ एक ठाकुर कुवरंसिह नामक जमींदार रहता था, उसके तीन बेटे और एक बेटी थी। लड़की गाँव के ही एक युवक हरीसिहं की और आकर्षित हो गई और उसके प्रेम पाश में बँध गई। हरीसिंह अपने परिवार में अकेला था, माँ बचपन में ही गुजर गई थी और बाप-बेटे को पाल-पोसकर इस दुनिया से चलता बना था।
हरीसिंह और ठाकुर की बेटी चोरी छिपे मिलने लगे। आखिर यह चोरी छिपे का खेल कब तक चलता। एक दिन पता चल ही गया और ठाकुर ने अपने दोनों बेटों की सहायता से तालाब के किनारे एकान्त पाकर उसकी हत्या कर दी। ठाकुर की लड़की की जब यह पता चला तो वह पागल-सी हो गई और विक्षिप्तों की तरह रहने लगी। ठाकुर ने बहुत इलाज कराया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। अन्त में उसने अपनी सारी जमीन जायदाद बेच दी और गाँव छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चला गया। इस घटना के साक्षी व्यक्ति आज भी जिन्दा हैं और उनमें से जिन लोगों ने वह प्रेतात्मा देखी है, उनका कहना है कि, उसकी आकृति हरीसिंह से हूबहू मिलती-जुलती है।
मरने के साथ ही शरीर का अन्त नहीं हो जाता, यह सत्य है। मृत्यु केवल स्थूल शरीर को ही नष्ट कर पाती है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व फिर भी बना रहता है। मृत्यु के बाद जन्म लेने तक की अवधि विश्राम के लिए है किन्तु जो व्यक्ति किन्हीं पदार्थों, स्थानों या व्यक्तियों में आसक्त रहते हैं उन्हें मरने के बाद भी चैन नहीं मिलता । ठीक उसी प्रकार, जैसे अति लोभी, लालची, लिप्सावान या चिंतित, दुःखी, व्यग्र, उद्विग्न व्यक्ति को रात में ठीक से नींद नहीं आती। वह रात में भी करवटें बदलता जागता रहता है। अनिद्रा का यह रोग मानसिक सन्तुलन को पूरा तरह डगमगा देता है। बहुत दिनों तक ठीक से न सो पाने के कारण जिस प्रकार लोग कई मनोव्याधियों के शिकार हो जाते है और उन्मत्तों जैसी हरकतें करने लगते हैं। उसी प्रकार अतृप्त वासनाएँ लेकर मरने वाले व्यक्ति मरण काल के बाद निश्चित विश्राम की अवधि भी चैन से नहीं बिता पाते। उन्हें पागल प्रेतों की-सी स्थिति में देखा जा सकता है, जो खुद भी चैन से नहीं रहते तथा औरों को भी चैन से नहीं रहने देते।