Magazine - Year 1983 - Version 2
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Language: HINDI
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सावधान हिमयुग आ रहा है।
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ऐसी सम्भावना है कि अगले कुछ ही दशकों में समस्त वायुमण्डल विषाक्त हो उठेगा। पृथ्वी, जल, वायु सभी दूषित हो जायेंगे पीने योग्य पानी, श्वास के लिए वायु तथा शरीर पोषण के लिए खाद्यान्न शुद्ध न मिलने से अगणित प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे, जिनके प्रकोप से जीवधारियों को घुट-घुटकर मरने के लिए विवश होना पड़ेगा। दूसरी ओर बढ़ता हुआ पर्यावरण असन्तुलन प्राकृतिक प्रकोपों को आमन्त्रित करेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस असन्तुलन की परिणति जल प्रलय, हिमयुग जैसी विभीषिकाओं के रूप में भी हो सकती है। अनेकानेक तथ्य, वैज्ञानिक निष्कर्ष तथा घटनाक्रम भी भावी विभीषिकाओं की ओर संकेत कर रहे हैं।
विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि भारत का अधिकाँश नदियाँ बुरी तरह प्रदूषण का शिकार है। लगभग सभी नदियों में अम्ल की मात्रा अत्यन्त बढ़ गयी है। कलकत्ता में गंगा (हुगली) नदी के जल की भी यही स्थिति है। बड़ौदा के पास माही नदी का पानी पीने लायक नहीं रहा है। पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र नैनीताल का प्रसिद्ध ताल प्रदूषित हो गया है। जब से भारत में कृषि कार्य के लिए बड़े पैमाने पर कीटनाशी दवाओं तथा रासायनिक खादों का प्रयोग होने लगा है तथा उद्योगों का कचरा नदियों में बहाया जाने लगा है नदियों में विषाक्तता बढ़ती जा रही है। सत्तर प्रतिशत नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रहा है। यमुना, दामोदर, सोन, कावेरी, कृष्णा आदि के जलचर जीव अकाल मृत्यु के ग्रास बन रहे हैं।
बढ़ते प्रदूषण के साथ जल संकट भी बढ़ता चला जा रहा है। ऐसा लगता है कि कुछ ही वर्षों में पीने योग्य शुद्ध जल के दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे। शुद्ध जल की अधिकाँश मात्रा अब औद्योगिक प्रतिष्ठानों में झोंक दी जाती है। एक लीटर पेट्रोल के लिए 10 लीटर पानी, एक किलो कागज के लिए 100 लीटर पानी तथा एक टन सीमेण्ट के लिए 3500 लीटर पानी जलाना पड़ता है। पृथ्वी में पीन योग्य जितना जल है उसका 20 प्रतिशत से भी अधिक नदियों, समुद्रों में फेंक दिया जाता है।
औद्योगिक कचरे की नदियों तथा समुद्रों में झोंक दिए जाने के अनेकानेक खतरे हैं जो और भी अधिक गम्भीर होकर मनुष्य जाति को ही प्रभावित करेंगे। गन्दगी मिला जल समुद्र से वाष्पित होगा, जिससे दूषित मेघ बनेंगे तथा अपने में समेटी गन्दगी को व्यापक क्षेत्र में वर्षा के माध्यम से फैलाएंगे। दूषित जल अनेकों प्रकार के रोगों को जन्म देगा जिसका प्रभाव जीवधारियों तथा वृक्ष वनस्पतियों पर समान रूप से पड़ेगा। कनाडा के दक्षिण तथा अमरीका के उत्तरी क्षेत्र में पिछले दिनों हुई “एसिडरेन”-अम्ल वर्षा से जो हानि पहुँची है, उसे देखकर यह भय और भी प्रबल हो चला है कि ऐसी वर्षा कहीं विश्व-व्यापी न बन जाय।
हारवर्ड विश्व विद्यालय के अमरीकी प्रोफेसर डा. माइकेल मैकलोरी ने पेरिस में हुयी एक पर्यावरण संगोष्ठी में कहा कि वायुमण्डल की महत्वपूर्ण परत “स्ट्रेटोस्फीयर” जो पृथ्वी के अल्ट्रावायलेट रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बचाती है, निरन्तर कमजोर होती जा रही है। अल्ट्रावायलेट विकिरण से सुरक्षा करने वाली स्ट्रेटोस्फीयर की ओजोन परत तीव्र गति से कम सघन होती जा रही है। ऐसी सम्भावना है कि ओजोन परत की दस प्रतिशत क्षमता इस सदी के अन्त तक नष्ट हो जायेगी। इसका कारण प्रो. माइकेल ने प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में बढ़ती कार्बनडाइ ऑक्साइड को बताया। इस रक्षा कवच के कमजोर पड़ने से अनेकों प्रकार के अन्तरिक्षीय हानिकारक विकिरणों का सामना पृथ्वी के जीवधारियों को करना पड़ सकता है।
वायुमण्डल में लगभग 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण- सन्तुलन रहता है। इसमें 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, .9 प्रतिशत निष्क्रिय गैसें तथा .03 प्रतिशत कार्बनडाइ ऑक्साइड गैसें सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न मात्राओं में जलवाष्प, धूलकण, नाइट्रोजन व सल्फर यौगिक भी पाये जाते हैं।
ऐसा अनुमान है कि वायुमण्डल में कार्बनडाइ आक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे विश्व का औसत तापमान 2 डिग्री सेन्टीग्रेड बढ़ा है। जिस अनुपात में कार्बनडाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, उसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने सम्भावना व्यक्त की है कि इस सदी के अन्त तक विश्व का तापमान 4 डिग्री सेन्टीग्रेड तक बढ़ जायेगा, जिससे ध्रुवों की बर्फ पिघलने तथा जल प्रलय की विभीषिका उत्पन्न हो सकती है।
मौसम विशेषज्ञों ने विगत एक दशक में विश्व भर में ठण्ड बढ़ने का निष्कर्ष निकाला है। ठण्ड के मौसम में पहले ठण्डे इलाकों में जितनी बर्फ गिरती थी, उसका तीस प्रतिशत अधिक रिकार्ड किया गया। ग्रीनलैण्ड में तापमान गिरने का 100 वर्षों का रिकार्ड टूट गया। विशेषज्ञों का मत है कि समस्त संसार का मौसम क्रमशः ठण्डा होता जा रहा है। भूतल को ढँकने वाली बर्फ 90 प्रतिशत सौर प्रकार को परावर्तित कर देती है। जब लम्बी ठण्ड की ऋतुएँ होने लगेंगी तो प्राणी जगत तथा वनस्पति समुदाय जीवनदायी सौर ऊर्जा से वंचित हो जायेंगे। प्रकाश किरणों के और अधिक परावर्तित हो जाने से नम हवा सघन होकर अधिक बर्फ में बदलने की सम्भावना बढ़ेगी। इस प्रकार कोई आश्चर्य नहीं कि अगले की दशक में हिमयुग की विभीषिका प्रस्तुत हो जाय।
अहमदाबाद भौतिकी अनुसंधानशाला के प्रो. अग्रवाल का मत है कि “पृथ्वी पर नये हिमयुग की शुरुआत होने वाली है। जिसके कारण आधी पृथ्वी बर्फ की मोटी चादर से ढक जायेगी। नार्वे, स्वीडेन, डेनमार्क, फिनलैण्ड, उत्तरी मंचूरिया, स्विट्जरलैण्ड, नेपाल, सिक्किम, भूटान, इंग्लैंड आदि का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। सोवियत संघ, मैक्सिको, चीन, अमरीका, आस्ट्रेलिया के बड़े भूभाग हिम नदों के चपेट में आ जायेंगे। बर्फानी तूफान चलेंगे जिसके कारण गुआना, अर्जेटाइना, युरुग्वे, मेरिटाइना, दक्षिण मैक्सिको, केनिया, तंजानिया, जाबिया, पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान तथा आस्ट्रेलिया महाद्वीप के उत्तरी भागों में भयंकर सूखा पड़ने की अगले वर्षों की सम्भावना है।”
यूगोस्लाविया के एक एस्ट्रोफिजीसिस्ट का कहना है कि “हमारी पृथ्वी की ध्रुवीय धुरी अपनी कक्षा के बाहर की ओर झुकी हुई है। जिससे सर्दी, गर्मी के मौसम सूर्य की गति के अनुरूप बनते हैं। जब यह झुकाव अत्यधिक होता है तो हिमयुग आरम्भ होता है। कुछ ही समय बाद ऐसी स्थिति आने वाली है क्योंकि यह झुकाव अविज्ञात कारणों से बढ़ता जा रहा है।”
सौर गतिविधियों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का अभिमत है कि सूर्य का सतही तापक्रम निरन्तर कम होता जा रहा है। तापक्रम में दो सेल्सियस तक की गिरावट विशेष प्रभाव नहीं डालती, पर इससे अधिक होने पर पृथ्वी के वातावरण पर गम्भीर प्रभाव पड़ सकता है। प्रख्यात अमेरिकी भूगर्भ शास्त्री सिजारएमिलियानी का मत है कि “सूर्य के सतही तापक्रम में आने वाली क्रमिक गिरावट आने वाले हिमयुग का परिचायक है। इस तरह की परिस्थितियाँ पहले भी चार बार आ चुकी हैं पहला हिमयुग सबसे अधिक भयंकर था जो सत्तर करोड़ वर्ष पूर्व आया था। इसमें भारत, चीन, यूरोप, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका का एक व्यापक क्षेत्र बर्फ से ढक गया था। अन्तिम हिमयुग पच्चीस लाख वर्ष तक रहा। उसे समाप्त हुए मात्र सत्रह हजार वर्ष बीते हैं। अब पांचवें हिमयुग की बारी हैं।”
आसन्न संकटों की चर्चा डराने के लिए नहीं, मानव द्वारा स्वयं आमन्त्रित इन खतरों से सभ्यता को नष्ट होने से बचाने के लिये की गयी है। विश्व के हर नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वे चिन्तन और कर्त्तव्य को बदलें। प्रज्ञा अभियान ऐसी ही पृष्ठभूमि खड़ी करते हेतु सृजा गया एक प्रयास-पुरुषार्थ है।